HBSE Class 11 नैतिक शिक्षा Chapter 15 बुद्धिमान केंकड़ा Explain Solution

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बुद्धिमान केंकड़ा Class 11 Naitik Siksha Chapter 15 Explain


एक समय की बात है एक तालाब के किनारे एक सारस रहता था। तालाब में बहुत सारी मछलियाँ थीं। सारस प्रतिदिन भर पेट मछलियाँ खाता था। ऐसे कई साल बीत गए। सारस बूढ़ा हो गया। अब वह आसानी से मछलियाँ नहीं पकड़ सकता था। जो एकाध मछली उसके हाथ लगती, उससे उसकी भूख नहीं मिटती थी। कभी-कभी वह एक भी मछली नहीं पकड़ पाता था। वह चिन्तित रहने लगा कि यदि इसी तरह चलता रहा तो वह जल्दी ही भूखा मर जाएगा।

उसने एक उपाय सोचा। वह तालाब के किनारे उदास सा मुँह बनाकर खड़ा हो गया। मछलियाँ उसके पास से गुजर जाती लेकिन वह उन्हें न पकड़ता । तालाब की मछलियाँ, मेंढ़क और केंकड़े सोचने लगे कि सारस को क्या हुआ है और वह इतना दुखी क्यों दिख रहा है? एक बड़े केंकड़े ने उसके पास जाकर पूछा, “कहो काका, आज गुमसुम क्यों बैठे हो ? मछली-वछली नहीं पकड़ोगे”? सारस ने कहा, “क्या करूं भतीजे ? बात ही कुछ ऐसी है ।

मैंने जीवन भर इस तालाब की मछलियाँ खायी हैं। अब समय बदल रहा है। यह सोच कर दुःख होता है कि अब जल्दी ही बेचारी सारी मछलियाँ मर जाएगी और मैं बिना भोजन भूखा मर जाऊँगा।” केंकड़े ने पूछा, “क्यों काका, मछलियाँ क्यों मर जाएँगी?” सारस ने कहा, “मैंने लोगों को कहते सुना है कि वे इस तालाब को मिट्टी से भर देंगे और उस पर खेती करेंगे। अगर उन्होंने ऐसा किया तो एक भी मछली जिन्दा नहीं बचेगी।”

जब मछलियों, केकड़ों और मेढकों ने सारस की बात सुनी तो वे सब डर गए। वे सब मिलकर सारस के पास गए और कहने लगे, “काका, यह तो आपने बहुत बुरी खबर सुनाई। अब इस मुसीबत से बचने का उपाय भी आपको ही बताना होगा।” सारस ने कहा, “मैं केवल एक पक्षी हूँ फिर भी शायद मैं तुम लोगों की थोड़ी-बहुत सहायता कर सकूं। थोड़ी दूरी पर एक बहुत बड़ा और गहरा तालाब है उसको ये लोग आसानी से पाट नहीं सकते। अगर तुम चाहो तो मैं तुम लोगों को वहां ले चलूँ ।”

मछलियों ने कहा, “काका, आपके सिवाय हमारा और कौन है? हमें उसी तालाब में ले चलिए।” सारस ने कहा. “तुम सबको एक साथ ले जाना तो कठिन होगा। लेकिन मैं पूरा प्रयास करूंगा।” मछलियों में झगड़ा होने लगा। हर एक मछली चाहती थी कि सबसे पहले वह जाए। सारस ने कहा, “तुम सब धीरज रखो। मैं दो-चार को ही अपनी चोंच में लेकर उड़ सकता हूँ। तुम झगड़ा मत करो मैं बारी-बारी से सबको वहाँ पहुँचा दूंगा। लेकिन अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ जल्दी थक जाता हूँ। एक बार वहाँ तक उड़ने के बाद मुझे थोड़ा आराम करना होगा।”

जल्दी ही सारस अपनी पहली यात्रा पर चल पड़ा। वह कुछ मछलियों को चोंच में दबाकर उड़ा। पर किसी दूसरे तालाब में जाने के बजाय वह उन्हें एक चट्टान पर ले गया। वहाँ उन मछलियों को मार-मार कर चट कर गया। उसके बाद वह फिर वापस तालाब पर पहुँचा। कुछ मछलियाँ चोंच में दबाई और उड़ चला भरपेट मछलियाँ खाकर सारस को नींद आ गई और वह सो गया जब वह सो कर उठा तो उसको फिर भूख लग गई। वह तालाब पर पहुँचा और कुछ और मछलियों को ले आया। उनको भी वह उसी चट्टान पर ले गया और मारकर खा गया। इस तरह जब उसको भूख लगती तो कुछ मछलियों को दूसरे तालाब पर पहुंचाने के बहाने लाता और मारकर खा जाता।

अब तालाब में थोड़ी मछलियाँ बची थी। उनमें एक केंकड़ा भी था। उसने भी सारस से कहा, “मेरी भी जान बचाइये काका मुझको भी यहाँ से ले चलिए।” सारस ने मन ही मन सोचा, “चलो एक दिन केकड़े का ही भोजन किया जाए। मुँह का स्वाद भी बदलेगा।” फिर वह बोला, “हाँ, हाँ, दोस्त में यहाँ तुम्हारी सहायता करने के लिए ही तो खड़ा हूँ चलो, मैं तुम्हें दूसरे तालाब में ले चलता हूँ।” वह केंकड़े को लेकर उड़ा। रास्ते में कंकड़े को कहीं भी पानी दिखाई नहीं दिया। इतने में उसने देखा कि सारस आगे जाने कि बजाय नीचे उतर रहा है।

केंकड़े ने पूछा, “काका, यहाँ तो कोई तालाब नहीं है। फिर आप यहाँ क्यों उतर रहे हैं? वह तालाब कहाँ है जहाँ आप मछलियों को ले गए थे?” सारस ने हंस कर कहा, “नीचे जो चट्टान देखते हो न, मैं तुमको वहीं ले जा रहा हूँ। वहीं सारी मछलियों को भी ले गया था।” केंकड़े को चट्टान साफ दिखाई दे रही थी। उस पर मछलियों की ढेरों हड्डियाँ बिखरी पड़ी थीं। वह समझ गया कि सारस मछलियों को मारकर खा गया है और अब उसको भी मारने के इरादे से लाया है। केंकड़े ने एक उपाय सोचा। अपने संडासी जैसे पैरों के चंगुल में उसने सारस की पतली गर्दन दबा दी। सारस ने अपने पंख फड़फड़ाए और गर्दन छुड़ाने का प्रयास किया लेकिन केकड़े ने उसे नहीं छोड़ा। वह अपने नुकीले पैरों को उसकी गर्दन में चुभाता ही गया, यहाँ तक कि सारस की गर्दन कट गई और वह जमीन पर गिर पड़ा।

सारस के कटे सिर को घसीटता हुआ केंकड़े उस तालाब तक पहुँचा जहाँ वह रहता था। मछलियों ने केंकड़े को देखा तो पूछने लगी, “क्या बात है भैया, तुम लौट क्यों आए? सारस काका कहाँ गए ?” केकड़ा मुस्कराकर बोला, “काका तो नहीं आए हाँ उनका सिर आया है।” उसने मछलियों को सारस का सिर दिखाकर बताया कि वह किस तरह उनको धोखा दे रहा था। अब उसने सारस को मार दिया है। धोखेबाज सारस से छुटकारा पाकर मछलियाँ बहुत खुश हुई और केंकड़े को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।


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