छत्रपति शिवाजी एवं पेशवा Class 8 इतिहास Chapter 4 Important Question Answer – हमारा भारत III HBSE Solution

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HBSE Class 8 इतिहास / History in hindi छत्रपति शिवाजी एवं पेशवा / Chhatrapati Shivaji avam peshwa Important Question Answer for Haryana Board of chapter 4 in Hamara Bharat III Solution.

छत्रपति शिवाजी एवं पेशवा Class 8 इतिहास Chapter 4 Important Question Answer


प्रश्न 1. छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन परिचय बताएं।

उत्तर – शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 ई. को पूना के प्रसिद्ध शिवनेरी किले में हुआ था। किले की अधिष्ठात्री देवी के नाम पर इनका नाम शिवा रखा गया। इनके पिताजी का नाम शाहजी भोंसले था, जो मराठा सरदार थे एवम् अहमदनगर के निजामशाही राज्य में एक प्रतिष्ठित पद पर थे। इनकी माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी का बचपन माता जीजाबाई के मार्गदर्शन में बीता। शिवाजी के चरित्र पर उनका गहरा प्रभाव पड़ा। जीजा बाई शिवा को बाल्यकाल में रामायण, महाभारत एवं भारतीय वीरात्माओं की कहानियाँ सुनाती थी, जिसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने शिवाजी को धर्म, संस्कृति एवं राजनीति की शिक्षा भी प्रदान की। दादा कोंडदेव ने घुड़सवारी, तलवारबाजी व निशानेबाज़ी की शिक्षा दी। शिवाजी बचपन में अपनी उम्र के बालक इकट्ठा करके, उनके राजा बन, युद्ध करके, किले जीतने का खेल खेला करते थे। मुगलों के अत्याचारों की कहानी सुनकर वे बैचेन हो जाते थे। उम्र बढ़ने के साथ-साथ मुगल शासन की बेड़ियाँ तोड़ फेंकने के विचार उनके मन में उठने आरम्भ हो गये थे। उन्नीस वर्ष की आयु में शिवाजी ने अपना विजय अभियान आरम्भ किया। उनका यह संघर्ष जीवन भर चलता रहा लम्बी बीमारी से 3 अप्रैल 1680 ई. को वे इस संसार से विदा हो गये।


प्रश्न 2. हिंदू स्वराज की स्थापना हेतु शिवाजी महाराज के संघर्ष का वर्णन करें।

उत्तर – उन्नीस वर्ष की आयु में शिवाजी ने अपना विजय अभियान शुरू किया। उन्होंने आसपास के किलों पर कब्जा करने के लिए सभी जाति के लोगों को संगठित किया। युवकों के सहयोग से उन्होंने दुर्ग विजय का कार्य आरंभ किया। धीरे-धीरे उन्होंने आसपास के सभी किलों पर अधिकार कर लिया। शिवाजी की इस साम्राज्य विस्तार नीति से बीजापुर का शासक आदिलशाह बहुत चिंतित था। उसमें शिवाजी के पिता को कैद कर लिया, लेकिन शिवाजी ने बड़ी युक्ति व बुद्धिमत्ता से अपने पिता को कैद से मुक्त करा लिया। इसके बाद उन्होंने एक बहुत बड़ी सेना का निर्माण किया और बहुत बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। पश्चिमी महाराष्ट्र के बड़े क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित करने के बाद शिवाजी का राज्याभिषेक 6 जून, 1674 ई. को हिन्दू रीति-रिवाजों से किया गया। उन्होंने ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की। इस प्रकार उन्होंने हिंदू स्वराज की स्थापना की।


