HBSE Class 12 Hindi Important जीवन परिचय – आरोह भाग 2 Solution PDF

NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 Important जीवन परिचय Question Answer solution with pdf. Here We Provides Class 1 to 12 all Subjects NCERT Solution with Notes, Question Answer, CBSE and HBSE Important Questions, MCQ and old Question Papers for Students.

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HBSE ( Haryana Board ) Solution of Class 12th Hindi aroh bhag 2/ आरोह भाग 2 important जीवन परिचय / Jivan Parichay Solution.

Class 12 Hindi आरोह भाग 2 Important जीवन परिचय for 2024


निम्नलिखित के जीवन, रचनाओं व भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए


सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ Most Important


हरिवंश राय बच्चन Most Important


1. सामान्य जीवन परिचय :-

  • जन्म – 21 नवंबर सन 1907 ई० को
  • स्थान – उत्तर प्रदेश के प्रयाग के कटरा मुहल्ले में
  • परिवार – कायस्थ परिवार में
  • पिता का नाम – श्री प्रताप नारायण बच्चन जी
  • माता का नाम – श्रीमति सरस्वती देवी
  • शिक्षा – प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला गवर्नमेंट स्कूल में तथा उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय में, M.A अंग्रेजी एवं P.H.D की उपाधि कैंब्रिज विश्वविद्यालय से।
  • विशेष कार्यक्षेत्र – 1942 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। सन 1955 ई. मे भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया।
  • जीवन के अंतिम क्षण – स्वतंत्र लेखन ।
  • देहावसान – 18 जनवरी सन् 2003 में मुम्बई मे।

2. साहित्यिक रचनाएँ :- श्री हरिवंशराय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा के संपन्न साहित्यकार है। उन्होंने यर्थाथ वादि दृष्टिकोण अपनाकर अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है :

(i) काव्य संग्रह — मधुशाला (सन् 1935), मधुबाला (सन 1938), मधुकला (सन् 1938), निशानिमंत्रण, एकांत संगीत आकुल-उंसर, मिलन यामिनी, सतरंगीणी, नए पुराने झसेस, आरती और अंगारे, टूटी-फूटी कड़ियां, बुद्ध और नाथगर।
(ii) अनुवाद — हेमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
(iii) डायरी — प्रवास की डायरी |
(iv) आत्मा चार खंड — भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण, फिर बसेरे से दूर, दश द्वार से सोपान तक।

3. भाषा शैली :- हरिवंश राय बच्चन की भाषा आमबोलचाल की खड़ी बोली हिंदी भाषा है। इन्होंने तत्सम तद्भव शब्दावली के साथ-साथ विदेशी भाषा के शब्दो का भी प्रयोग किया है। भाषा में चित्र विधा की शक्ति तथा प्रतीक शब्द योजना भी है। गेय होने के कारण इनकी रचनाओं को गीत के रूप में मान्यता प्राप्त है यही कारण है कि आधुनिक गीतकारों में उनका प्रमुख स्थान है।

अलंकार :- बच्चन जी ने अपनी कविताओं में आडंबर हीन भाषा का प्रयोग किया है तथा अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके प्रिय अलंकार है – अनुप्रास, रूपक, यमक, उत्प्रेक्षा और मानवीकरण आदि।

रस :- बच्चन जी प्रेम और सौंदर्य के कवि है इन्होंने अपनी कविताओं में श्रृंगार रस का प्रयोग किया है परंतु श्रंगार रस के संयोग पक्ष की अपेक्षा उनका मन वियोग पक्ष में अधिक रमा है रहस्य आत्मकथा को प्रकट करने के लिए शांत रस की भी अभिव्यंजना की है।


रघुवीर सहाय Most Important


1. सामान्य जीवन परिचय :-

  • कवि का नाम – रघुवीर सहाय ( बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के महत्वपूर्ण कवि )
  • पिताजी का नाम – हरदेव सहाय ( साहित्य के अध्यापक )
  • कवि का जन्म – 9 दिसंबर 1929 को लखनऊ में हुआ था।
  • माता जी का नाम – श्रीमती तारा देवी।
  • शिक्षा – आरंभिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला तथा उच्च शिक्षा 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर ( एम० ए० ) परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
  • रचना का आरंभ – 1946 से।
  • कार्यकाल – प्रमुख व्यवसाय के रूप में पत्रकारिता को चुना। 1949 से 1951 तक ‘दैनिक नवजीवन’ को अपनी सेवाएं दी। 1953 से 1967 तक वे आकाशवाणी से जुड़े रहे। 1967 से 1982 तक दिनमान साप्ताहिक पत्रिका के प्रधान संपादक रहे, बाद में स्वतंत्र लेखन को अपनाया।
  • देहावसान – 30 दिसंबर 1990 में इस महान कवि का निधन हो गया।

2. साहित्यिक रचनाएँ :-

प्रमुख रचनाएं – रघुवीर सहाय जी 1951 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ में रची गई रचनाओं के कारण चर्चा में आए थे।

