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HBSE Class 11 Hindi Naitik Siksha Chapter 18 राष्ट्रीयभक्ति / Rastriyabhakti Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 11th Book Solution.
राष्ट्रीयभक्ति Class 11 Naitik Siksha Chapter 18 Explain
जिसको न निजगौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं पशु निरा है और मृतक समान है ।।
सम्पूर्ण संसार में ऐसा एक भी प्राणी नहीं है जो अपने देश व मातृभूमि को शीश न झुकाता हो। मातृभूमि वह पवित्र भूमि होती है जहाँ मनुष्य जन्म लेता है। उसकी गोद में खेलकर मातृभूमि में उसका इतना अनुराग हो जाता है कि वह अपने जीवन पर्यन्त उसे याद करता रहता है। अपनी जन्मभूमि के नाम भर से ही वह आनन्दित व रोमांचित हो उठता है। मातृभूमि की धूल को भी मनुष्य स्वर्ग से बढ़कर मानने लगता है। रामायण में रावण की लंका को जीत लेने के बाद श्री राम की रुचि उस स्वर्णमयी नगरी में रहने की नहीं होती । वे अपनी जन्म भूमि अयोध्या में लौटना चाहते हैं। वे लक्ष्मण को कहते हैं-
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।।
अर्थात् हे लक्ष्मण मुझे यह स्वर्णमयी लंका बिल्कुल अच्छी नहीं लगती क्योंकि माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। हमारे ऋषि मुनियों ने अनादिकाल से मातृभूमि एवं माता की महिमा कही है तथा इस जगत् में पांच जकारों को दुर्लभ माना है वे हैं- जननी, जन्मभूमि, जाह्नवी (गंगा), जनार्दन और जनक।
जननी जन्मभूमिश्च जाह्नवी च जनार्दनः
पंचमो जनकश्चैव जकाराः पंच दुर्लभाः ।।
वेदों में विशेषरूप से अथर्ववेद के भूमिसूक्त में मातृभूमि की विशेषता के अनेक मन्त्र हैं।
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः
अर्थात् भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ। यही भावना हर देश के हर प्राणी के अन्तर्मन में विद्यमान रहती है।
इसी भावना के साथ हम अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पित रहते हैं क्योंकि यही भूमि हमें सम्पूर्ण समृद्धि प्रदान करती है। बंकिम चन्द्र चटर्जी ने वन्देमातरम गीत में यही आराधना की है-
वन्दे मातरम् ।।
सुजलां सुफलां मलयजशीतलां
शस्यश्यामलां मातरम् ||
इतनी सारी विशेषताएं जब जन्मभूमि में होती हैं तो प्रत्येक मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म अपनी जन्मभूमि की भक्ति अर्थात् देशभक्ति होता है। जिस व्यक्ति में यह देशभक्ति की भावना नहीं होती उसका जीवन नीरस होता है राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है-
भरा नहीं जो भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं ।
हृदय नहीं वह पत्थर है
जिसको स्वदेश से प्यार नहीं।
अंग्रेज कवि बायरन ने तो यह कहा कि जो व्यक्ति अपने देश से प्यार नहीं करता वह किसी अन्य से भी प्यार नहीं कर सकता है।
अंग्रेज विद्धान् डेनियल वैबस्टर ने भी जीवन का एकमात्र उद्देश्य समग्र राष्ट्रभक्ति को ही माना है। वीर भोग्या वसुन्धरा- यह पृथ्वी हमेशा ही वीरों के द्वारा भोगी जाती है। वीर पुरुष ही अपने देश की रक्षा करने में समर्थ होते हैं। कहा भी गया है-
स्वर्णपुष्पितां पृथिवीं चिन्वन्ति पुरुषास्त्रयः ।
शूरश्च कृतविद्यश्च यश्च जानाति सेवितुम् ।।
