बादल राग Class 12 Hindi सप्रसंग व्याख्या / Vyakhya – आरोह भाग 2 NCERT Solution

NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 बादल राग सप्रसंग व्याख्या  for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board,  Up Board, RBSE and Some other state Boards. We Provides all Classes पाठ का सार, अभ्यास के प्रश्न उत्तर और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर , MCQ for score Higher in Exams.

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NCERT Solution of Class 12th Hindi Aroh Bhag 2 /  आरोह भाग 2 बादल राग / Badal Raag Kavita ( कविता ) Vyakhya / सप्रसंग व्याख्या Solution.

बादल राग Class 12 Hindi Chapter 6 सप्रसंग व्याख्या


1. तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुःख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर

शब्दार्थ – तिरती है – तैरती है। प्लावित – फैली हुई। घन – बादल। भेरी-गर्जन – गर्जना से भरी हए। उर – हृदय / केन्द्र। विप्लव – क्रांति।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘बादल राग’ कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित से ली गई है। इसमें कवि ने क्रांति के दूत बादल का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि बादलों को क्रांति का रूप मानते हुए कहते हैं कि हे क्रांति के दूत बादल! हवा सागर पर उसी प्रकार तैरती है जिस प्रकार हमारे जीवन में सुख अस्थाई हैं। सुख पर हमेशा दुख की छाया मंडराती रहती है। वायु के समान सुख चंचल और स्थिर नहीं है। जिस प्रकार युद्ध रुपी नौका युद्ध की सामग्री से भरी होती है उसी प्रकार जनसामान्य के अंदर भी बहुत सारी इच्छाएं भरी हुई हैं। शोषित वर्ग के सामान्य लोग अपने मन में अनेक इच्छाएं लेकर क्रांति के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पृथ्वी में सोए हुए अंकुर क्रांति के दूत बादलों के स्वर को सुनकर जाग उठते हैं। वे उसी प्रकार जाग जाते हैं जिस प्रकार युद्ध भूमि में सोए हुए सैनिक नगाड़ों की आवाजें सुनकर जाग जाते हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने उच्च वर्ग के प्रति घृणा तथा निम्न वर्ग के प्रति हमदर्दी व्यक्त की है।
  • वीर रस का प्रयोग हुआ है।

2. बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार
हृदय धाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शयित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पद्धा धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।

शब्दार्थ – अशनि – बिजली। शयति – सुलाया हुआ। शस्य – हरियाली। रव – आवाज।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘बादल राग’ कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित से ली गई है। इसमें कवि ने क्रांति के दूत बादल का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम्हारी यह गर्जना की आवाज सुनकर निम्न वर्ग के लोग प्रसन्न हो जाते हैं जबकि उच्च वर्ग के लोग भयभीत हो होते हैं। उन्हें डर है कि वर्षा का पानी उनके ऊंचे ऊंचे भवनों को बहा कर ना ले जाए किंतु निम्न वर्ग के लोग प्रसन्न है ताकि उनके खेतों में सिंचाई की जा सके। वह पेड़ पौधे उगाए जा सके जिससे उनको खाने के लिए अनाज मिल सके। भाव यह है कि क्रांति के शब्दों से निम्न वर्ग के लोग ही शोभा प्राप्त करते हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने बादल को क्रांति और विद्रोह का प्रतीक मानकर इसका आह्वान किया है।
  • प्रतीकात्मक शैली है।
  • भाषा सरल व सहज है।

3. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हंसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।

शब्दार्थ – अट्टालिका – विशाल। पंक – कीचड़। क्षुद्र – तुच्छ / निम्न। प्रफुल्ल – खिला हुआ। शैशव – बचपन। सुकुमार – कोमल।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘बादल राग’ कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित से ली गई है। इसमें कवि ने क्रांति के दूत बादल का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे क्रांति के दूत बादल ! पूंजीपति या शोषक वर्ग के ऊंचे ऊंचे भवन तेरी क्रांति के बाद पहले जैसे नहीं रहे हैं। तुम्हारी क्रांति अर्थात बादलों की गर्जना सुनकर पूंजीपति वर्ग के लोग भयभीत हो रहे हैं। उन्हें डर लग रहा है कि कहीं बाढ़ का पानी कहीं उनके भवनों को गिराना दे अर्थ अर्थ निम्न वर्ग के लोग साथ मिलकर कहीं क्रांति ना कर दे। यदि वह सब मिलकर पूंजीपति वर्ग के लोगों के खिलाफ हो गए तो उनकी कमाई हुई प्रतिष्ठा पर आंच आ सकती है क्योंकि उन्होंने शोषित कर के निम्न वर्ग के लोगों से काफी मात्रा में लाभ कमाया है। यदि अब उन्होंने क्रांति कर दी तो उनका साम्राज्य नष्ट या खतरे में पड़ सकता है।

काव्य-सौंदर्य –

  • क्रांति का प्रभाव सदा बुराई पर होता है।
  • भाषा खड़ी बोली है।
  • मुक्तक छंद है।

4. रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल !
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ए विप्लव के वीर !
ऐ जीवन के पारावार !
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,

शब्दार्थ – रूद्ध – रुका हुआ। कोष – खजाना। क्षुब्ध – बेचैन। तोष – संतोष। शीर्ण – अशक्त। अधीर – व्याकुल।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘बादल राग’ कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित से ली गई है। इसमें कवि ने क्रांति के दूत बादल का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि हे क्रांति के वीर बादल! उच्च वर्ग के लोगों ने निम्न वर्ग के लोगों का शोषण करके अपने खजाने भर लिए हैं। उन्होंने गरीबों के धन एवं उनकी संपदा पर अपना अधिकार कर लिया है। किंतु अभी भी उनकी पैसा एकत्रित करने की इच्छा कम नहीं हुई ह। उनकी चाहत बढ़ती जा रही है। जिससे निम्न वर्ग के लोगों को कई प्रकार की समस्याएं हो रही है। अब उन्होंने उच्च वर्ग के खिलाफ आवाज उठा ली है अर्थात विद्रोह करना प्रारंभ कर दिया है। जिसके कारण उच्च वर्ग के लोग अपनी प्रेमिकाओं के आंचल में जाकर आश्रय ले रहे हैं। वे अपने को छुपाने का प्रयास कर रहे हैं अर्थात यह निर्बल और व्याकुल कृषक तुझे पुकार रहे हैं। कवि कहता है कि हे जीवन के सागर! तुम इन्हें नया जीवन प्रदान करने वाले हो। तुम ही इन्हें मुक्त करा सकते हो और नया जीवन दे सकते हो।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि की विद्रोही भावना व्यक्त हुई है।
  • मुक्तक छंद है।
  • किसान की स्थिति का चित्रण किया गया है।

 

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