NCERT Class 12th Hindi आरोह भाग 2 Chapter 7 शिरीष के फूल Question Answer Solution for remember question answer and score higher in board exam results. CCL Chapter offers you to quick memorize of questions and answers. Class 12 Hindi Chapter 7 notes and important questions are also available on our website. NCERT Solution for Class 12 Hindi Chapter 7 Question Answer of Aroh Bhag 2 Siris ke phool NCERT Solution for CBSE, HBSE, RBSE and Up Board and all other chapters of class 12 hindi gadhy bhaag solutions are available.
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Siris Ke Phool Class 12 Hindi Chapter 7 Question Answer
पाठ 7 शिरीष के फूल गद्य भाग प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी ) की तरह क्यों माना है?
अथवा
लेखक ने शिरीष को अद्भुत अवधूत क्यों माना है ?
उत्तर – लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत की तरह इसलिए माना है क्योंकि अवधूत जिस प्रकार मस्त, फक्कड़, अनासक्त, सरस और मादक होते हैं उसी प्रकार शिरीष के फूल भी फक्कड़ होकर ही उपजते हैं संत कबीर कालिदास, गांधी जैसे अवधूत जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संसार को जीने की प्रेरणा दी उसी प्रकार शिरीष भी भयंकर गर्मी की लू में भी फूल उठता है तथा चारों ओर अपनी सुंदरता फैलाता रहता है। यह लोगों के मन में तरंगें उत्पन्न कर देता है। भीषण गर्मी से अनासक्त होकर महकता रहता है। उसके ऊपर प्रचंड गर्मी, ल, वर्षा आदि का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 2. हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी ज़रूरी हो जाती है प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर – मनुष्य एक सौंदर्य प्रिय प्राणी है अतः वह आंतरिक रूप से अत्यंत कोमल है। इसी कोमलता के कारण वह सदा दूसरों से प्रेमपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार रखता है। सभी के साथ सद्भावना बनाए रखता है। लेकिन अपने हृदय की कोमलता को बचाने के लिए मनुष्य को कभी- कभी कठोरता को भी अपनाना चाहिए जिस से वह विपरीत परिस्थिति का डटकर सामना कर सके। जीवन-मार्ग में आने वाले संकटों और संघर्षों से जूझ सके। जैसे शिरीष अपनी कोमलता को बचाने के लिए भीषण गर्मी की लू को सहन करने के लिए बाहर से कठोर स्वभाव अपनाता है तब कहीं जाकर वह भयंकर गर्मी, धूप, आंधी को सहन कर सके। इसी प्रकार यहां लेखक ने संत कबीरदास, कालिदास का भी प्रसंग दिया है जिन्होंने कोमलता को कायम रखने के लिए समाज की विपरीत और क्रूर परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपने व्यवहार को कठोर बनाना पड़ा था।
प्रश्न 3. द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल और संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।
उत्तर – द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल और संघर्ष से भरी प्रतिकूल परिस्थितियों में व्यक्ति को जीने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा है कि मनुष्य को अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए। उसे कोलाहल और संघर्ष को देखकर जीवन से पलायन नहीं करना चाहिए बल्कि उनका साहस के साथ डटकर सामना करना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों को मोड़कर अपने अनुकूल बना लेने का प्रयास करना चाहिए। दुःख और संकट से भरी स्थितियों से अविचल और अनासक्त रहकर जीवन यापन करें जिस प्रकार शिरीष भयंकर गर्मी की लू से अनासक्त फूलों से लदा हुआ सदा फलता-फूलता रहता है।
प्रश्न 4. “हाय वह अवधूत आज कहाँ है!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?
