NCERT Solution of Class 10 Hindi कृतिका भाग 2 Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि Question Answer for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board, Up Board, RBSE and Some other state Boards. We also Provides पाठ का सार और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर for score Higher in Exams.
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NCERT Solution of Class 10th Hindi Kritika bhag 2/ कृतिका भाग 2 chapter 3 sana sana hath jodi Textual Question And Answer Solution.
साना-साना हाथ जोड़ि Class 10 Hindi प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था ?
उत्तर – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को सम्मोहित कर रहा था। रहस्यमयी सितारों की रोशनी में उसका सब कुछ समाप्त हो गया था। उसे ऐसे अनुभव हो रहा था जैसे उसकी चेतना लुप्त हो गई थी। बाहर और अंदर सब कुछ शून्य हो गया था वह इंद्रियों से दूर एक रोशनी भरे संसार में चली गई थी। उसके लिए आस- पास का वातावरण शून्य हो गया था।
प्रश्न 2. गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर ‘क्यों कहा गया ?
उत्तर – गंतोक को मेहनतकशों का शहर इसलिए कहा गया है क्योंकि यहाँ स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी पूरी मेहनत से काम करते हैं। स्त्रियाँ बच्चों को पीठ पर लादकर काम करती हैं। स्कूल जाने वाले विद्यार्थी स्कूल में आने के बाद अपने माता-पिता के कामों में हाथ बंटाते हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ सभी कार्य मेहनत से पूरे होते हैं। इसलिए
यह मेहनतकश बादशाहों का शहर कहलाता है।
प्रश्न 3. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है ?
उत्तर – यूमथांग जाते हुए रास्ते में बहुत सारी बौद्ध पताकाएँ दिखाई दीं। लेखिका के गाइड जितेन नार्गे ने बताया उत्तर कि श्वेत पताकाएँ जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उस समय उसकी आत्मा की शांति के लिए फहराई जाती
हैं। रंगीन पताकाएं किसी नये कार्य के आरंभ पर लगाई जाती हैं।
प्रश्न 4. जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए ।
उत्तर – जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम के बारे में बताया कि यहाँ का इलाका मैदानी नहीं, पहाड़ी है। मैदानों की तरह यहाँ का जीवन सरल नहीं है। यहाँ कोई भी व्यक्ति कोमल या नाज़ुक नहीं मिलेगा, क्योंकि यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। मैदानी क्षेत्रों की तरह यहाँ कोने-कोने पर स्कूल नहीं हैं। नीचे की तराई में एक-दो स्कूल होंगे। दूर-दूर से बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल पढ़ने जाते हैं। ये बच्चे स्कूल से आकर अपनी माँ के काम में सहायता करते हैं। पशुओं को चराना, पानी भरना और जंगल से लकड़ियों के भारी-भारी गट्ठर सिर पर ढोकर लाते हैं। सिक्किम की प्रकृति जितनी कोमल और सुंदर है वहाँ की भौगोलिक स्थिति और जन-जीवन कठोर है।
प्रश्न 5. लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी ?
उत्तर – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के विषय में जितेन ने बताया कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को उस घूमते चक्र को देखकर लगा कि पूरे भारत के लोगों की आत्मा एक जैसी है, विज्ञान ने चाहे कितनी अधिक प्रगति कर ली है फिर भी लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की मान्यताएँ सब एक जैसी हैं। वह चाहे पहाड़ पर हो या फिर मैदानी क्षेत्रों में उनकी धार्मिक मान्यताओं को कोई तोड़ नहीं सकता।
प्रश्न 6. जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर – जितेन नार्गे ड्राइवर कम गाइड था। उसे सिक्किम और उसके आस-पास के क्षेत्रों की भरपूर जानकारी थी। जितेन एक ऐसा गाइड था जो पर्यटकों को असीम संतुष्टि कैसे दी जा सकती है, जानता था। इसीलिए वह लेखिका और उसके सहयात्रियों को सिक्किम घुमाते हुए बर्फ दिखाने के लिए कटाओ तक ले जाता है। उससे आगे चीन की सीमा आरंभ हो जाती है। वह छोटी-छोटी सी जानकारी अपने यात्रियों को देना नहीं भूलता। यात्रियों की थकान उतारने के लिए उनके मन बहलाव के लिए वह उनकी पसंद के संगीत का सामान भी साथ रखता है। एक गाइड के लिए अपने क्षेत्र के इतिहास की पूरी जानकारी होनी आवश्यक है जो जितेन को भरपूर थी। जितेन रास्ते में आने वाले छोटे-छोटे स्थानों, जिनकी वहाँ के स्थानीय लोगों में श्रद्धा थी, के बारे में विस्तार से बता रहा था। एक कुशल गाइड से यात्रा का आनंद दुगुना हो जाता है। वह आस-पास के सुनसान वातावरण को भी खुशनुमा बना देता है। इस तरह जितेन नागें में एक कुशल गाइड के गुण थे।
प्रश्न 7. इस यात्रा वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
लेखिका क्या स्पष्ट करना चाहती है ?
