HBSE Class 11 नैतिक शिक्षा Chapter 12 क्षमा और शक्ति Explain Solution

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HBSE Class 11 Hindi Naitik Siksha Chapter 12 क्षमा और शक्ति / Kshma aur Shakti Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 11th Book Solution.

क्षमा और शक्ति Class 11 Naitik Siksha Chapter 12 Explain


यह कविता राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर के खण्डकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के तृतीय सर्ग के तृतीय भाग से संकलित है। इसमें क्षमा के लिए शक्ति का होना आवश्यक है। महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंश में राजा दिलीप के गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है क्षमा शक्तौ अर्थात् राजा दिलीप शक्तिमान होते हुए भी क्षमाशील थे। सबल द्वारा की गई क्षमा ही शोभा देती है। निर्बल क्या क्षमा करेगा। अतः व्यक्ति को शक्तिमान होने का प्रयास करना चाहिए और फिर क्षमाशील होना चाहिए। महाभारत की कथा को आधार बनाकर दिनकर जी ने कुरुक्षेत्र नामक खण्ड काव्य लिखा है।

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा,
पर नर व्याघ्र, सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु – समक्ष तुम हुये विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही ।
अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है,
पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है ।

शब्दार्थविनत – विनम्र। कुफल – बुरा परिणाम। मनुज – मनुष्य।

व्याख्या – भीष्म पितामह ने कहा कि हे युधिष्ठिर! तुमने कौरवों को शान्त करने के लिए क्षमा, दया, तप, त्याग और मनोबल आदि सब का सहारा लिया। परन्तु हे शक्तिशाली युधिष्ठिर! तुमसे दुर्योधन कहाँ हारा, वह कब शान्त हो सका? भाव यह है कि वह तो सदा ही तुमसे चालाकी दिखाकर जीतता रहा। तुम अपने शत्रु दुर्योधन के सामने क्षमाशील बनकर जितना ही विनम्र आचरण करते रहे, दुष्ट कौरवों ने तुमको उतना ही कायर या कमजोर समझा। अत्याचार को सहन करने का बुरा परिणाम यही होता है कि मनुष्य का डर उसकी कोमलता के कारण लोगों से खत्म हो जाता है।


क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द अनुनय के प्यारे-प्यारे ।

शब्दार्थभुजंग – पराक्रमी व्यक्ति। दंतहीन – दांतो से रहित। दिवस – दिन। पंथ – रास्ता। रघुपति – श्री राम।

व्याख्या – शक्तिशाली एवं पराक्रमी व्यक्ति किसी को क्षमा करे, तो उससे उसकी शोभा बढ़ती है, परन्तु जिसके पास शक्ति नहीं है, वह किसी को क्या क्षमा करेगा? जैसे जिस सर्प के पास न तो दाँत हों, न ही विष हो, केवल विनम्र और सरल स्वभाव का हो, उसका क्षमाशील होने से क्या लाभ है? श्रीराम समुद्र के किनारे तीन दिन तक खड़े रहकर सागर से पार जाने का रास्ता माँगते रहे, वे उसकी खुशामद में प्यारे-प्यारे वचन बोलते रहे, अर्थात् पूरी विनम्रता दिखाते रहे, परन्तु समुद्र ने अनसुनी कर दी।


उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से,
उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से ।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि करता आ गिरा शरण में,
चरण पूज दासता ग्रहण की बँधा मूढ़ बन्धन में ।

शब्दार्थनाद – आवाज / लहर। देह – शरीर।

व्याख्या – श्रीराम समुद्र से प्रार्थना करते रहे, परन्तु जब समुद्र से उनकी प्रार्थना के उत्तर में कोई आवाज नहीं आयी, तो श्रीराम अधीर होकर पराक्रम दिखाने को तैयार हुए, उनके अग्नि बाण से पौरुष की ज्वाला धधकने लगी। तब समुद्र भयभीत होकर, शरीर धारण कर सामने आया और मेरी रक्षा कीजिए-रक्षा कीजिए ऐसा कहता हुआ शरण में आया। उसने श्रीराम के चरणों की पूजा की, उनकी अधीनता या सेवक बनना स्वीकार किया। वह सेतु-बन्धन में बँधा।


सच पूछो, तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की,
सन्धि-वचन सम्पूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है,
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।

शब्दार्थसन्धि-वचन – मेलजोल। सम्पूज्य – पूछते हैं।

व्याख्या – भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को समझाते हुए कहा कि सचमुच ही विनम्रता की चमक बाण में ही रहती है, अर्थात् पराक्रम से ही विनय की शोभा होती है। जिसमें विजय पाने की शक्ति होती है, सब उसी से मेलजोल की बातें करते हैं और उसी की पूजा भी करते है। यह संसार सहनशीलता, क्षमा, दया आदि गुणों की पूजा तभी करता है, जब उस क्षमाशील व्यक्ति में शक्तिशाली होने का अहंकार स्पष्ट दिखाई देता है। उस शक्तिशाली दर्प से ही उसके तेज एवं शौर्य की चमक सब ओर फैलती है।


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