उत्तर – वर्तमान समाज में चारों ओर मारकाट, अग्निदाह, लूटमार, खून-खराबा का बोलबाला है। मानव सभ्यता घोर संकट से परिव्याप्त है। सत्य, अहिंसा आदि आदर्श कहीं भी दिखाई नहीं देते। जन-जन आतंक की छाया में जी रहा है। वमान सभ्यता में मनुष्य विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने हेतु हिंसा मारकाट, लूटपाट पर उतावला हो उठता है। वह सत्य-अहिंसा की अपेक्षा असत्य, हिंसा मारकाट का पालन करता है। निजी स्वार्थों की पूर्ति करने में उसे किसी का भी अहित दिखाई नहीं देता। लेखक ने ऐसे संकट के समय सत्य, अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी जी को याद किया है।
प्रश्न 5. कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिरप्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय-एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाएँ।
उत्तर – कवि एक अनासक्त योगी और विदग्ध प्रेमी की भाँति होता है। यह युगीन समाज में जीवन यापन करते हुए समाज के आकर्षण और ऐश्वर्य से आसक्त नहीं होता। उसे सुख, आनंद, भोग-विलास अच्छा नहीं लगता। वह तो इन सबके आकर्षण से दूर रहकर जीवन जीता है। यह समाज के कोलाहल संघर्ष, उठापटक और प्रतिकूल परिस्थितियों में निरंतर जूझता रहता है। एक विदग्ध प्रेमी के समान समाज से दिल में जख्म लेकर सदा समाज के उपकार हेतु कार्य करता है। सुख हो या दुःख-किसी भी स्थिति में वह हार नहीं मानता। वह फक्कड़ और मस्त होकर जीवन जीता है। जैसे संत कबीरदास जी समाज से अनासक्त होकर विदग्ध प्रेमी की भांति हृदय पर चोट खाकर सदैव समाज ठद्घार के लिए जीते रहे। उन्होंने अपने फक्कड़ स्वभाव के बल पर समाज की प्रतिकूल परिस्थितियों को भी मोड़कर अनुकूल और स्वस्थ बना दिया था।
प्रश्न 6. सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर – गतिशीलता में ही जीवन है। जड़ होना ही मृत्यु को प्राप्त होना है। इस संसार में मानव जीवन में सुख दुःख, राग-विराग, आशा-निराशा आदि भाव पैदा होते रहते हैं जो मनुष्य इन परिस्थितियों में आसक्त होकर डूब जाता वह जड़ हो जाता है उसका जीवन स्थिर हो जाता है लेकिन जो मनुष्य सुख-दुःख, आशा-निराशा से अनासक्त होकर जीवन-यापन करता है तथा विपरीत परिस्थितियों का मुख मोड़कर अपने अनुकूल बना लेता है वही मनुष्य दीर्घजीवी होता है। ऐसा अनासक्त धैर्यवान, मस्त फक्कड़ मनुष्य ही कालजयी कहलाता है। वह कठिन से कठिन परिस्थितियों से निरंतर संघर्ष करता रहता है उनसे तनिक भी मुख नहीं मोड़ता। जैसे प्रस्तुत पाठ में शिरीष का वृक्ष भयंकर गर्मी की लू, आँधी आदि से अनासक्त होकर ही अपने सौंदर्य से दूसरों को जीने की चेष्टा देता है।
प्रश्न 7. आशय स्पष्ट कीजिए
(क) दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे।।
(ख) जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है..मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।
(ग) फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।
उत्तर – (क) प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि इस जहाँ में प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का निरंतर संघर्ष चल रहा है अर्थात् अनादि काल से यमराज और प्राण धारा में संघर्ष होता आ रहा है। बुद्धिमान मनुष्य निरंतर जीवन संघर्ष करते हुए जीवन यापन करते हैं लेकिन मूर्ख लोग यह समझते हैं कि जहाँ जैसा जीवन जी रहे हैं, वहाँ ही जीवन जीते रहेंगे तो यमराज की आँखों से बच जाएंगे। ऐसे मनुष्य बहुत भोले हैं जो इतना भी नहीं समझते कि मृत्यु शाश्वत है उससे कोई नहीं बच सकता। लेखक प्रेरणा देकर मनुष्य को कहता है कि मनुष्य को सदैव गतिशील रहना चाहिए एक स्थान पर कभी स्थिर नहीं रहना चाहिए क्योंकि स्थिर होना ही मृत्यु है। यदि तुम मृत्यु से बचना चाहते हो तो उध्ध्वमुखी बने रहो अर्थात् निरंतर कार्यरत रहो। निरंतर कर्मशील रहकर ही हम यमराज की कोड़े की मार से बच सकते हैं।
(ख) इन पंक्तियों से तात्पर्य है कि समाज में जो कवि अनासक्त नहीं सका और जो किए-कराये कार्यों के लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया अर्थात् जो सदा समाज के बाह्य आकर्षण, धन-ऐश्वर्य, सुख-दुःख में ही फैसा रहा, वह सच्चा कवि नहीं है। सच्चा कवि तो केवल वही है जो समाज से अनासक्त रहकर समाज को जीने की राह दिखाता है। लेखक आह्वान करते हुए कहता है कि हे दोस्तो! यदि तुम सच्चा कवि बनना चाहते हो तो अपने स्वभाव को फक्कड़ बनाओ तथा अनासक्ति का भाव पैदा करो।
(ग) इस अवतरण से आशय है कि फल हो पापड दोनों का अपना अपना अस्मिल । जनकी सला कमल सी आप में समाप्त नहीं है कि उनका जीवन तो आला पातुओं को जीवन जीने की प्रेरणा प्रताप पारने पाली अंगुली है। वे तो दूसरी वस्तुओं को अपने सास के माध्यम से जीने की चेष्टा प्रदान करते हैं।