उत्तर – लेखिका का यात्री दल यूमथांग जाने के लिए जीप द्वारा आगे बढ़ रहा था। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ रही थी वैसे-वैसे हिमालय का पल-पल बदलता वैभव और विराट रूप सामने आता जा रहा था। हिमालय विशालकाय होता गया। आसमान में फैली घटाएँ गहराती हुई पाताल नापने लगी थीं। कहीं-कहीं किसी चमत्कार की तरह फूल मुस्कुराने
लगे थे। सारा वातावरण अद्भुत शांति प्रदान कर रहा था। लेखिका हिमालय के पल-पल बदलते स्वरूप को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। उसने हिमालय को मेरे नागपति मेरे विशाल कह कर सलामी दी। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े प्रतीत हो रहा था और कहीं हल्के पीलेपन का कालीन दिखाई दे रहा था। हिमालय का स्वरूप कहीं पलस्तर उखड़ी दीवारों की तरह पथरीला लग रहा था। सब कुछ लेखिका को जादू का ‘छाया’ ‘माया’ खेल लग रहा था। हिमालय का बदलता रूप लेखिका को रोमांचित कर रहा था।
प्रश्न 8. प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है ?
उत्तर – प्रकृति के अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को लग रहा था कि वह आदिमयुग की कोई अभिशप्त राजकुमारी है, बहती जलधारा में पैर डुबोने से उसकी आत्मा अंदर तक भीगकर उसे सत्य और सौंदर्य का अनुभव होने लगा था। हिमालय से बहता झरना उसे जीवन की शक्ति का अहसास करा रहा था। उसे लग रहा था कि उसकी सारी बुरी बातें और तासिकताएं निर्मल जलधारा के साथ बह गई थीं। वह भी जलधारा में मिलकर बहने लगी थी। अर्थात् वह एक ऐसे शून्य में पहुँच गई थी जहाँ अपना कुछ नहीं रहता। सारी इंद्रियाँ आत्मा के वश में हो जाती हैं। लेखिका उस झरने की निर्मल धारा के साथ बहते रहना चाहती थी। वहाँ उसे सुखद अनुभूति का अनुभव हो रहा था।
प्रश्न 9. प्राकृतिक सौंदर्य के आलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए ?
