Class 11 Hindi Naitik Siksha BSEH Solution for Chapter 11 प्रेरक दोहे Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 11 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.
Also Read – HBSE Class 11 नैतिक शिक्षा Solution
Also Read – HBSE Class 11 नैतिक शिक्षा Solution in Videos
HBSE Class 11 Hindi Naitik Siksha Chapter 11 प्रेरक दोहे / Prerak Dohe Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 11th Book Solution.
प्रेरक दोहे Class 11 Naitik Siksha Chapter 11 Explain
दुःख में सुमिरन सब करें,
सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे,
दुःख काहे को होय || कबीर
शब्दार्थ – सुमिरन – याद। कोय – कोई।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते है कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई भी याद नहीं करता है। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख होगा ही क्यों।
साईं इतना दीजिए,
जा में कुटुम्ब समाए ।
मैं भी भूखा न रहूँ,
साधु न भूखा जाए || कबीर
शब्दार्थ – कुटुम्ब – परिवार।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते है कि आप मुझे केवल इतना दीजिये कि जिसमे मेरे और मेरे परिवार की गुजर बसर हो जाये। और मेरे घर से कोई भी साधु संत भुखा न जाए।
काल करे सो आज कर,
आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी,
बहुरि करेगा कब || कबीर
शब्दार्थ – काल – कल।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि कभी भी कल पर कोई काम मत छोड़ो, जो काम कल करना है उसे आज कर लो और जो आज करना है उसे अभी कर लो। किसी को पता नहीं अगर कहीं अगले ही पल में प्रलय आ जाये तो जीवन का अंत हो जायेगा फिर जो काम करना है वो कब करोगे।
रात गंवाई सोय के,
दिवस गंवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय || कबीर
शब्दार्थ – गंवाई – गँवा देना। दिवस – दिन। खाय – खाते हुए।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदल रहा है।
आछे दिन पाछे गए,
हरि से किया न हेत ।
अब पछताए होत क्या,
जब चिड़िया चुग गई खेत ।। कबीर
शब्दार्थ – आछे – अच्छे। पाछे – पीछे। हेत – याद।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि अच्छे दिन तो अब पीछे चले गए हैं और तुमने भगवान को याद भी नहीं किया। अब तुम्हारे पछताने का क्या फायदा जब चिड़िया खेत को चुग ही गई अर्थात खेत में दाना डालते ही हमें उसकी रक्षा करनी होती है। चिड़िया के द्वारा सभी दानें खेत से उठा लिए जाने पर अब पछताने का क्या फायदा होगा। चिड़िया के माध्यम से कवि बताता है कि अब तुम्हारी आयु ही पूर्ण होने को आई है, बुढापा आ चूका है अब हाथ मलने से कुछ हाशिल होने वाला नहीं है।
राम नाम की लूट है,
लूट सके तो लूट ।
फिर पाछे पछताओगे,
प्राण जाहि जब छूट ।। कबीर
शब्दार्थ – पाछे – बाद में।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि अभी राम नाम की लूट मची है, अभी तुम भगवान् का जितना नाम लेना चाहो ले लो। नहीं तो समय निकल जाने पर, अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे कि मैंने तब भगवान राम की पूजा क्यों नहीं की।
माँगन मरण समान है,
मति माँगो कोई भीख ।
माँगन ते मरना भला,
यह सतगुरू की सीख || कबीर
शब्दार्थ – माँगन – मांगना। मरण – मरने के। मति – मत।
व्याख्या – माँगना मरने के बराबर है, इसलिए किसी से भीख मत मांगो। मांगने से मर जाना बेहतर है यही सतगुरु की सीख है।
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग ।
बाँटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी का रंग ।। रहीम
शब्दार्थ – बाँटन वारे – बांटने वाले
