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Apu ke Sath Dhai Saal Class 11 Hindi Summary Chapter 3
पाठ 3 अपू के साथ ढाई साल पाठ का सार
‘अपू के साथ ढाई साल’ फ़िल्मकार सत्यजित रॉय द्वारा लिखित एक संस्मरण है। इस संस्मरण में उन्होंने ‘पथेर- पांचाली’ फ़िल्म से जुड़े अपने अनुभवों का सुंदर चित्रण किया है। इस संस्मरण से फ़िल्म के निर्माण और उससे संबंधित अनेक छोटी-छोटी बातों का पता चलता है।
पथेर-पांचाली’ फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला था। इसका मुख्य कारण यह था कि फ़िल्मकार स्वयं एक विज्ञापन कंपनी में काम करता था और साथ ही उसके पास पैसों का भी अभाव था। फ़िल्मकार फ़िल्म से जुड़े अपने अनुभवों के विषय में बताता हुआ कहता है कि फ़िल्म की शूटिंग आरंभ करने से पहले उसे फ़िल्म में काम करने वाले कलाकारों को इकट्ठा करने के लिए भी खूब मेहनत करनी पड़ी थी। फ़िल्म में मुख्य पात्र अपू की भूमिका के लिए उसे एक छह साल का लड़का चाहिए था। बहुत से बच्चों के इंटरव्यू लेने के बाद भी उसे कोई कलाकार बच्चा नहीं मिला। आखिरकार पड़ोस के घर में रहने वाला लड़का सुबीर बनर्जी ही उनकी उम्मीदों पर खरा उतरा और उसे ही ‘पथेर पांचाली’ फिल्म में अपू’ को भूमिका दी गई। इस फिल्म की शूटिंग में फ़िल्मकार को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। फिल्मकार बताता है कि उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) से सत्तर मील दूर पालासिर नामक गाँव में शूटिंग करनी थी। वहाँ रेल लाइन के पास काशफूलों से भरा मैदान था। वहाँ जब आधे दृश्य की शूटिंग कर ली गई तो किसी कारणवश कुछ समय के लिए शूटिंग को रोकना पड़ा। जब दोबारा शूटिंग आरंभ हुई तो काशफूलों से भरा मैदान जानवरों द्वारा खा लिया गया था। ऐसे में यदि शूटिंग की जाती तो दृश्य में निरंतरता न बन पाती। परिणामस्वरूप फ़िल्मकार को एक वर्ष तक अर्थात् दोबारा काशफूलों के खिलने तक इंतजार करना पड़ा।
एक अन्य दृश्य के विषय में फ़िल्मकार बताता है कि उन्हें रेलगाड़ी के बहुत सारे शॉट्स लेने थे उन्होंने सुबह से लेकर दोपहर तक वहाँ रेल लाइन से गुजरने वाली रेलगाड़ियों का टाइम-टेबल देखकर भिन्न-भिन्न रेलगाड़ियों के शॉट्स लिए किंतु फिल्म में उन्हें इस प्रकार दिखाया मानो सभी शॉट्स एक ही रेलगाड़ी के लिए गए हों। फ़िल्मकार को आर्थिक अभाव के कारण भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। फ़िल्म में एक कुत्ते की भूमिका निभाने के लिए उन्होंने गाँव से ही एक कुत्ता लिया। जब उस पर एक दृश्य का आधा भाग फ़िल्माया गया तो पैसे की कमी के कारण शूटिंग को रोकना पड़ा। पैसे आने पर जब शूटिंग दोबारा शुरू हुई तो पता चला कि गाँव का वह कुत्ता तो मर गया है। बाद में उससे मिलता-जुलता दूसरा कुत्ता ढूँढ़कर दृश्य को पूरा किया गया। इसी प्रकार फ़िल्म में मिठाई वाले की भूमिका श्रीनिवास नामक एक कलाकार निभा रहा था। उस पर भी जब एक दृश्य का आधा भाग फ़िल्माया गया तो पैसे की कमी के कारण शूटिंग को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा था। जब दोबारा पैसे आने पर शूटिंग शुरू हुई तो पता चला कि मिठाई वाले की भूमिका निभाने वाले श्रीनिवास का देहांत हो गया है। बाद में उनके शरीर से मिलते-जुलते शरीर वाले एक अन्य व्यक्ति से बाकी बचा हुआ दृश्य पूरा करवाया गया। पैसों की कमी के कारण ही फ़िल्मकार को बारिश का दृश्य फ़िल्माने में भी समस्या आई। जब बरसात के दिन चल रहे थे तो फ़िल्मकार के पास पैसे नहीं थे। जब पैसे आए तो बरसात के दिन न होकर अक्तूबर का महीना था। उस समय साफ़ आकाश में बरसात होना असंभव था
किंतु फिल्मकार प्रतिदिन अपने साथियों सहित बरसात का इंतजार करता। एक दिन अचानक आकाश बादलों से घिर गया और खूब वर्षा हुई। इस प्रकार बारिश का दृश्य फ़िल्माया गया। फ़िल्मकार एक अन्य अनुभव के बारे में बताता है कि जिस गाँव में वे शूटिंग करते थे वहाँ ‘सुबोध दा’ नामक एक व्यक्ति रहता था। पहले तो उसने उनका खूब विरोध किया किंतु बाद में वह उनका मित्र बन गया। इसी प्रकार फ़िल्मकार और उसके साथी जिस घर में शूटिंग करते वहाँ पड़ोस में एक धोबी रहता था। वह मानसिक रूप से ठीक नहीं था। वह अक्सर ऊँची आवाज में भाषण देना आरंभ कर देता था, जिससे साउंड का काम प्रभावित होता था। बाद में धोबी के रिश्तेदारों ने उसे समझाया और फिल्मकार की परेशानी दूर हुई। फ़िल्मकार बताता है कि जहाँ वे लोग शूटिंग करते थे, वह घर बहुत पुराना था। एक दिन शूटिंग के दौरान साउंड रिकॉर्डिस्ट के कमरे में साँप निकल आया जिसे देखकर वह बुरी तरह सहम गया। उस साँप को मारने की इच्छा होने पर भी स्थानीय लोगों के मना करने पर उसे नहीं मारा गया। वास्तव में वह एक ‘वास्तुसर्प’ था और बहुत दिनों से वहाँ रह रहा था।