प्रश्न 3. पेशवा बाजीराव प्रथम के संघर्ष और योगदान का वर्णन करें।

उत्तर – बाजीराव विश्वनाथ की मृत्यु के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र बाजीराव पेशवा बना। छोटी आयु होने पर भी बाजीराव तीव्र बुद्धि और बलवान शरीर का था। वह राजनीतिक और शासन कार्य में दक्ष था। बाजीराव प्रथम को लड़ाकू पेशवा के रूप में स्मरण किया जाता है। वह शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध का सबसे बड़ा प्रतिपादक था। बाजीराव प्रथम ने हिंदू पादशाही का आदर्श रखा। बाजीराव ने राज्य की सेना को पुनः संगठित किया। 1731 ई. बहुत से प्रदेशों में मराठों का चौथ और सरदेशमुखी का अधिकार सर्वमान्य हो गया। बुन्देलखंड को 1737 ई. में विजय किया और दिल्ली की ओर कूच किया। दक्कन से निजाम-उल-मुल्क मुगल सम्राट की सहायता के लिए आगे बढ़ा किन्तु भोपाल के निकट उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। उसने औपचारिक रूप से मालवा और गुजरात मराठों को देने पड़े। निजाम-उल मुल्क ने बाजीराव को 50 लाख रुपये युद्ध की क्षति के रूप में देना भी स्वीकार किया। मराठों ने पुर्तगालियों से 1739 ई. में बसीन का द्वीप छीन लिया। बाजीराव मराठा शक्ति की नींव दृढ़ करके 1740 ई. में चल बसा।

प्रश्न 4. मराठों के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएं कौन-कौन सी थी?

उत्तर – मराठों के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  • मराठा प्रशासन में स्वयं महाराजा प्रशासन का केंद्र बिंदु होता था। महाराजा प्रमुख रूप से ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण करता था। छत्रपति का राज्याभिषेक वैदिक परंपरा के अनुसार भव्य समारोह में किया जाता था।
  • प्रशासन में सहायता व परामर्श के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद की नियुक्ति की जाती थी जिसे अष्टप्रधान कहा जाता था। इसका प्रमुख कार्य राजा को परामर्श देना मात्र था। परामर्श स्वीकार करना छत्रपति का निर्णय होता था।
  • पेशवा राजा का प्रधानमंत्री होता था। राजा की अनुपस्थिति में उसके कार्यों की देखभाल भी पेशवा ही करता था। सरकारी पत्रों तथा दस्तावेज़ों पर छत्रपति की मोहर के बाद अपने हस्ताक्षर करता था।
  • मराठा राज्य की आय का प्रमुख साधन कृषि कर तथा अन्य प्रचलित कर थे। सरदेशमुखी कर के रूप में किसानों के उत्पादन का दसवां भाग वसूला जाता था। दूसरा महत्वपूर्ण आय का साधन चौथ नामक कर था। यह पड़ोसी राज्य से उसकी आय का 1/4 भाग के रूप में वसूला जाता था।
  • मराठों के पास एक अत्यंत शक्तिशाली सेना होती थी, जिसका वेतन सीधे शाही खजाने से दिया जाता था।  सेना में पदाति घुड़सवार प्रमुख थे। घुड़सवारों को बारगीर, सिलेदार, पागा आदि प्रमुख श्रेणियों में बांटा जाता था। सेना नियमित तथा हथियारों से सुसज्जित थी। संपूर्ण सेना ‘सर-ए-नौबत’ नामक अधिकारी के अधीन आती थी।
  • मराठा साम्राज्य में न्याय प्राचीन भारतीय परम्पराओं के अनुसार किया जाता था। न्याय का सर्वोच्च मुखिया छत्रपति अथवा पेशवा होता था। वह न्यायधीश एवं पंडितराव की सहायता से निर्णय देता था। शिवाजी का न्यायालय धर्मसभा या हुजूर-हाज़िर मजलिस कहा जाता था। गांव में पटेल, जिले में मामलतदार, सूबे में सर-सूबेदार न्याय का कार्य करते थे। गांव के झगड़ों का फैसला पंचायत करती थी।

प्रश्न 5. मराठों की भू-राजस्व व्यवस्था कैसी थी।

उत्तर – मराठा राज्य की आय का प्रमुख साधन कृषि कर तथा अन्य प्रचलित कर थे। सरदेशमुखी कर के रूप में किसानों के उत्पादन का दसवां भाग वसूला जाता था। दूसरा महत्वपूर्ण आय का साधन चौथ नामक कर था। यह पड़ोसी राज्य से उसकी आय का 1/4 भाग के रूप में वसूला जाता था। इसके अलावा गृह कर, सिंचित भूमि कर, सीमा शुल्क आदि राज्य की आय के प्रमुख साधन थे।


प्रश्न 6. शिवाजी द्वारा अफजल खान का वध क्यों किया गया?

