NCERT Class 12th Hindi आरोह भाग 2 Chapter 2 बाजार दर्शन Question Answer Solution for remember question answer and score higher in board exam results. CCL Chapter offers you to quick memorize of questions and answers. Class 12 Hindi Chapter 2 notes and important questions are also available on our website. NCERT Solution for Class 12 Hindi Chapter 2 Question Answer of Aroh Bhag 2 Bhaktin NCERT Solution for CBSE, HBSE, RBSE and Up Board and all other chapters of class 12 hindi gadhy bhaag solutions are available.
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Bazar Darshan Class 12 Hindi Chapter 2 Question Answer
पाठ 2 बाजार दर्शन गद्य भाग प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
उत्तर – बाजार के जादू के चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर निम्नलिखित असर पड़ता है
(i) बाजार का जादू चढ़ने पर मनुष्य उसकी ओर उसी प्रकार से खींचा चला जाता है जिस प्रकार चुंबक लोहे की ओर खींचा चला जाता है।
(ii) अनेक वस्तुओं का निमंत्रण मनुष्य तक अपने आप पहुँच जाता है जिन्हें वह खरीदने हेतु लालायित हो उठता है। (iii) मनुष्य को सभी सामान जरूरी और आरामदायक प्रतीत होता है।
(iv) मनुष्य को जिस वस्तु की आवश्यकता भी न हो उसे भी वह खरीदने पर मजबूर हो जाता है।
(v) बाजार का जादू उतरने पर मनुष्य को आभास होता है कि जो आरामदायक फैसी वस्तुएँ उसने खरीदी थीं वे सब आराम देने की अपेक्षा उसे दुःख पहुंचाती हैं।
(vi) वस्तुओं की उपयोगिता का पता चलने पर मनुष्य के स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है।
(vii) बहुतायत वस्तुएं खरीदने पर मनुष्य स्वयं अपराधी महसूस करने लगता है।
प्रश्न 2. बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है ? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता है ?
उत्तर – बाजार में भगत जी का स्वाभिमानी, निश्चेष्ट, आत्मसंयमी, मितव्ययी, दृढ़ निश्चयी, आदि विशेषताओं से परिपूर्ण व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है। भगत जी एक स्वाभिमानी और निश्चेष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं जिन्हें बाज़ार का आकर्षण, सौंदर्य, चहल-पहल, बड़ी-बड़ी दुकानें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती और न ही उसके स्वाभिमान को डिगा सकती हैं। वे आत्मसंयमी और मितव्ययी पुरुष हैं। धन की कमी न होने के कारण भी वे बाज़ार में फिजूलखर्ची पर विश्वास नहीं करते। केवल उतनी ही वस्तुएँ खरीदते हैं जितनी उनकी आवश्यकता है और वे भी केवल अच्छे मूल्य में खरीदते हैं। बाजारी आकर्षण में फंसकर धन को नहीं लुटाते। हाँ हमारी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है। जिस प्रकार शांत, निश्चेष्ट संयमी भगत जी का आचरण है और जैसे वह बाजार के आकर्षण और सौंदर्य को देखकर उससे जरा-सा भी मोहित नहीं होता इसी प्रकार यदि आज के उपभोक्तावाद और बाजारवाद के समाज में यदि प्रत्येक मनुष्य स्वाभिमान, संयम, मितव्यय और दृढ़ निश्चय से अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तुएँ खरीदें। बाजार के आकर्षण और सौंदर्य में फंसकर अनुपयोगी वस्तुओं को न ले तो वास्तव में उसका मन अशांत नहीं होगा। वह अपने मन में बेकार की इच्छाओं को वश में करके यदि फिजूलखर्ची पर काबू पा लेगा तो उसका जीवन भी शांत, स्वाभिमानी, मितव्ययी बन जाएगा। यदि समाज का प्रत्येक मनुष्य ऐसा करे तो निश्चय ही समाज में शांति स्थापित होगी।
प्रश्न 3. ‘बाजारूपन’ से क्या तात्पर्य है ? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किस में है ?
