Class 9 Hindi Naitik Siksha BSEH Solution for Chapter 11 गिरिधर की कुण्डलियां Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 9 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.
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HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 11 गिरिधर की कुण्डलियां / Giridhar ki kundaliyan Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.
गिरिधर की कुण्डलियां Class 9 Naitik Siksha Chapter 11 Explain
1. साई सब संसार में, मतलब का ब्यौहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार।।
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोलैं।
पैसा रहा ना पास यार मुख से नहिं बोलें।।
कह गिरिधर कविराय, जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोइ साईं।।
शब्दार्थ – ब्यौहार – व्यवहार। गाँठ – पास। ताको – उसके । यार – मित्र। संग – साथ। नहिं – नही। बेगरजी – स्वार्थ। प्रीति, यार बिरला – अनोखा।
व्याख्या – इस छंद के माध्यम से कवि वर्तमान में इस संसार की वास्तविक स्थिति का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि आजकल के लोग मतलबी हो चुके हैं कि जब तक आपके पास पैसा है तब तक ही आपके सब मित्र है और आपके साथ ही रहेंगे लेकिन जब आपके पास पैसा नहीं रहा आपको कोई पूछेगा तक नहीं। यहां तक कि जो रात दिन आपके गुणगान करने वाले आपके साथ रात दिन उठने बैठने वाले भी प्रेम से बात तक नहीं करेंगे आपको वह लोग अपने लिए एक मुसीबत समझेंगे गिरधर कविराय कहते हैं कि इस संसार का यही लेखा-जोखा है स्वार्थ से सब प्रीति रखते हैं कोई विरले ही मिलते हैं जो बिना मतलब के भी प्रीति रखते हैं।
2. बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।।
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान-पान सम्मान, राग रंग मनहि न भावै।।
कह गिरिधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारै।
खटकत है जिय माहिं, कियो जो बिना विचारे।।
शब्दार्थ – पाछे – बाद में। पछताय – पछताता है। काम बिगारे आपनो – अपना। चित्त – मन। टरत – टालना। खटकत – खटकना।
व्याख्या – कवि हमें इस छंद के माध्यम से समझाना चाहते हैं कि संसार में कोई भी काम करने से पहले उस पर एक बार विचार जरूर करें नहीं तो काम तो खराब होता ही है साथ ही में दुनिया में हंसी भी होती है और मन में अपने आप पर ग्लानि महसूस होती है और इस संसार में कुछ भी अच्छा नहीं लगता। खाना-पीना, मान सम्मान, राग रंग कुछ भी उसे अच्छा नहीं लगता, जीते जी मरण लगता है कवि गिरधर कहते हैं कि ऐसे दुख की कोई औषधि भी नहीं होती और रात दिन खटकता रहता है जो बिना विचारे किया हुआ काम होता है। इसलिए हमें भी बिना विवेक विचार किए कोई भी काम भगवत भजन को छोड़कर नहीं करना चाहिए।
( Hint : हम एक छोटे से पर बहुत ही उपयोगी ज्ञानवर्धक चुटकुले के माध्यम से स्पष्ट रूप से समझेंगे कि एक बार किसी के घर एक नेवले को पाल रखा था उस घर में वह औरत उसका नवजात शिशु और वह नेवला रहते थे पति काम से बाहर गया हुआ था और वह पानी का घड़ा लाने बार पनघट पर गई हुई थी इधर घर में वह नेवला और बच्चा दोनों खेल रहे थे इतने में एक साथ बच्चे की तरफ बढ़ रहा था जब नेवले ने देखा तो नेवला उस बच्चे को सांप से बचाने के लिए सांप पर झपटा और काफी