Class 11 Hindi Naitik Siksha BSEH Solution for Chapter 6 महारानी अहिल्याबाई होलकर Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 11 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.
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HBSE Class 11 Hindi Naitik Siksha Chapter 6 महारानी अहिल्याबाई होलकर / Maharani Ahilyabai holkar Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 11th Book Solution.
महारानी अहिल्याबाई होलकर Class 11 Naitik Siksha Chapter 6 Explain
अंग्रेजी शासन काल में महात्मा फुले द्वारा आरम्भ की गई समाज सुधार की गतिविधियों को छत्रपति साहू महाराज, डॉ० भीमराव अम्बेडकर, श्री रामासामी पेरियार, श्री नारायण गुरु, अण्णाभाऊ साठे. कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने आगे बढ़ाया। इससे पूर्व धर्म के ठेकेदार स्त्री को शूद्रवत् समझकर उसका तिरस्कार किया करते थे। पति के साथ सती होना पुण्य का कार्य समझा जाता था। ऐसे समय में महान् क्रान्तिकारी एवं सर्वजन कल्याणकारी महिला शासिका महारानी अहिल्याबाई होलकर का जन्म हुआ।
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई, 1725 को अहमदनगर जिले के चाँडी नामक गाँव में हुआ। इनका विवाह मध्य प्रदेश में हिन्दवी स्वराज्य की पताका फहराने वाले महान योद्धा मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव होल्कर के साथ हुआ। पति की आकस्मिक मृत्यु होने पर रूढ़िवादी परम्परा के अनुसार अहिल्याबाई के सती होने की नौबत आ गई, परन्तु जनहित को ध्यान में रखते हुए मल्हारराव होल्कर ने धर्म की रूढ़िवादी परम्परा को तोड़ते हुए, अहिल्याबाई को न केवल सती होने से रोका, अपितु राज्य की बागडोर भी अहिल्याबाई को सौंप दी। अहिल्याबाई ने भी धर्म के पाखण्ड के विरुद्ध विद्रोह करते हुए व लोकनिन्दा की चिन्ता न करते हुए राज्य की बागडोर सम्भाली। उसका मत था कि सतीप्रथा से मेरी मृत्यु हो जाने पर एक गलत परम्परा का निर्वाह होगा, परन्तु मेरे जीवित रहने पर लाखों प्रजाजनों को सुख मिलेगा। अहिल्याबाई ने पति श्वसुर व पुत्र की मृत्यु होने पर भी धैर्य न खोते हुए राज्य का सफल संचालन किया। प्रजा को कष्ट देने वाले असामाजिक तत्त्वों को पकड़ कर समझाने का प्रयास किया तथा जीवनयापन हेतु जमीनें देकर सुधार का रास्ता दिखाया। प्रजा को करों से राहत देते हुए न्यूनतम कर वसूला जाने लगा। यह भी सुनिश्चित किया गया कि करों से प्राप्त धन का उपयोग केवल प्रजाहित के कार्यों में ही हो। अहिल्याबाई ने स्वयं को राज्य के धन की मालकिन न मान कर जिम्मेदार संरक्षक माना, जिसका यह कर्तव्य है कि प्रजा ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस धरोहर स्वरूप निधि का उपयोग केवल जनहित में ही करे। वह प्रजा के सुख-दुःख की जानकारी स्वयं प्रजा से मिलकर लेती तथा न्यायपूर्ण निर्णय देती। उसके राज्य में जाति भेद की कोई मान्यता नहीं थी व सारी प्रजा समानरूप से आदर की हकदार थी। अहिल्याबाई लोकमाता के रूप में जानी जाने लगी, उसका मानना था कि प्रजा का पालन सन्तान की तरह करना ही राजधर्म है। उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में प्रजा को दत्तक लेने का व स्वाभिमान पूर्वक जीने का अधिकार दिया गया। यदि कोई राज्य कर्मचारी अवैध रूप से प्रजा से वसूली करता पाया जाता तो उसे तुरन्त दण्ड देकर अधिकार विहीन कर दिया जाता था। समस्त प्रजाजनों को न्याय मिले, इसके लिए गाँवों में पंचायती व्यवस्था को मजबूत किया गया। कृषि की अभिवृद्धि पर ध्यान देते हुए कृषकों को न्याय देने की व्यवस्था की गई। बेरोजगारों हेतु रोजगार धन्धों की योजनाएँ बनाई गई। प्रजा की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए रास्ते, पुल, घाट, धर्मशालाएँ, बावड़ी व तालाब बनाए गए। रास्ते के दोनों ओर वृक्षारोपण किए गए। निर्धन तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए अन्नदान क्षेत्र खोले गए। उसने अपने राज्य में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत के अन्य राज्यों में भी इन सुविधाओं की व्यवस्था की, जैसे बिहार के गया धाम में फल्गु नदी के तट पर निर्मित विष्णुपद मन्दिर व देवघाट, हरिद्वार में गंगा जी के तट पर कुशावर्त घाट आदि का निर्माण करवाया।
अहिल्याबाई ने समाज शत्रुओं व असामाजिक तत्त्वों पर अंकुश लगा कर उनके भी पुनर्वास की व्यवस्था की। उनके सामाजिक व राजकीय कार्यों से प्रजा प्रसन्न व पूर्णरूपेण संतुष्ट थी, इसी का प्रभाव था कि निजामशाही व पेशवाशाही के अनेक लोग अपना राज्य छोड़कर इनके राज्य में आकर बसने की इच्छा व्यक्त किया करते थे।
अहिल्याबाई के शासन काल के सुख व शान्तिपूर्ण वातावरण की चर्चा पण्डित जवाहर लाल नेहरू भी किया करते थे। भारत की इस वीरांगना ने अन्य राजाओं के सामने एक उच्च आदर्श स्थापित किया। अतएव उन्हें तत्कालीन सर्वजन कल्याणकारी प्रथम भारतीय महिला शासिका के पद से सम्मानित किया गया।
13 अगस्त सन् 1795 ई0 को लोकमाता अहिल्याबाई जन-जन के हृदय पर अपनी छाप छोड़ कर परलोक सिधार गई।