अर्थात् शूरवीर, विद्वान् व सेवा को ही कर्म मानने वाले यही तीन व्यक्ति पृथ्वी का भोग कर सकते हैं और उनमें भी शूरवीर को प्रथम स्थान दिया गया है। यह देशभक्ति ही वह शक्ति है जो वीरों को दीपशिखा पर भ्रमर की तरह अपने आप को न्यौछावर करने की प्रेरणा देती है। यही वह प्रेरणा है जिससे प्रेरित होकर महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावरकर, लाला लाजपतराय, बालगंगाधर तिलक, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, उधम सिंह, अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, महारानी लक्ष्मीबाई, मंगलपाण्डेय आदि वीरों ने स्वतन्त्रता यज्ञ में अपने भौतिक सुखों को तिलांजलि देते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी। आजादी के बाद भी हुए युद्धों में अब्दुल हमीद, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन मनोज पाण्डेय आदि अनेक सपूतों के बलिदान को कौन भूला सकता है। यह उन वीरों का ही बलिदान है कि कोई भी शत्रु आज तक हमारी मातृभूमि की ओर आँख उठाकर नहीं देख सकता है। इस भारतभूमि को विधाता की अनुपम रचना माना गया है।
इयम् भूमिरेका महादर्शभूमिः
विधातुः कृतिः काऽपि चित्राऽद्वितीया ।
इस पद्य में भारत भूमि की प्रशंसा की गई है तथा इसे शत्रुओं के लिए अगम्य माना गया है। इस धरा पर खिलने वाला फूल भी अपनी यही इच्छा प्रकट करता है कि वह भी अपने देश के काम आ सके, ऐसा इस भारत भूमि पर ही सम्भव है। माखन लाल चतुर्वेदी जी की पुष्प की अभिलाषा कविता की पंक्तियाँ दर्शनीय हैं-
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक ।
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक ।।
यही भाव हर भारतीय के मन में अपनी मातृभूमि के प्रति विद्यमान रहते हैं। भामाशाह का अपनी जन्मभूमि के लिए सर्वस्व त्याग कर महाराणा प्रताप को प्रदान कर देना देश भक्ति का अनूठा उदाहरण है। रामावतार त्यागी की कविता की पंक्तियाँ हमें देश के लिए मर मिटने की प्रेरणा देती हैं।
तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
अथर्ववेद में भी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने की प्रार्थना की गई है। “वयं तुभ्यं बलिहत भारत भूमि का गौरवमय इतिहास व इसकी संस्कृति सम्पूर्ण विश्व के लिए गुरु के समान मार्गदर्शक रही स्याम” है। सर्वधर्म सद्भाव व सहिष्णुता का गुण भारत को विश्व से अलग श्रेणी में रखता है और इसी का प्रभाव है कि शत्रु भी यहाँ आकर शत्रुता छोड़कर सुख पूर्वक निवास करते हैं। कहा गया है
अस्तीदृशं किमपि भारत भूमि भागे,
तत्त्वं यतो विहितभूरितरापराधाः ।
वैदेशिका अपि रिपुत्वमपास्य भक्त्या,
लब्ध्वाश्रयं ससुखमत्र पुनर्न यान्ति ।।
अर्थात् अनेक प्रकार के अपराध करने वाले भी जब भारत में आ जाते हैं तब वे शत्रुता भूलकर यहीं बस जाते हैं और लौटना नहीं चाहते। भारत-भूमि की पावन धरा का इससे उत्तम प्रमाण नहीं मिल सकता कि देवता भी मनुष्य रूप में यहाँ निवास करने की इच्छा करते रहते हैं। विष्णुपुराण में कहा गया है-
गायन्ति देवाः किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे ।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतु भूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ।।
अर्थात् देवता भी यह गीत गाते हैं कि वे लोग धन्य हैं जो स्वर्ग व मोक्ष देनेवाली भारतभूमि पर उत्पन्न हुए हैं। देवता भी स्वर्ग लोक में पुण्य समाप्त होने पर भारत भूमि पर जन्म लेते हैं। जिस मातृभूमि पर जन्म लेने की स्पृहा देवगण भी करते हैं तो हम धन्य हैं जो ऐसी धरा पर उत्पन हुए हैं। इस धरा की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। हर देशवासी अपने आप को देश पर न्यौछावर कर गौरवान्वित महसूस करता है। वह किसी भी खतरे से नहीं घबराता । देशभक्त व क्रान्तिकारी अशफाक उल्ला खाँ की पंक्तियाँ किसी भी देशवासी में जोश भर देती हैं-
सही जज्बाते हुर्रियत कहीं मेटे से मिटते हैं
अबस है धमकिया दारोरसन की और जिदा की ।।
आजादी के जो जज्बात हैं वो फाँसी के तख्त और जेल की निरर्थक धमकियों से नहीं मिट सकते इसलिए देश हित को ही हमारा प्रथम धर्म मानकर हमें देश हित के लिए कार्य करना चाहिए। अगर देश समृद्ध, विकसित व सुरक्षित होगा तभी हम सबकी समृद्धि व उन्नति होगी ।।