उत्तर – प्राकृतिक सौंदर्य के आलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को वहाँ के आम जीवन की निर्ममता झकझोर गई। लेखिका को प्रकृति के असीम सौंदर्य ने ऐसी अनुभूति दी थी कि वह एक चेतन शून्य संसार में पहुँच गई थी। उसे लग रहा था कि वह ईश्वर के निकट पहुँच गई है, परंतु उस सौंदर्य में कुछ पहाड़ी औरतें पत्थर तोड़ रही थीं। वे शरीर से कोमल दिखाई दे रही थीं। उनकी पीठ पर टोकरियों में बच्चे बँधे हुए थे। वे बड़े-बड़े हथौड़ों और कुदालों से पत्थरों को तोड़ने का प्रयास कर रही थी। यह देखकर लेखिका बेचैन हो गई। वहीं खड़े एक कर्मचारी ने बताया कि पहाड़ों में रास्ता बनाना बहुत कठिन कार्य है। कई बार रास्ता बनाते समय लोगों की जान भी चली जाती है। लेखिका को लगा कि भूख और जिंदा रहने की कश्मकश ने इस स्वर्गीय सौंदर्य में अपना मार्ग इस प्रकार ढूँढ़ा है। सीमा पर तैनात फ़ौजी हमारी सुरक्षा के लिए ऐसी-ऐसी जगहों की रक्षा करते हैं, जहाँ सब कुछ बर्फ हो जाता है। जहाँ पौष और माघ की ठंड की बात तो छोड़ो वैशाख में भी हाथ-पैर नहीं खुलते। वे इतनी ठंड में प्राकृतिक बाधाओं को सहन करते हुए हमारा कल सुरक्षित करते हैं । पहाड़ी औरतों को भूख से लड़ते पत्थरों को तोड़ना और कड़ाके की ठंड में फौजियों का सीमा पर तैनात रहना लेखिका को अंदर तक झकझोर गया।
प्रश्न 10. सैलानियों को प्रकृति की आलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है ? उल्लेख करें।
उत्तर – सैलानियों को प्रकृति की आलौकिक छटा का अनुभव करवाने में प्रमुख योगदान पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध सुविधाओं, स्थानीय गाइड तथा पहुँचने के मार्ग का होता है। इसके अतिरिक्त वहाँ के लोगों का तथा सरकारी रख-रखाव का होता है।
प्रश्न 11. “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती है।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर – देश की आर्थिक प्रगति में आम जनता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। देश के महत्त्वपूर्ण संस्थानों के निर्माण में आम जनता ही सहयोग करती है। वहाँ पत्थर तोड़ने से लेकर पत्थर जोड़ने तक का कार्य वे ही लोग करते हैं। इस कार्य में व्यक्ति का पूरा जोर लगता है परंतु उनके काम के बदले में उन्हें बहुत कम पैसे मिलते हैं। बड़े-बड़े लोगों को धनवान बनाने वाले ये लोग अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी उन पैसों से बड़ी कठिनाई से करते हैं। सड़कों को चौड़ा बनाने का कार्य, बांध बनाने का कार्य और बड़ी-बड़ी फैक्टरियां बनाने के कार्य की नींव आम जनता के खून पसीने पर रखी जाती है। सड़कों के निर्माण से यातायात का आवागमन सुगम हो जाता है। तैयार माल और कच्चा माल फैक्टरियों से एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से पहुँचाया जाता है जिससे देश की आर्थिक प्रगति होती है। बाँधों के निर्माण से बिजली का उत्पादन किया जाता है तथा फसलों को उचित सिंचाई के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। इन सब कार्यों में आम जनता का भरपूर योगदान होता है। इन लोगों की भूमिका के बिना देश की आर्थिक प्रगति संभव नहीं है।
प्रश्न 12. आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है ? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए ?
