Class | 12 |
Textbook | NCERT |
Book | आरोह भाग 2 |
Category | Important Questions |
Class 12 Hindi Chapter 15 (i) श्रम विभाजन और जाति प्रथा (ii) मेरी कल्पना का आदर्श समाज Important Question Answer
प्रश्न 1. जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अम्बेडकर ने क्या तर्क दिए ?
उत्तर – जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अंबेडकर ने निम्नलिखित तर्क दिए-
- भारत की जाति प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती है बल्कि विभाजित वर्गों को एक दूसरे की अपेक्षा उच्च नीच भी करार देती है जो विश्व के किसी भी समझ में नहीं पाया जाता।
- जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ श्रमिक विभाजन का रूप भी लिए हुए हैं।
- यदि श्रम विभाजन को जाति प्रथा मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।
प्रश्न 2. आदर्श समाज की कल्पना का चित्रण कीजिए।
or
आदर्श समाज की कल्पना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित होना चाहिए। किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सब का भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन में अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र भी है।
प्रश्न 3. ‘जाति-प्रथा’ के आधार पर श्रम विभाजन को स्वाभाविक क्यों नहीं माना गया ?
उत्तर – जाति प्रथा को यदि श्रम विभाजन मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। कुशल व्यक्ति श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें जिससे वह अपना कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। लेकिन वास्तविकता में जाति प्रथा का सिद्धांत यह है कि बिना किसी की निजी क्षमता का विचार किए पहले से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
प्रश्न 4. ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
OR
श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ का सारांश लिखें।
उत्तर – जाति-प्रथा श्रम-विभाजन का ही एक रूप है। लोग भूल जाते हैं कि श्रम-विभाजन श्रमिक-विभाजन नहीं है। श्रम-विभाजन निस्संदेह आधुनिक युग की आवश्यकता है, श्रमिक-विभाजन नहीं। जाति-प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन और इनमें ऊँच-नीच का भेद करती है। वस्तुत: जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन नहीं माना जा सकता क्योंकि श्रम-विभाजन मनुष्य की रूचि पर होता है, जबकि जाति-प्रथा मनुष्य पर जन्म के आधार पर पेशा थोप देती है। मनुष्य की रूचि-अरूचि इसमें कोई मायने नहीं रखती। ऐसी हालत में न कुशलता आती है न श्रेष्ठ उत्पादन होता है। चूँकि व्यवसाय में, ऊँच-नीच होता रहता है, अतः जरूरी है पेशा बदलने का विकल्प। चूँकि जाति-प्रथा में पेशा बदलने की गुंजाइश नहीं है, इसलिए यह प्रथा गरीबी और उत्पीडन तथा बेरोजगारी को जन्म देती है। आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित होता है।
प्रश्न 5. लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?
उत्तर – लेखक के अनुसार ‘दासता’ से अभिप्राय केवल कानूनी पराधीनता से नहीं है बल्कि दासता तो वह स्थित है जिसमें कुछ लोगों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है।
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