NCERT Class 12th Hindi आरोह भाग 2 chapter 8 (i) श्रम विभाजन और जाति प्रथा (ii) मेरी कल्पना का आदर्श समाज Question Answer Solution for remember question answer and score higher in board exam results. CCL Chapter offers you to quick memorize of questions and answers. Class 12 Hindi chapter 8 notes and important questions are also available on our website. NCERT Solution for Class 12 Hindi chapter 8 Question Answer of Aroh Bhag 2 (i) shram vibhajan aur Jati Pratha (ii) Meri Kalpana ka adarsh samaj NCERT Solution for CBSE, HBSE, RBSE and Up Board and all other chapters of class 12 hindi gadhy bhaag solutions are available.
Also Read:- Class 12 Hindi आरोह भाग 2 Questions Answer
(i) Shram Vibhajan aur Jati Pratha (ii) Meri Kalpana ka Adarsh Samaj Class 12 Hindi chapter 8 Question Answer
पाठ 8 -(i)विभाजन और जाति प्रथा (ii) मेरी कल्पना का आदर्श समाज अभ्यास के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
उत्तर – जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं-
(i) जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का रूप लिए हुए है।
(ii) श्रम-विभाजन निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम-विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती।
(iii) भारत की जाति-प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को
एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।
(a) जाति-प्रथा को याद कर-विभाजन मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की कच आधान्ति नहीं है।
प्रश्न 2 जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?
उत्तर – जाति-प्रथा भारतीय समाज में मनुष्य का गर्भ धारण या जन्म के समय से ही पेशा निर्धारित कर देती है। यह सेवा उसके माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार दिया जाता है। इसके साथ हो यह केवल पेशे का पूर्व निर्धारण को नहीं करतो. बल्कि मनुष्य को आजीवन उसी पेशे के साथ बांध देती है। समय परिवर्तन के साथ उद्योग-धंधों एकीक मिलन विकास होने के साथ ऐसे में परिवर्तन हो जाता है। जिससे प्राचीन पेशे समाज में अपर्याप्त होने लगते है जो आदमी बेकार हो जाता है। वह अपने पैसे को बदलना चाहटा है, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियां उसे पेशा नहीं बने देतो। किने उसके जीवन में भुखमरी फैल जाती है। हिंदु धर्म को जाति प्रथा किसी भी मनुष्य को पैतृक पेशे के अलावा अन्य सेशा चुनने की अनुमति प्रदान नहीं करती चाहे उसमें वह अत्यंत कुशल ही क्यों हो। जिसके कारण मनुष्य कोई भी जन कार्य नहीं कर पाते। यही कारण है कि जाति प्रथा के कारण भारतीय समाज में बेरोजगारी और मुखनी फैल रही है और यह स्थिति आज भी बनी हुई है।
प्रश्न 3. लेखक के मत से दासता की व्यापक परिभाषा क्या है?
उत्तर – लेखक के अनुसार दासता से अभिप्राय केवल कानूनी पराधीनता से नहीं है, बल्कि दासता में वह स्थिति भी मामला है जिसमे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विक्या होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है।
प्रश्न 4. शारीरिकता वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ० आंबेडकर ‘समता” को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं ? इसके पीछे उनके क्या तर्क है?
उत्तर – शारिक दश-परस्ट की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ० आंबेडकर ‘समता को कव्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह इसलिए करते हैं, ताकि समाज में सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। प्रत्येक मनुष्य को समता को दृष्टि से देखा जाए यह आग्रह करने के पीछे डॉ० आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं-
(i) उत्तम व्याहार के हक में वे लोग बाजी मार ले जाएंगे, जिन्हें उत्तम कुल शिक्षा पारिवारिक ख्याति पैतृक संपदा या व्यावसायिक प्रतिप्टा का लाभ प्राप्त है।
(ii) समाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी है तो यह संभव है कि जब समाज के न्दस्यों की आरंभ से ही समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध कराया जाए।
प्रश्न 5 सही में डॉक्टर आंबेडकर ने भावनात्मक समत्त्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाह
है जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं
उत्तर – हां, हम इससे पूर्णत: सहमत है कि डॉ० आंबेडकर ने भावनात्मक समत्त्व और मान्यता के लिए जातिवाद ज्यूला चाहा है। जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। समाज में जब तक
समता का भाव नहीं आ सकता तब तक जातिगत विभिन्नता समाप्त नहीं हो सकती। क्योंकि जाति प्रथा मनुष्य का जन्म से ही पेशा निश्चित कर देती है। अत: श्रम-विभाजन के आधार पर समाज में विभाजन बढ़ने लगता है। जाति प्रथा के आधार पर किया गया श्रम-विभाजन रुचि पर आधारित नहीं होता। अत: भावनात्मक समता लाने के लिए जातिगत श्रम-विभाजन की अपेक्षा व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें जिससे वह अपने पेशे का चुनाव स्वयं कर सके।
प्रश्न 6. आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे?
उत्तर – आदर्श समाज के तीन तत्वों स्वतंत्रता, समता और भातृता में से प्रातृता को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। केवल स्त्रियों को ही नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उन्होंने अपने आदर्श समाज का हिस्सा बनाया है। उनके आदर्श समाज में प्रत्येक बच्चे, युवा, लड़के-लड़कियां, पुरुष-स्त्री सबको समता का अधिकार दिया है। हर कोई स्वतंत्र है। समाज के प्रत्येक मनुष्य में परस्पर भाईचारा है। हर कोई बंधुत्व की भावना के बंधन में बंधा है। यहाँ प्रत्येक मनुष्य का भाईचारा दूध-पानी के मिश्रण के समान है। जैसे दूध और पानी मिलकर अलग नहीं होते ठीक वैसे ही इस आदर्श-समाज में प्रत्येक व्यक्ति परस्पर अलग नहीं हो सकता। प्रत्येक मनुष्य में अपने साथियों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव है। समाज में इतना भाईचारा है कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित होता है। समाज के बहुविधि हितों में सबका हिस्सा है। सब उनकी रक्षा हेतु भी सजग हैं।