उत्तर – आज की पीढ़ी भौतिकवादी हो चुकी है। वह अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रकृति का निर्मम ढंग से प्रयोग कर रही है। उन्हें यह नहीं पता कि प्रकृति मनुष्य को कितना कुछ देती है बदले में वह मनुष्य से कुछ नहीं मांगती। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के जल का दुरुपयोग तथा कृषि योग्य भूमि पर बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों के निर्माण ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है।
मनुष्य को चाहिए यदि वह प्रकृति से लाभ उठाना चाहता है तो उसकी उचित देख-रेख करें। जितने वृक्ष काटें उससे दुगुने वृक्षों को लगाएँ। वृक्ष लगाने से मिट्टी का बहाव रुक जाएगा तथा चारों ओर हरियाली होने से प्रकृति में वायु और वर्षा का संतुलन बन जाएगा। वर्षा उचित समय से होने पर नदियों में जल की कमी नहीं होगी। जल प्रकृति की अनमोल देन है। मनुष्य को चाहिए नदियों के जल का उचित प्रयोग करें। नदियों के जल में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। औद्योगिक संस्थानों से निकले गंदे पानी की निकासी के लिए अलग प्रबंध करना चाहिए। कृषि योग्य भूमि को भी दुरुपयोग से बचाना चाहिए। सरकार को प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए उचित तथा कठोर नियम बनाने चाहिए। उन नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए।
प्रश्न 13. प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का ज़िक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं ? लिखें।
उत्तर – प्रदूषण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है और साथ में मनुष्य का स्वास्थ्य भी बिगड़ चुका है। प्रदूषण के कारण पूरे देश का सामाजिक और आर्थिक वातावरण बिगड़ गया है। खेती के आधुनिक उपायों, खादों तथा कृत्रिम साधनों के प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होती जा रही है। बीज और खाद के दूषित होने के कारण फसलें खराब हो जाती हैं जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ने मिलकर मनुष्य और प्रकृति को विकलांग बना दिया। वायु प्रदूषण से सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु की कमी आती जा रही है जिससे मनुष्य को फेफड़ों संबंधी कई बीमारियां लग रही हैं। ध्वनि प्रदूषण से बहरेपन की समस्या दिन – प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे मानव के स्वभाव पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए युवा पीढ़ी का जागरूक होना आवश्यक है। उसके लिए सरकार को प्रदूषण संबंधी कार्यक्रम चलाने चाहिए। प्रदूषण संबंधी नियमों का दृढ़ता से पालन और लागू किया जाना आवश्यक है।
प्रश्न 14. ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
अथवा
कटाओ को भारत का स्विट्जरलैंड क्यों कहा गया है ?
उत्तर – ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता असीम है, जिसे देखकर सैलानी स्वयं को ईश्वर के निकट समझते हैं। वहाँ . उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। यदि वहाँ पर दुकानें खुल जाती हैं तो लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी, जिससे वहाँ गंदगी और प्रदूषण फैलेगा। लोग सफाई संबंधी नियमों का पालन नहीं करते। वस्तुएँ खा-पीकर व्यर्थ का सामान इधर-उधर फेंक देते हैं। लोगों का आना-जाना बढ़ने से जैसे यूमथांग में स्नोफॉल कम हो गया है। वैसा ही यहाँ पर भी होने की संभावना है। ‘कटाओ’ के वास्तविक स्वरूप में रहने के लिए वहाँ किसी भी दुकान का न होना अच्छा है।
प्रश्न 15. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है ?
उत्तर – प्रकृति का जलसंचय करने का अपना ही ढंग है। सर्दियों में वह बर्फ के रूप में जल इकट्ठा करती है। गर्मियों में जब लोग पानी के लिए तरसते हैं तो ये बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन जाती है, जिससे हम लोग जल प्राप्त कर अपनी प्यास और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
प्रश्न 16. देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं ? हमारा उनके प्रति क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए ?
उत्तर – देश की सीमा पर तैनात फ़ौजियों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बर्फीले क्षेत्रों में तैनात फ़ौजी बर्फीली हवाओं और तूफानों का सामना करते हैं। पौष और माघ की ठंड में वहां पेट्रोल के अतिरिक्त सब कुछ जम जाता है। फ़ौजी बड़ी मुश्किल से अपने शरीर के तापमान को सामान्य रखते हुए देश की सीमा की रक्षा करते हैं। वहां आने-जाने का मार्ग खतरनाक और संकरा है जिन पर से गुजरते हुए किसी के भी प्राण जाने की संभावना बनी रहती है। ऐसे रास्तों पर फ़ौजी चलते हुए अपने जीवन की परवाह न करते हुए हमारे लिए आने वाले कल को सुरक्षित करते हैं। देश की सीमा की रक्षा करने वाले फ़ौजियों के प्रति आम नागरिक का भी कत्त्तव्य बन जाता है कि वे उनके परिवार और सदस्यों की खुशहाली के लिए प्रयत्नशील हो। जिससे वे लोग अपने परिवारों की सोच से बेफिक्र होकर सीमा पर मजबूती से अपना फ़र्ज पूरा कर सकें। समय-समय पर उनका साहस बढ़ाने के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रबंध करना चाहिए। लोगों को भी देश की संपत्ति की रक्षा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।