HBSE Class 11 नैतिक शिक्षा Chapter 14 अशफाक उल्ला खाँ Explain Solution

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अशफाक उल्ला खाँ Class 11 Naitik Siksha Chapter 14 Explain


भारत देश की मिट्टी में न जाने ऐसी क्या अद्भुत शक्ति है कि यहाँ के धरती पुत्र हँसते-हँसते देश के लिए कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं। इतिहास साक्षी है कि इस देश के मिट्टी के लालों ने देश को गुलामी के बन्धनों से मुक्त कराने के लिए अपना जीवन माँ भारती को समर्पित कर दिया।

अशफाक उल्ला खाँ ने प० रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर सैकड़ों बार अंग्रेज हुकूमत के कलेजे दहलाए थे। दोनों मित्र उर्दू के शायर थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति में दोनों देशभक्तों का त्याग एवं बलिदान युवा पीढ़ी के लिए धार्मिक एकता एवं साम्प्रदायिक सौहर्द की अनोखी मिसाल है। विचित्र विडम्बना है कि दोनों को एक ही दिन एवं एक ही समय पर अलग-2 जेलों में फाँसी दी गई।

अशफाक का जन्म 22 अक्टूबर, सन् 1900 को उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर में हुआ। उनके पिता पठान शाफिक उल्लाह खाँ और उनकी माँ का नाम मजहूद-उन-निसा था। उनके पिता पुलिस विभाग में कार्यरत थे। अशफाक उनके चार पुत्रों में सबसे छोटे थे।

सन् 1920 में अशफाक ने बिस्मिल से मिलने का प्रयास किया परन्तु सफल नहीं हुए। 1922 में असहयोग आन्दोलन के समय अशफाक उल्लाह एक सार्वजनिक सभा में प० रामप्रसाद बिस्मिल से मिले और स्वयं को उनके मित्र के एक छोटे भाई के रूप में पेश किया।

पं० रामप्रसाद बिस्मिल आर्य समाज के सक्रिय सदस्य थे लेकिन उन दोनों में कोई पूर्वाग्रह नहीं था। दोनों का एक ही उद्देश्य था “भारत माता की आजादी गाँधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन वापिस लेने से निराश हुए अशफाक ने क्रान्तिकारियों में शामिल होने का निश्चय किया क्योंकि क्रान्तिकारियों का मत था कि अहिंसा के द्वारा आजादी प्राप्त नहीं की जा सकती। अतः ये हथियारों के बल पर अंग्रेजों में दहशत पैदा करना चाहते थे।

अपने आन्दोलन को बढावा देने के लिए क्रान्तिकारियों ने 8 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर में एक सभा का आयोजन किया। विचार-विमर्श के उपरान्त 9 अगस्त, 1925 को 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ यात्री गाड़ी में सरकारी राजकोष को अशफाक उल्लाह खाँ और प० रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में जिन 8 अन्य क्रान्तिकारियों ने लूटा था. ये थे राजेन्द्र लाहिडी, सचिन्द्रनाथ बख्शी, चन्द्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारीलाल, मुकुन्दीलाल, मन्मथनाथ गुप्त और मुरारीलाल।

क्रान्तिकारियों के साहस से घबराए हुए वायसराय ने स्काटलैण्ड यार्ड पुलिस को जाँच के आदेश दिये। गुप्तचर विभाग ने एक महीने में गिरफ्तारी का फैसला किया। 26 सितम्बर, 1925 को प0 रामप्रसाद बिस्मिल सहित अनेक क्रान्तिकारियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। लेकिन अशफाक लापता थे। अशफाक ने उन दिनों बिहार और बनारस में 10 महीने तक इंजीनियरिंग कम्पनी में काम किया। वह विदेश जाने और स्वतन्त्रता संग्राम में मदद के लिए लाला हरदयाल से मिलना चाहते थे। विदेश में जाने की योजना बनाने के लिए दिल्ली चले गए परन्तु दिल्ली में उनके पठान मित्र ने उनके साथ विश्वासघात किया और वे गिरफ्तार कर लिए गए।

अंग्रेजों ने अशफाक और बिस्मिल में वैमनस्य पैदा करने का प्रयत्न किया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने दोनों को सरकारी गवाह बनाने एवं हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काने की कोशिश की परन्तु अशफाक ने पुलिस अधीक्षक तसददुक हुसैन को मुंहतोड़ जबाब देते हुए कहा- खान साहिब में प० रामप्रसाद बिस्मिल को आपसे ज्यादा जानता हूँ फिर भी आप सही कह रहे हैं तो हिन्दू भारत ज्यादा अच्छा है उस ‘ब्रिटिश भारत’ से जिसकी आप नौकर की तरह सेवा कर रहे हैं।

अशफाक उल्ला खाँ को फैजाबाद जेल में हिरासत में भेज दिया गया। उनके खिलाफ दायर किये मामले को समाप्त करने के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता श्री हजेला ने बहुत कोशिश की लेकिन अशफाक के जीवन को नहीं बचा सके। जेल में रहते हुए भी अशफाक प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़ते थे। काकोरी, सजा के मामले में पं. रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी, और ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सजा दी गई जब कि 16 अन्यों को चार-चार साल के कठोर कारावास की सजा दी गई।

एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार फाँसी से चार दिन पूर्व दो अंग्रेज अधिकारियों ने अशफाक उल्ला खाँ को देखा तो वे अपनी नमाज पढ रहे थे। उनमें से एक ने कहा- “मैं देखना चाहता हूँ कि इसमें कितनी आस्था बची रहती है जब हम इस चूहे को लटका देंगे। लेकिन अशफाक हमेशा की तरह अपनी प्रार्थना में मशगूल रहे और वे दोनों बड़-बड़ाते हुए चले गए।

अन्ततः सोमवार 19 दिसम्बर, 1927 को अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी के तख्ते पर लाया गया। उनकी बेड़ियाँ खोली गई। उन्होंने फाँसी की रस्सी को इन शब्दों के साथ चूमा “किसी आदमी की हत्या से मेरे हाथ गन्दे नहीं हैं- मेरे खिलाफ तय किए गए आरोप नंगे एवं झूठे हैं। अल्लाह मुझे न्याय देंगे।

फाँसी का फंदा उनके गले में डाला गया और आजादी के आन्दोलन का एक चमकता हुआ सितारा आकाश में विलीन हो गया।


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