देर की कशमकश के बाद अंततोगत्वा उस नेवले ने सांप को मार दिया और उस बच्चे की जान बचा ही ली नेवला बाहर ड्योडी पर बैठा अपने मुंह को साफ कर रहा था इतने में वह औरत पानी का घड़ा लेकर आई और ड्योडी पर बैठे नेवले को खून से लथपथ देखा तो सोचा कि इसने मेरे बच्चे को मार दिया होगा तभी खून में लथपथ हुआ है उसने आव देखा न ताव भरा घड़ा उस पर पटक दिया और नेवला वही मर गया दौड़ी-दौड़ी अंदर गई और देखा तो बच्चा खेल रहा था और उसके पास एक तरफ सांप मरा पड़ा था जब यह नजारा देखती है तो अपने आप को कोसती है कि यह मैंने क्या कर दिया पर जब बात बीत गई तो अब क्या होना था सिवाय पश्चाताप के अब कुछ भी शेष नहीं था। )
3. साईं अपने भ्रात को, कबहुँ न दीजे त्रास।
पलक दूर नहीं कीजिये, सदा राखिये पास।।
सदा राखिये पास, त्रास कबहुँ नहिं दीजै।
त्रास दिये लंकेस, ताहि की गति सुन लीजै।।
कह गिरिधर कविराय, राम सों मिलियो जाई।
पाय विभीषण राज, लंकपति बाज्यो साईं।।
शब्दार्थ – भ्रात – भाई। कबहुँ – कभी भी। त्रास – दुख। लंकेस – लंकापति रावण।
व्याख्या – इस छंद के माध्यम से कवि हमें बताते हैं कि हमें अपने बंधु से कभी भी वैरभाव नहीं रखना चाहिए। हमेशा जितना हो सके प्रेम से रहना चाहिए। मेरा भाई मुझसे एक पल भी दूर ना हो ऐसा भाई के प्रति सद्भाव रखना चाहिए। भाई एक प्रकार की भूजा के समान होता है उसे किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं देनी चाहिए। लंकापति रावण ने अपने भाई विभीषण को खूब तकलीफें दी जिसके फलस्वरूप विभीषण रामचंद्र जी से जाकर मिल गया और त्रिलोक विजय रावण की मृत्यु का राज रामचंद्र जी को बता दिया और रावण को मरना पड़ा। अंत में रामचंद्र जी ने विभीषण को लंका का राजा बना दिया।
4. रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामहि में सोय।
छाँह न वाकी बैठिए, जो तरु पतरो होय।।
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा दैहै।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहै।।
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाता सब झरि जाय, तऊ छाया में रहिए।।
शब्दार्थ – घामहि – धूप। तरु पतरो – कमजोर वृक्ष।
व्याख्या – इस कुंडली के माध्यम से कवि हमें मजबूत वृक्ष की छाया में बैठने को कह रहे हैं। कमजोर वृक्ष तो हल्की सी हवा के चलने पर स्वयं को भी नहीं बचा पाते तो दूसरों को क्या सहारा देंगे अर्थात निर्बल व्यक्ति की सहायता नहीं लेनी चाहिए।।
5. बीति ताहि बिसारिदे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ।।
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हँसै न कोइ, चित्त में खता न पावै।।
कह गिरिधर कविराय, यही करु मन परतीती।
आगे की सुध लेइ, बात बीती सो बीती।।
शब्दार्थ – बीति – बित चुकी बातें। सुधि – होश संभालना। खता – धोखा।
व्याख्या – इस छंद के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि अगर कोई बात बिगड़ गई है तो उसका चिंतन छोड़ कर आगे की सोचनी चाहिए। अब तो जो बीत रही है वर्तमान में उसको धैर्य के साथ सहन करो जो तेरे साथ बन रही है उसपर ध्यान दें। भला बुरा सबका सुन लीजिए क्योंकि दुर्जन लोग ऐसा करने पर आप पर हसेंगे नहीं और चित् में कोई प्रकार की ग्लानी भी ना रहेगी। गिरधर कविराय कह रहे हैं कि ऐसे समय में मन को समझा कर आगे का सुख देख कर ही चलना चाहिए।