Class 9 History ( इतिहास ) आधुनिक विश्व में चरवाहे Question Answer NCERT Solution in Hindi. NCERT Class 9 Itihas Notes and Important Question Answer in Hindi also Available for Various Board Students like HBSE, CBSE, UP board, Mp Board, RBSE and some other State Boards.
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NCERT Solution for Class 9 History in Hindi / इतिहास आधुनिक विश्व में चरवाहे / Adhunik Vishwa Ke Charwahe Question Answer.
आधुनिक विश्व में चरवाहे कक्षा 9 इतिहास प्रश्न उत्तर
अभ्यास के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है ? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं ?
उत्तर – घुमंतू समुदायों का मुख्य व्यवसाय पशु पालना है। वे मुख्य रूप भेड़-बकरियां पालते हैं। अत: वे चरागाहों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते रहते हैं। जब एक स्थान पर चारा और पानी समाप्त हो जाता है तो वे किसी अन्य चरागाह पर चले जाते हैं। सूखा भी उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। जिस साल वर्षा नहीं होती, उस साल चरागाह सूख जाते हैं। ऐसे में यदि मवेशियों (पशुओं) को हरे-भरे इलाके में न ले जाया जाये, पशु पालकों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो जाता है। इसके अतिरिक्त वे ऋतु-परिवर्तन के साथ भी अपना स्थान बदलते रहते हैं।
घुमंतू समुदायों के स्थान परिवर्तन से पर्यावरण को लाभ-
(1) घुमंतू समुदायों (खानाबदोशों) के लगातार स्थान परिवर्तन के कारण भूमि की उर्वरता बनी रहती है। उनके स्थान पर चले जाने के बाद उनके द्वारा छोड़ी गयी भूमि फिर से उर्वरता प्राप्त कर लेती है।
(2) उनके पशु जिस नये स्थान पर जाते हैं, वे वहां की भूमि को मलमूत्र के रूप में उपयोगी खाद प्रदान करते हैं।
(3) उनके लगातार स्थान परिवर्तन से किसी क्षेत्र का अत्यधिक दोहन नहीं होता।
(4) एक निश्चित ऋतु-चक्र बने रहने से पर्यावरण में संतुलन बना रहता है।
प्रश्न 2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा ?
-परती भूमि नियमावली
-वन अधिनियम
-अपराधी जनजाति (Criminal Tribes) अधिनियम
-चराई कर।
उत्तर – 1. परती भूमि नियमावली-
औपनिवेशिक सरकार चरागाह भूमि क्षेत्र को परती भूमि मानती थी। उसके अनुसार चरागाह भूमि से न तो कर मिलता था और न ही फसल मिलती थी। क्योंकि औपनिवेशिक सरकार का अस्तित्व ही अधिक से अधिक भूमि-कर पर टिका था, इसलिए औपनिवेशिक सरकार ने भारत में भूमि नियम लागू किए। इन नियमों द्वारा बहुत सी चरागाह भूमि को कृषि के अधीन लाया गया। फलस्वरूप भारत में चरागाह क्षेत्र कम हो गया और चरवाहों के लिए अपने पशुओं को चराने की समस्या उत्पन्न हो गई।
2. वन अधिनियम-
19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के भिन्न-भिन्न भागों में विभिन्न वन अधिनियम बनाए गए। इन अधिनियमों द्वारा देवदार तथा साल आदि के आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वनों को आरक्षित घोषित कर दिया गया।
चरवाहे इन वनों का प्रयोग नहीं कर सकते थे। जिन वनों में उन्हें प्रवेश करने की अनुमति थी, उन वनों में भी उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जाता था उन्हें इन वनों में प्रवेश के लिए परमिट लेना पड़ता था। वनों में जाने व वापिस आने का समय भी निश्चित कर दिया गया। चरवाहे निश्चित दिनों तक ही वन का प्रयोग कर सकते थे । इसके बाद उनका प्रवेश वर्जित था। यदि वे निश्चित दिनों से अधिक समय तक वन में रहते थे, तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था। सच तो यह है कि इन वन अधिनियमों ने (आदिवासियों) खानाबदोशों के लिए भोजन की समस्या को विकराल बना दिया। अब उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। इसके अतिरिक्त उनके पशुओं की गुणवत्ता में भी कमी आई।
3. अपराधी जनजाति अधिनियम-