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं, ऐसे व्यक्ति निस्संदेह धन्य हैं, जिनका अंग अंग परोपकार के लिए आतुर रहता है। वह जीवन की सार्थकता परोपकार में ही मानता है। जैसे बांटने वाले को ही मेहंदी का रंग लग जाता है।
रहिमन विपदा हूँ भली, जो थोरे दिन होय ।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।। रहीम
शब्दार्थ – थोरे दिन – थोड़े समय। हित – अच्छा।
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि यदि विपत्ति थोड़े समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है कि संसार में कौन हमारा अच्छा चाहने वाला है और कौन नहीं है।
कहि रहीम संपति सगै, बनत बहुत बहु रीत ।
विपति कसौटी जे कसै, ते ही साँचे मीत।। रहीम
शब्दार्थ – सगै – सगे संबंधी। बनत – बनते हैं। साँचे मीत – सच्चे मित्र।
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि यदि धन सम्पत्ति हो, तो अनेक लोग सगे-संबंधी बन जाते हैं। पर सच्चे मित्र तो वे ही हैं, जो विपत्ति की कसौटी पर कसे जाने पर भी खरे उतरते हैं, वही सच्चा मित्र है।
जे गरीब पर हित करें, ते रहीम बड़ लोग ।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग । । रहीम
शब्दार्थ – बड़ लोग – बड़े लोग। मिताई – मित्रता। जोग – साधना।
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जो ग़रीब का भला करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय ।
टूटे से फिर ना जुरे, जुरे गाँठ पड़ि जाय । । रहीम
शब्दार्थ – जुरे – जुड़े। पड़ि जाय – पड़ जाती है।
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि क्षणिक आवेश में आकर प्रेम रुपी नाजुक धागे को कभी नहीं तोड़ना चाहिए। क्योंकि एक बार अगर धागा टूट जाये तो पहले तो यह जुड़ता नहीं और अगर जुड़ भी जाए तो उसमे गांठ पड़ जाती है।
कैसे छोटे नरनु तैं, सरत बड़नु को काम ।
मढ्यों दमामौ जात क्यों, कहि चूहे के चाम ।। बिहारी
शब्दार्थ – छोटे नरनु – ओछे लोग। बड़नु – बड़े लोग। मढ्यों – मढना। चाम – चमड़ा।
व्याख्या – बिहारी कहते हैं कि छोटे अर्थात् ओछे लोगों से बड़े लोगों के काम कैसे पूरे पड़ सकते हैं? जिस प्रकार कभी चूहे के चमड़े से नगाड़ा नहीं मढ़ा जा सकता है वैसे ही छोटे व्यक्ति से बड़े लोगों के काम भी पूरे नहीं पड़ सकते हैं।
चटक न छाँड़त घटत हूँ, सज्जन नेह गँभीरु ।
फीको परै न, बरु फटै, रँग्यो चोल रंग चीरु ।। बिहारी
शब्दार्थ – छाँड़त – छोड़ता। घटत – घटने पर। गँभीरु – गंभीर। फीको परै – फीका पड़ना। बरु फटै – वस्त्र फटने पर। रँग्यो – रंगा हुआ।
व्याख्या – बिहारी कहते हैं कि सज्जनों का गम्भीर प्रेम घटने पर भी अपनी चटक नहीं छोड़ता अर्थात कम हो जाने पर भी उसकी मधुरिमा नष्ट नहीं होती। जिस प्रकार चोल के रंग में रँगा हुआ वस्त्र फट भले ही जाए, किन्तु फीका नहीं पड़ता है।
दुसह दुराज प्रजान में, क्यों न बढ़े दुख दन्द ।
अधिक अँधेरो जग करै, मिलि मावस रवि चन्द ।। बिहारी
शब्दार्थ – दुराज – दो राजा। प्रजान – प्रजा। मावस – अमावस। रवि – सूर्य। चन्द – चंद्रमा।
व्याख्या – बिहारी कहते हैं कि अत्यन्त क्षमताशील दो राजाओं के होने से प्रजा के दुःख क्यों न अत्यन्त बढ़ जाए? अमावस के दिन सूर्य और चन्द्रमा (एक ही राशि पर) मिलकर संसार में अधिक अँधेरा कर देते हैं।
कनक कनक तें सौगुनी, मादकता अधिकाय ।
वा खाये बौरात है, या पाये बौराय ।। बिहारी
शब्दार्थ – कनक – सोना / धतूरा। मादकता – नशा। खाये – खाकर। बौराय – पागल।
व्याख्या – सोना और धतूरा दोनों में नशा होता है। सोने में धतूरे से सौ गुणा अधिक नशा पाया जाता है। लोग धतूरे को खाकर पागल होते हैं और सोने को प्राप्त करके भी पागल हो जाते हैं।