(i) छोटा मेरा खेत (ii) बगुलों के पंख Class 12 Hindi सप्रसंग व्याख्या / Vyakhya – आरोह भाग 2 NCERT Solution

NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 (i) छोटा मेरा खेत (ii) बगुलों के पंख सप्रसंग व्याख्या  for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board,  Up Board, RBSE and Some other state Boards. We Provides all Classes पाठ का सार, अभ्यास के प्रश्न उत्तर और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर , MCQ for score Higher in Exams.

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NCERT Solution of Class 12th Hindi Aroh Bhag 2 /  आरोह भाग 2 (i) छोटा मेरा खेत (ii) बगुलों के पंख / Chota mera khet Bagulo ke pankh Kavita ( कविता ) Vyakhya / सप्रसंग व्याख्या Solution.

(i) छोटा मेरा खेत (ii) बगुलों के पंख Class 12 Hindi Chapter 9 सप्रसंग व्याख्या


छोटा मेरा खेत (फिराक गोरखपुरी ) सप्रसंग व्याख्या


1. छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।

शब्दार्थ – चौकोना – चार कोने वाला। अंधड़ – आंधी। क्षण – पल।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ से ली गई है। जिसके लेखक ‘उमाशंकर जोशी’ हैं। इसमें कवि ने पृष्ठ रूपी खेत में कवि कर्म को विकसित किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि मेरा यह कागज का पन्ना बिल्कुल खेत के समान चौकोर है। इसमें विचारों की आंधी के द्वारा खेत में बीज बोया गया है। अर्थात कवि ने कविता लिखनी शुरू कर दी है।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने कागज के पन्ने को खेत के रूपक द्वारा स्पष्ट किया है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
  • खड़ी बोली भाषा है।

2. कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष,
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

शब्दार्थ – निःशेष – समाप्त। फूटे – पैदा हुए। पल्लव – पत्ते। पुष्पो – फूलों से। नमित – झुका हुआ।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ से ली गई है। जिसके लेखक ‘उमाशंकर जोशी’ हैं। इसमें कवि ने पृष्ठ रूपी खेत में कवि कर्म को विकसित किया है।

व्याख्या –  कवि का कथन है कि मेरे छोटे खेत रूपी कागज के पन्ने पर जब रचना के विचार और अभिव्यक्त का बीज बोया गया तो वह कल्पना रूपी रसायनों को पीकर मानों समाप्त ही हो गया। लेकिन फिर कल्पना के सहारे विकृत होकर उसमें से शब्द रूपी अंकुर फूटने लगे। तत्पश्चात शब्द रूपी अंकुर पत्ते और फूलों से लदे हुए एक पूर्ण कृति के स्वरूप को ग्रहण किया।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि कर्म की क्रमानुसार पूर्णता का चित्रण है।
  • खड़ी बोली भाषा का प्रयोग है।
  • बिंब योजना सुंदर है।

3. झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।

शब्दार्थ – अलौकिक – अनूठा। रोपाई – बीज बोने की प्रक्रिया। अनंतता – हमेशा। जरा – थोड़ा। रस – फल का रस। अक्षय – जो खत्म ना हो।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ से ली गई है। जिसके लेखक ‘उमाशंकर जोशी’ हैं। इसमें कवि ने पृष्ठ रूपी खेत में कवि कर्म को विकसित किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि जब पेड़ पौधे बड़े हो जाते हैं अर्थात फसल जब पक जाती है तो उसे काटा जाता है ठीक उसी प्रकार जब पन्ने रूपी खेत में कविता रूपी फल झूमने लगते हैं तो उससे अद्भुत रस की अनेक धाराएं फूट पड़ती हैं। जो अमृत के समान लगती हैं। यह रचना पल भर में रची थी, परंतु उससे फल हमेशा तक मिलते रहते हैं। जैसे पाठकों के लिए यह साहित्य बार बार पढ़ा जा सकता है।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने साहित्य रस की अमृतधारा को अमर बताया है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
  • मुक्तक छंद का प्रयोग है।

बगुलोंं के पंख (फिराक गोरखपुरी ) सप्रसंग व्याख्या


1. नभ में पाँती-बँधे बगुलोंं के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बंधी बगुलोंं की पाँखें।

शब्दार्थ – नभ – आकाश। सतेज – उज्जवल। श्वेत – सफेद। काया – शरीर। निज‌ – अपनी । पाँती-बंधी – पंक्तिबद्ध। पाँखे – पंख।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बगुलोंं के पंख’ से ली गई हैं। जिसके रचयिता कवि उमाशंकर जोशी हैं।

व्याख्या – कवि आकाश में छाए काले काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगलो के सुंदर सुंदर पंखो को देखता है। वह कहता है कि मैं आकाश में पंक्ति बदबू फूलों को उड़ते देखकर उन्हें देखता ही रहता हूं। यह दृश्य मेरी आंखों को चुरा ले जाता है। काले काले बादलों की छाया आकाश पर छाई हुई है। सायकाल में चमकीला सफेद शरीर उन पर तैरता हुआ प्रतीत होता है। यह दृश्य इतना आकर्षक होता है कि अपने जादू से यह मुझे धीरे-धीरे बांध रहा है। मैं उसमें खोता चला जा रहा हूं। कवि आह्वान करता है कि इस आकर्षक दृश्य के प्रभाव को कोई रोक दे। वह इस दृश्य के प्रभाव से बचना चाहता है परंतु यह दृश्य तो कवि की आंखों को चुरा कर ले जा रहा है। आकाश में उड़ते पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों में कभी की आंखें अटककर रह जाती हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • खड़ी बोली भाषा सरल और सहज है।
  • बिंब योजना का सुंदर प्रयोग है।

 

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