अंग्रेज़ी सरकार केवल स्थायी लोगों को विश्वसनीय मानती थी। उनका मानना था कि जो लोग ऋतु परिवर्तन के साथ अपना स्थान अथवा व्यवसाय बदल लेते हैं, वे अपराधी हैं। इसलिए अंग्रेज़ी सरकार ने 1871 ई० में अपराधी जनजाति अधिनियम लागू किया। इसके अनुसार कई चलवासी कबीलों को प्राकृतिक रूप से और जन्म से अपराधी मान लिया गया। अब उन्हें एक निश्चित गांव में ही रहना पड़ता था। वे बिना परमिट के अपना स्थान नहीं बदल सकते थे। गांव की पुलिस उन पर लगातार निगरानी रखती थी।
4. चराई कर-
19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेज़ी सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए कई नए कर लगाए। अब चरागाहों में चराई करने वाले पशुओं पर भी कर लगा दिया गया। यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था। कर वसूली के तरीकों में परिवर्तन के साथ-साथ यह कर निरंतर बढ़ता गया। पहले तो यह कर सरकार स्वयं वसूल करती थी परंतु बाद में यह काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया। ठेकेदार बहुत अधिक कर वसूल करते थे और सरकार को एक निश्चित कर ही देते थे। फलस्वरूप खानाबदोशों का शोषण होने लगा। अत: बाध्य होकर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। फलस्वरूप खानाबदोशों के लिए रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई।
प्रश्न 3. मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए ? कारण बताएं।
उत्तर – मासाई समुदाय को निम्नलिखित कारणों से अपने चराई क्षेत्र छोड़ने पड़े-
1. साम्राज्यवादी प्रसार- औपनिवेशिक काल से पहले मासाई समुदाय के पास उत्तरी कीनिया से लेकर उत्तर तंजानिया के स्टेपीज़ तक का क्षेत्र था। परंतु साम्राज्यवादी प्रसार के कारण 1885 ई० तक यह क्षेत्र लगभग आधा रह गया। अब इसकी सीमाएं ब्रिटिश कीनिया तथा जर्मन तंजानिया तक सीमित रह गईं। शेष आधे भाग पर गोरे लोगों को बसा दिया गया। मासाई लोगों से जो क्षेत्र छीना गया, वही सबसे अच्छा चराई प्रदेश था। अब उनके पास घटिया चरागाहों वाला शुष्क प्रदेश ही था।
2. कृषि का विस्तार- ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने पूर्वी अफ्रीका में स्थानीय किसानों को कृषि क्षेत्र का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया। कृषि क्षेत्र बढ़ाने के लिए चरागाहों को कृषि-खेतों में बदला गया। परिणामस्वरूप चराई क्षेत्र स्वाभाविक रूप से कम हो गया।
3. शिकार के लिए चराई क्षेत्र का आरक्षण- मासाइयों के विशाल चराई क्षेत्र पर औपनिवेशिक शासकों ने पशुओं के शिकार के लिए पार्क बना दिए। इन पार्कों में कीनिया के मसाई मारा तथा सांबूरू नेशनल पार्क तथा तंजानिया के सेरेंगेटी पार्क के नाम लिए जा सकते हैं। सेरेंगेटी नेशनल पार्क 14,760 किमी० भी अधिक क्षेत्र पर बनाया गया था। मसाई लोग इन पार्कों में न तो पशु चरा सकते थे और न ही शिकार कर सकते थे। अच्छे चराई क्षेत्रों छिन जाने तथा जल संसाधनों के अभाव से शेष बचे चराई क्षेत्र की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। चारे की आपूर्ति में भारी कमी आई। फलस्वरूप पशुओं के लिए आहार जुटाने की समस्या गंभीर
हो गई।
प्रश्न 4. आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएं थीं ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गडरियों दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर – भारत के चरवाहे कबीलों और पूर्वी अफ्रीका के मासाई पशुपालकों के जीवन में कई तरीकों से समान रूप से परिवर्तन लाए गए। इसका वर्णन इस प्रकार है
1. कृषि क्षेत्र का विस्तार –
भारत और पूर्वी अफ्रीका में औपनिवेशिक शासन से पूर्व चराई के विस्तृत क्षेत्र थे। परंतु औपनिवेशिक सरकार के राजस्व का आधार कृषि था। अत: सरकार ने कृषकों को अधिक-से-अधिक क्षेत्र को कृषि के अधीन लाने के लिए प्रोत्साहित किया। फलस्वरूप चराई क्षेत्र कम होने लगा।
2. विभिन्न अधिनियमों द्वारा भूमि का अधिग्रहण-
भारत और पूर्वी अफ्रीका में लगभग समान रूप से वनों के प्रति जागरूकता आई और दोनों ही देशों में सरकारों ने विभिन्न वन अधिनियम पारित किए इन अधिनियमों द्वारा कुछ वन क्षेत्रों में चलवासी पशु-पालकों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई और कुछ में उनकी गतिविधियों को सोमित कर दिया गया। विवश होकर खानाबदोशों को अपने पशुओं की संख्या घटानी पड़ी और अपने व्यवसायों को बदलना पड़ा।