HBSE Class 11 नैतिक शिक्षा Chapter 13 विश्वबंधुत्व व मानवता Explain Solution

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विश्वबंधुत्व व मानवता Class 11 Naitik Siksha Chapter 13 Explain


हम सब जानते हैं कि विभिन्न धर्मों के सन्तों, पैगम्बरों व गुरुओं ने अपने-अपने समय में विश्वबन्धुत्व व मानवता को केवल स्थापित ही नहीं किया बल्कि उनका प्रचार भी किया। प्रत्येक सन्त ने अपनी-अपनी वाणी में इसकी अनिवार्यता पर भी बल दिया। विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतन्त्र में कहा गया है—

अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् । 
उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।

अर्थात् यह अपना है, यह पराया है, ऐसी गणना तो छोटे दिलवाले लोग या संकीर्णहृदय वाले करते हैं, विशाल हृदय वाले लोगों के लिए तो सारी पृथ्वी ही परिवार है।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने इसी भावना को इस प्रकार व्यक्त किया है—

हम स्वदेश पर प्यार करें तो गर्व धरा पर ।
देश अन्ततः खर्व, सर्व है विश्व चराचर ।।

जैन मत के महान् सन्त आचार्य भद्रबाहु के शब्द हैं- एक्का मणुस्सजाई अर्थात् समग्र मानव जाति एक है।

स्वामी रामतीर्थ के ये शब्द भी इसी ओर संकेत करते हैं- विशाल विश्व मेरा घर है और उपकार करना मेरा धर्म है। गुरु ग्रन्थ साहिब का भी यही उपदेश है कि —

अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत दे सब बन्दे ।
इक नूर तो सब जग उपजया, कौण भले कौण मन्दे ।।

अर्थात् इस जगत में एक ही परमात्मा है व सभी जन उस परमात्मा के ही बन्दे अर्थात् व्यक्ति हैं। सभी एक समान हैं, कोई भला या मन्दा अर्थात् बुरा नहीं है। तुलसीदास को पूरा विश्व ही सियाराममय लगने लगता है। वे कहते हैं —

सियाराममय सब जग जानी, करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी ।।

बांग्ला कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है —

घरे-घरे मोर घर आछे, देशे-देशे मोर देश आहे ।।

अर्थात् प्रत्येक घर में मेरा घर है और प्रत्येक देश मेरा ही देश है। अंग्रेज कवि टामस पेन ने भी अपनी पुस्तक ‘द राइट ऑफ मैन में यही बात कही है —

विश्व मेरा देश है और भलाई करना मेरा धर्म

उर्दू कवि अल्ताफ हुसैन हाली मानवता के गुण को देवत्व से भी ऊँचा मानते हैं। उनका कथन है —

फरिश्ते से बेहतर है इन्सान बनना, मगर इसमें पड़ती है मेहनत जियादा ।

महर्षि अरविन्द मानते थे कि मानवता के लिए आवश्यक है- स्वभाव में शक्ति, मन में शान्ति और हृदय में प्रेम विनायक दामोदर सावरकर के अनुसार मनुष्यता ही ऊँची देश भक्ति है।

सूफी सन्त ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया तथा अमीर खुसरो आदि मानवीय गुणों के ही उपासक थे, वे मानव-मानव में कोई अन्तर नहीं मानते थे। वे मानव मात्र से प्रेम और सहानुभूति के पक्षधर थे। महर्षि वेदव्यास ने भी महाभारत में इसी भावना को व्यक्त करते हुए कहा है कि —

नहि मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित् ।

अर्थात् मानवता से बढ़कर और कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है। इस प्रकार सभी धर्म मानवता और विश्वबन्धुत्व की बात करते हैं। सत्य, अहिंसा परोपकार, बन्धुत्व तथा दया आदि ऐसे मानवमूल्य हैं, जिन्हें सभी धर्म एक जैसी आस्था के साथ स्वीकार करते हैं। यदि उपर्युक्त सभी धर्मों के अनुयायी भी इस भावना को अपनाकर सभी पैगम्बरों, गुरुजों व अवतारों का तथा सभी धार्मिक ग्रन्थों का सम्मान सत्कार करें तो विश्वबन्धुत्व की भावना स्वतः विकसित होगी तथा हर मानव के ये उद्गार होंगे —

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत् ।।

अर्थात् दुनिया के सभी प्राणी सुखी हों, सभी नीरोग हो, सभी का कल्याण हो और किसी को कोई भी दुःख न हो।

जिस प्रकार दर्पण चाहे छोटा हो या बड़ा, हमें हमारी सूरत तो दिखा ही देता है, ठीक उसी प्रकार ऊपर वर्णित परमार्थ पर आधारित नैतिक मूल्य चाहे ये किसी सन्त महापुरुष ने कहे हो या किसी धार्मिक ग्रन्थ में वर्णित हुए हो, हमे सचेत करते हुए मानव मूल्यों को ही जीवन में अपनाने की प्रेरणा देते हैं।

फरवरी सन् 2012 में अहमदाबाद (गुजरात) में ब्रह्मकुमारी संस्था के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ‘अमृत महोत्सव’ का आयोजन किया गया। जनसमूह को सम्बोधित करते हुए तत्कालीन मुख्यमन्त्री ने कहा था कि विश्व एक परिवार है और हम एक ही ईश्वर की सन्तान हैं। यह भारतीय संस्कृति की विरासत ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का परिचायक है। इस सूत्र को हम अपने जीवन में उतारकर ही सभी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं। इन मानवीय मूल्यों को मनसा, वाचा, कर्मणा यदि व्यवहार में लाने का प्रयास किया जाए तो विश्व का एक परिवार के रूप में परिणत होना सहज हो जाएगा। कवि की उक्ति भी इसी बात को प्रमाणित करती है —

आओ इस जग की व्यथा, मिल जुलकर बाँट लें ।
विश्व, परिवार में तब परिणत स्वयं हो जाएगा ।


 

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