उत्तर – 1659 ई. में बीजापुर के सुल्तान ने अपने सेनापति अफज़ल खाँ को अनेक प्रलोभन देकर शिवाजी के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया। वह बीजापुर के सर्वोत्तम सेनापतियों की बड़ी सेना लेकर गया। अफज़ल खाँ युद्ध किए बिना ही शिवाजी को छल से मारना चाहता था। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक कर अपने दूत कृष्णजी भास्कर को भेजकर शिवाजी को संधि प्रस्ताव भिजवाया। कृष्णजी भास्कर ने शिवाजी को अफज़ल खाँ की शिवाजी को मारने की योजना के बारे में बता दिया। अतः शिवाजी इस सन्धि के लिए तैयार हो गए। प्रतापगढ़ के किले के पास दोनों के मिलने का स्थान निश्चित किया गया। शिवाजी जैसे ही पहुँचे अफज़ल खाँ ने गले मिलने के बहाने से अपने दोनों हाथ फैला कर कटार से वार करने की कोशिश की तो शिवाजी ने बाघ नख से अफजल खाँ को मार गिराया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी। इस घटना के बाद शिवाजी की गणना श्रेष्ठ योद्धाओं में की जाने लगी।


प्रश्न 7. पुरंदर की संधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर – 1664 ई. में औरंगज़ेब ने अपने राज्य के योग्य व अनुभवी मिर्ज़ा राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध अभियान के लिए नियुक्त किया। मिर्ज़ा राजा जयसिंह महान सेनानायक के साथ-साथ कूटनीतिज्ञ भी था। उसने बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय शक्तियों और छोटे-छोटे सामन्तों का सहयोग लेकर पुरंदर पर आक्रमण कर दिया। मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने बड़ी ही चतुराई से पुरंदर के किले पर घेरा डाला। जब किले को बचाने में शिवाजी की कोई युक्ति काम नहीं आई तो शिवाजी ने मिर्ज़ा राजा जयसिंह के साथ वार्ता आरंभ की। शिवाजी व जयसिंह में सन्धि वार्ता हुई। संधि की शर्तें इस प्रकार थी:

  1. शिवाजी अपने 35 किलों में से 23 किले मुगलों को दे देंगे।
  2. शिवाजी दक्षिण भारत में मुगलों की तरफ से युद्ध में भाग लेंगे तथा उनके प्रति वफादार रहेंगे।
  3. शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में 5000 का मनसब दिया जाएगा।

जयसिंह के आग्रह पर पुरंदर की सन्धि के तहत शिवाजी 12 मई 1666 ई. औरंगज़ेब से मिलने आगरा पहुँचे।


प्रश्न 8. पानीपत के तीसरे युद्ध का वर्णन कीजिए।

उत्तर – 14 जनवरी 1761 ई. को सदाशिव राव भाऊ तथा अहमदशाह अब्दाली के मध्य युद्ध हुआ। कड़े संघर्ष के बाद युद्ध में मराठों की हार हुई। इस युद्ध में विश्वास राव, सदाशिव राव भाऊ, जसवंत राव, तंकोजी सिंधिया जैसे सरदार तथा लगभग 28000 सैनिक काम आए। मराठा इतिहासकार कांशीराज पंडित के अनुसार, “पानीपत का तृतीय युद्ध मराठों के लिए प्रलयकारी सिद्ध हुआ । ”


प्रश्न 9. शिवाजी का अष्टप्रधान परिषद क्या था?

उत्तर  शिवाजी ने प्रशासन में सहायता व परामर्श के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद की नियुक्ति की, इसे अष्टप्रधान कहा जाता था। इसका प्रमुख कार्य राजा को परामर्श देना मात्र था। परामर्श स्वीकार करना छत्रपति का निर्णय होता था।


प्रश्न 10. मराठों की न्याय प्रणाली व्यवस्था कैसी थी।

उत्तर – मराठा साम्राज्य में न्याय प्राचीन भारतीय परम्पराओं के अनुसार किया जाता था। न्याय का सर्वोच्च मुखिया छत्रपति अथवा पेशवा होता था। वह न्यायधीश एवं पंडितराव की सहायता से निर्णय देता था। शिवाजी का न्यायालय धर्मसभा या हुजूर-हाज़िर मजलिस कहा जाता था। गांव में पटेल, जिले में मामलतदार, सूबे में सर-सूबेदार न्याय का कार्य करते थे। गांव के झगड़ों का फैसला पंचायत करती थी। मराठों की न्याय प्रणाली काफी कठोर व सुधारात्मक थी।


 

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