NCERT Class 11th Hindi आरोह भाग 1 (i) हम तो एक एक करि जाना (ii) संतो देखत जग बौराना Summary for remember Story line in quick and score higher in board exam results. CCL Chapter helps you in it.. Class 11 Hindi Chapter 1 notes, question answer and important questions are also available on our website. NCERT Solution for Class 11 Hindi Chapter 1 Summary of Aroh Bhag 1 (i) Hum to ek ek kari Jana (ii) Santo Dekht Jag Borana NCERT Solution for CBSE, HBSE, RBSE and Up Board and all other chapters of class 11 hindi gadhy bhaag NCERT solutions are available. (i) Hum to ek ek kari Jana (ii) Santo Dekht Jag Borana Class 11 NCERT Summary is best way to prepare Chapters for Exams. Kabirdas Ke Dohe Class 11 Summary Hindi
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(i) Hum to ek ek kari Jana (ii) Santo Dekht Jag Borana Class 11 Hindi Summary Chapter 1
(i) हम तो एक एक करि जाना (ii) संतो देखत जग बौराना कविता का सार
प्रस्तुत दोनों पदों के रचयिता हिंदी काव्यधारा की निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा के संत कवि कबीरदास जी हैं। पहले पद के अंतर्गत कबीर ने ईश्वर के एक ज्योतिस्वरूप को स्वीकार किया है। उनका मानना है कि सृष्टि के प्रत्येक कण में ईश्वर का वास है। प्रत्येक प्राणी भीतर वही स्वरूप धारण किए हुए है। जिस प्रकार पवन, पानी एक है, एक ही मिट्टी सभी बर्तनों का निर्माण करती है। एक ही परमात्मा का अस्तित्व सभी जीवों में विद्यमान है। मनुष्य व्यर्थ ही माया में पड़कर अहंकार करता है। कबीर जी ने ईश्वर के सच्चे स्वरूप को पहचान लिया है इसलिए अब उनके मन में कोई भय नहीं है।
दूसरे पद में कबीरदास जी ने हिंदुओं और मुसलमानों में व्याप्त बाह्य आडंबरों पर कटाक्ष किया है। कबीर जी का मानना है कि सारा संसार बावला हो गया है जो सच्ची बात को न मानकर झूठी बात का विश्वास करता है। नियम, धर्म करने वाले लोग आत्मतत्व के ज्ञान को छोड़कर पत्थरों को पूजते रहते हैं। अनेक किताबों और कुरानों को पढ़ने वाले धार्मिक संत भी झूठे अभिमान में पड़े रहते हैं। अहंकार से भरे हुए वे समाधि की मुद्रा में बैठे हैं। पीपल और पत्थरों को पूजकर वे मन में गर्व करते हैं। आत्मतत्व को जाने बिना वे टोपी और माला धारण कर, छापेदार वस्त्र पहन कर तथा मस्तक पर तिलक लगा कर साखियों और सबदों को गाते रहते हैं। ये सच्चा ज्ञान कदापि नहीं है। हिंदू और मुसलमान दोनों ही अपने अपने धर्म को बड़ा बताते हैं पर धर्म का वास्तविक ज्ञान किसी को नहीं है। कबीर जी उन गुरुओं पर भी कटाक्ष करते हैं जो प्रसिद्धि का अभिमान करने के लिए घर-घर जाकर अपने अनुयायी बनाते फिरते हैं।