उत्तर – बाज़ारूपन से तात्पर्य कपट बढ़ाने से है अर्थात् सद्भाव की कमी। सद्भाव की कमी के कारण आदमी परस्पर भाई, मित्र और पड़ोसी आदि को भूल जाता है। मनुष्य केवल सब के साथ कोरे ग्राहक जैसा व्यवहार करताहै।
उसे कोई भाई, मित्र या पड़ोसी दिखाई नहीं देता है। बाजारूपन के कारण मनुष्य को केवल अपना लाभ-हानि ही दिखाई देता है। इस भावना से शोषण भी होने लगता है। जो व्यक्ति ये जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं उन्हें किस वस्तु की आवश्यकता है ऐसे व्यक्ति ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान कर सकते हैं। ये लोग कभी भी पर्चेज़िंग पावर’ के गर्व में नहीं डूबते। इन्हीं लोगों को अपनी चाहत का अहसास होता है जिसके आधार पर किए के सार्थकता प्रदान होती है।
प्रश्न 4. बाज़ार किसी का लिंग, जाति-धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उस की क्रय-शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। क्या आप इस से सहमत हैं ?
उत्तर – हाँ, हम इस बात से सहमत हैं कि बाजार किसी का लिंग, जाति-धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, बल्कि वह सिर्फ़ शाहक की क्रय-शक्ति को देखता है। बाजार एक ऐसा स्थल है जहाँ पर हर जाति, लिंग, धर्म या क्षेत्र का व्यक्ति जाता है। वहाँ किसी को भी धर्म-जाति के आधार पर नहीं पहचाना जाता बल्कि प्रत्येक निम्न, उच्च, अमीर-गरीब की पहचान वहाँ एक ग्राहक के रूप में होती है। इस दृष्टि से इस स्थल पर पहुँच कर प्रत्येक धर्म, जाति मजहब का मनुष्य एक समान केवल ग्राहक कहलाता है। बाजार की दृष्टि में यहाँ सब उसके ग्राहक होते हैं और वह ग्राहक का कभी धर्म, जाति या मजहब देखकर व्यवहार नहीं करता बल्कि वह तो सिर्फ ग्राहक की क्रय शक्ति देखकर ही उसके साथ व्यवहार करता है। यानी जो मनुष्य जितनी क्रय-शक्ति रखता है बाजार उसे उतना ही महत्त्व देता है। उतना ही सम्मान देता है। इस प्रकार बाजार एक प्रकार से सामाजिक समता की रचना कर रहा है। जहाँ प्रत्येक धर्म, जाति, मजहब, अमीर-गरीब, निम्न-उच्च पहुँचकर केवल ग्राहक कहलाता है।
प्रश्न 5. आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंगों का उल्लेख करें
(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
उत्तर – (क) समकालीन समाज में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जहाँ हम पैसे को शक्ति का परिचायक बनता हुआ देखते हैं। आज समाज के प्रत्येक सरकारी या निजी कार्यालयों में जहाँ भी देखिए पैसे के बल पर कोई भी काम करवा लीजिए। भ्रष्टाचार, आतंकवाद पैसे की शक्ति के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। पैसे देकर किसी भी बड़े-छोटे अधिकारी से कोई भी काम निकलवा लीजिए। कोर्ट में सजा हुए कैदी को पैसे देकर छुड़वा लिया जाता है और बेकसूर इंसान को फाँसी पर चढ़ा दिया जाता है। पैसे के बल पर आतंकवादी किसी भी देश पर हमला कर देते हैं। अमेरिका पर हमला हो, चाहे भारतीय संसद् पर हमला या कश्मीर में सदियों से चले आ रहे हमले-वे सब पैसे की शक्ति के परिचायक हैं। संभवतः वर्तमानकाल में पैसा कोई भी कार्य कर सकता है।
(ख) प्राय: देखा जाता है कि किसी मनुष्य के पास धन-दौलत ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं होती। उसके पास गाड़ी, बंगला आदि सभी सुविधाएँ होती हैं लेकिन वह शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं होता। उसे अनेक बीमारियाँ आ घेरती हैं। उसे पल-पल जीना दूभर लगता है। उसे एक पल युग के समान प्रतीत होता है। ऐसी दशा में उसके चारों ओर बड़े से बड़े डॉक्टर, नर्स आदि देखभाल के लिए फिरते हैं लेकिन उसके पैसे की शक्ति उसे कोई भी आराम नहीं दे पाती। ऐसी परिस्थिति में मनुष्य को लगता है कि उसकी अपार संपत्ति भी उसे स्वस्थ करने में नाकाम साबित हुई है। वहाँ पैसे की शक्ति काम नहीं आती।