NCERT Class 10 Hindi Chaya Mat Chuna-Girija Kumar Mathur Lekhak Jivan Parichay ( गिरजा कुमार माथुर लेखक जीवन परिचय )of Kshitij Bhag 2 / क्षितिज भाग 2 Specially Designed for Write in Exams of CBSE, HBSE, Up Board, Mp Board, Rbse.
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NCERT Solution of Class 10 Hindi क्षितिज भाग 2 Kavita Chaya Mat Chuna Lekhak Girija Kumar Mathur / छाया मत छूना – गिरजा कुमार माथुर लेखक जीवन परिचय / Lekhak Jivan Parichay for Exams.
छाया मत छूना – गिरजा कुमार माथुर लेखक जीवन परिचय
1. सामान्य जीवन परिचय-
प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों में गिरिजाकुमार माथुर का नाम अत्यधिक महत्वपूर्ण है। तार-सप्तक के कवियों में गिरिजाकुमार माथुर एक कवि हैं। उनका जन्म सन् 1918 में मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने अपनी आरम्भिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के झांसी नगर में प्राप्त की। आगे चलकर उन्होंने 1938 में विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर से बी. एस. सी. परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम ए., की परीक्षा पास की तथा एल. एल. बी. की उपाधि भी प्राप्त की। आगे चलकर माथुर जी ने वकालत करनी शुरू की लेकिन शीघ्र ही इस व्यवसाय को छोड़कर वे आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से जुड़ गए। उन्होंने दूरदर्शन के डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर भी काम किया। इसी पद से वे सेवानिवृत हुए। बाद में वे काफी समय तक स्वतंत्र लेखन का कार्य करते रहे। सन् 1984 में इस प्रयोगवादी कवि का देहांत हो गया।
2.साहित्यिक रचनाएँ-
गिरिजाकुमार की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य-संग्रह – ‘शिलापंख चमकीले’, ‘धूप के धान’, ‘नाश और निर्माण’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘जो बंध नहीं सका’ ।
नाटक – जन्म कैद।
आलोचना – ‘नई कविताः सीमाएँ और संभावनाएँ।
3. साहित्यिक विशेषताएँ-
भले ही गिरिजाकुमार माथुर एक सफल प्रयोगवादी कवि थे लेकिन रूमानी भाव-बोध उनकी कविता का प्रमुख प्रतिपाद्य है। इसका कारण यह है कि वे छायावाद से अत्यधिक प्रभावित रहे हैं। इसलिए उनके साहित्य में अद्भूत विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। फलस्वरूप उनके काव्य में एक और रोमांस और संताप की तरल अनुभूति है तो दूसरी ओर सामाजिक जीवन की अनुभूतियों का यथार्थ भी है। उनकी काव्य रचनाओं में प्रयोगवाद की सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। उन्होंने हमेशा विषय-वस्तु की मौलिकता पर बल दिया है लेकिन यह भी निश्चित है कि गहन अनुभूति तथा संवेदनशीलता के कारण उनका काव्य सरल तथा रोचक है।
4. भाषा-शैली-
गिरिजाकुमार माथुर की भाषा शुद्ध साहित्यिक हिन्दी भाषा है। कहीं-कहीं पर वे देशज तथा विदेशज शब्दों का भी विषयानुकूल प्रयोग करते हैं। उनका शब्द चयन सर्वथा तर्कसंगत है तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक बन पड़ा है। माथुर जी ने शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों का अधिक प्रयोग किया है फिर भी अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, व्यतिरेक आदि अलंकारों का प्रयोग उनके काव्य में देखा जा सकता है। वे प्रायः प्रतीकों तथा सकता का भी प्रयोग करते हैं। वर्णनात्मक शैली में रचित काव्य रचनाओं में माथुर ने प्रायः मुक्त छंद का ही प्रयोग किया है।