पहला काव्य संग्रह –

  • सीढ़ियों पर धूप में (1960)
  • आत्महत्या के विरुद्ध (1967)
  • हंसो हंसो जल्दी हंसो (1975)
  • लोग भूल गए हैं (1982)
  • कुछ पत्ते कुछ चिड़िया (1989)
  • प्रतिनिधि कविताएं (1994)

रघुवीर जी का संपूर्ण काव्य रघुवीर सहाय रचनावली के नाम से प्रकाशित है।

3. काव्यगत विशेषताएं – रघुवीर सहाय जी ने अपनी काव्य कृतियों में राजनीतिक चेतना के साथ-साथ आधुनिक युग में उत्पन्न विभिन्न समस्याओं पर जमकर अपनी लेखनी चलाई है। रघुवीर जी की काव्यगत विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं—

    1. राजनीतिक चेतना :- रघुवीर सहाय जी पत्रकारिता से जुड़े हुए थे तो इस कारण उनकी कविताओं में राजनीतिक चेतना सहज रूप से देखी जा सकती है। राजनीति में व्याप्त बुराइयों का वर्णन सहज रूप से देखा जा सकता है। कवि कहता है कि राजनीति ने देश में हिंसा, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, जाती-पाती जैसे भयंकर बुराइयों को जन्म दिया है। कवि ने बेखौफ होकर भ्रष्ट मंत्रियों को बेनकाब किया है। इसीलिए डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन जी ने रघुवीर सहाय जी को पॉलिटिकल कवि कहा है।
    2. सामाजिक चेतना :- कवि जनसाधारण के पक्ष में खड़े हुए हैं। कवि की कविताओं ने समाज में उत्पन्न विरोध, विचारों में समानता को प्रकट किया है। कवि ने लोकतांत्रिक जीवन के कारण मध्यवर्ग जीवन के दबाव का वर्णन किया है। कवि आम आदमी के विचारों व उनकी सामाजिक दशा का वर्णन करने के पक्षधर दिखाई देते हैं।
    3. मानवीय मूल्य, आक्रोश और व्यंग्य का उद्घाटन :- कवि सहाय जी ने मानवीय संबंधों की व्यथा को अपनी काव्य रचना में उकेरा है। कवि ने स्त्री जीवन में व्याप्त उसके दुख, पीड़ा, मनोव्यथा को प्रस्तुत किया है। कवि ने चेहरा नामक कविता में एक लड़की की गरीबी का वर्णन किया है। कवि सहाय जी ने स्त्री व पुरुष की मनोदशा का वर्णन किया है। समाज में जाति पाति के कारण मनुष्य के मध्य उत्पन्न आक्रोश को उजागर व इसके कारण समाज में उत्पन्न  असमानता पर गहरा कटाक्ष किया है।
    4. भाषा शैली :- श्री रघुवीर सहाय जी की भाषा आम बोलचाल की सरल, सहज व धाराप्रवाह खड़ी बोली है। इनके शब्दावली में तद्भव शब्दों की प्रचुरता के साथ-साथ तत्सम, देसी, विदेशी शब्दों का भी समायोजन देखने को मिलता है। ये लोकोक्तियां एवं मुहावरे का प्रयोग करने में सिद्धार्थ हैं। इनकी भाषा में अनुप्रास, यमक, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों का उचित प्रयोग किया है। व्यंग्यात्मकता इनकी भाषा का सहज गुण है। दृश्य बिंब इनका प्रिय बिंब है। भाषा अनुपम व भावप्रदान है।

तुलसीदास Most Important


उमाशंकर जोशी Most Important


आलोक धन्वा 


1. सामान्य जीवन परिचय :-

  • जन्म – 1948 ई० को
  • स्थान – मुंगेर (बिहार) में

2. साहित्यिक रचनाएँ :- प्रमुख रचनाएं पहली कविता जनता का आदमी, 1972 में प्रकाशित उसके बाद भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनो की बेटियाँ से प्रसिद्धि, दुनिया रोज बनती है (एकमात्र संग्रह )

3. सम्मान :- राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, पहल सम्मान।

4. भाषा शैली :- सातवें आठवें दशक में कवि आलोक धन्वा ने बहुत छोटी अवस्था में अपनी गिनी-चुनी कविताओं से अपार लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1972-1973 में प्रकाशित इनकी आरंभिक कविताएँ हिंदी के अनेक गंभीर काव्यप्रेमियों को जबानी याद रही हैं। आलोचकों का तो मानना है कि उनकी कविताओं ने हिंदी कवियों और कविताओं को कितना प्रभावित किया, इसका मूल्यांकन अभी ठीक से हुआ नहीं है। इतनी व्यापक ख्याति के बावजूद या शायद उसी की वजह से बनी हुई अपेक्षाओं के दबाव के चलते, आलोक धन्वा ने कभी थोक के भाव में लेखन नहीं किया । सन् 72 से लेखन आरंभ करने के बाद उनका पहला और अभी तक का एकमात्र काव्य संग्रह सन् 98 में प्रकाशित हुआ। काव्य संग्रह के अलावा वे पिछले दो दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने जमशेदपुर में अध्ययन-मंडलियों का संचालन किया और रंगकर्म तथा साहित्य पर कई राष्ट्रीय संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में भागीदारी की है।


 

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