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HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 12 अभी समय है / abhi samy hai Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.
अभी समय है Class 9 Naitik Siksha Chapter 12 Explain
अभी समय है, अभी नहीं कुछ भी बिगड़ा है,
देखो, अभी सुयोग तुम्हारे पास खड़ा है।
करना हो जो काम उसी में चित्त लगा दो,
आत्मा पर विश्वास करो, सन्देह भगा दो ।
शब्दार्थ – सुयोग – अच्छा योग। चित्त – मन।
व्याख्या – कवि कहता है कि अभी भी हमारे पास समय बचा हुआ है अभी भी कुछ ज्यादा हालात खराब नहीं हुए हैं। देखो, अभी भी अच्छा योग अर्थात समय तुम्हारे पास है। अगर तुमको उस काम को करना ही है तो अपने आप को उस काम में लगा दो। अपनी आत्मा के ऊपर विश्वास करो और अपने सन्देह की भावना को दूर कर दो।
पूर्ण तुम्हारा मनोऽभीष्ट क्या अभी न होगा?
होगा तो बस अभी, नहीं तो कभी न होगा।
देख रहे हो श्रेष्ठ समय के किस सपने को ?
छलते हो यों हाय! स्वयं ही क्यों अपने को ?
शब्दार्थ – मनोऽभीष्ट – अद्भुत। छलते – धोखा देना।
व्याख्या – तुम्हारा यह अद्भुत कार्य क्या अभी नहीं होगा। अगर यह कार्य होगा तो बस अभी, इसी समय होगा नहीं तो यह कभी भी पूरा नहीं होगा। तुम किस बेहतरीन समय के सपने देख रहे हो। ऐसा करके क्यो तुम अपने आप को ही धोखा देते हो।
आएगा कब समय, समय तो चला जा रहा,
देखो, जीवन व्यर्थ तुम्हारा छला जा रहा ।
तो पुरुषों की भाँति खड़े हो जाओ अब भी !
करके कुछ जग-बीच बड़े हो जाओ अब भी ।
शब्दार्थ – छला – धोखे में। भाँति – तरह।
व्याख्या – तुम्हारा अच्छा समय कब आएगा यह समय तो चला ही जा रहा है। और तुम्हारा यह जीवन व्यर्थ ही में मिटता जा रहा है। तो अब तुम अभी पुरुषों की भांति खड़े हो जाओ और तुम कार्य करके इस संसार में बड़े बन जाओ।
उद्योगी को कहाँ नहीं सुसमय मिल जाता ?
समय नष्ट कर कहीं सौख्य कोई भी पाता?
आलस ही ये करा रहा है सभी बहाने,
जो करना है करो अभी, कल की क्या जाने !
शब्दार्थ – उद्योगी – काम धंधा करने वाला व्यक्ति। सुसमय – अच्छा समय। सौख्य – सुख।
व्याख्या – काम धंधा करने वाले व्यक्ति को हर जगह अच्छा समय मिल जाता है। समय को बर्बाद करके कोई भी सुख नहीं पाता है। यह सारे बहाने आपसे आपका आलस ही करा रहा है। जो भी करना है अभी करो, कल की कोई क्या ही जाने।
पा सकते फिर नहीं कभी तुम इसको खोके,
चाहो तुम क्यों नहीं चक्रवर्ती भी होके ।
कर सकता कब कौन द्रव्य है इसकी समता ?
फिर भी तुम को नहीं ज़रा भी इसकी ममता ।
शब्दार्थ – चक्रवर्ती – महान सम्राट।
व्याख्या – इस बेहतरीन समय को गंवाने के बाद तुम कभी भी इसको वापस नहीं पा सकते। भले ही तुम कितने भी महान सम्राट क्यों ना हो। चलते समय में कब कौन क्या कर जाए कोई नहीं कह सकता। फिर भी तुमको समय की जरा सी भी इज्जत नहीं है।
समय ईश का दिया हुआ अति अनुपम धन है,
यही समय ही अहो! तुम्हारा शुभ जीवन है ।
इसका खोना स्वयं स्वजीवन का खोना है,
खोकर इसको स्वयं अल्प आयु होना है।
शब्दार्थ – ईश – भगवान। स्वजीवन – अपना जीवन। अल्प – कम।
व्याख्या – समय भगवान का दिया हुआ सबसे कीमती खजाना है। यही समय है, जिसमें तुम्हारा अच्छा जीवन छिपा हुआ है। इसको खोना अपने आपके जीवन को खोने के समान है। इसको खोने के बाद आपकी आयु कम हो जाती है।
तुच्छ नहीं तुम कभी एक पल को भी जानो,
पल-पल से ही बना हुआ जीवन को मानो ।
इसके सद्व्यय रूप नीर सिंचन के द्वारा,
हो सकता है सफल जन्म – तरु यहाँ तुम्हारा ।
शब्दार्थ – तुच्छ – बेकार। नीर – जल।
व्याख्या – तुम इतने भी बेकार नहीं हो अपने आप को एक पल के लिए जान लो। समय के पल-पल से बने हुए इस जीवन को स्वीकार करो। समय रुपी जल को प्रयोग करके इस भूमि पर अपने जीवन को सफल बनाओ।
ऐसा सुसमय भला और कब तुम पाओगे?
खोकर पीछे इसे सदा तुम पछताओगे !
तो इसमें वह काम नहीं क्यों तुम कर जाओ,
हो जिसमें परमार्थ तथा तुम भी सुख पाओ?
-सियारामशरण गुप्त
शब्दार्थ – सुसमय – अच्छा समय।
व्याख्या – इतना अच्छा समय भल तुम कब पाओगे। अच्छे समय को गंवाकर तुम बाद में पछताते ही रहोगे। तो क्यों ना तुम अच्छे समय में वह काम कर लो जिससे तुम्हें भगवान की भी प्राप्ति हो और तुम भी अपने जीवन में सुख की प्राप्ति कर पाओ।