NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 Important passage Question Answer solution with pdf. Here We Provides Class 1 to 12 all Subjects NCERT Solution with Notes, Question Answer, CBSE and HBSE Important Questions, MCQ and old Question Papers for Students.
- Also Read :- Class 12 Hindi NCERT Solution
- Also Read :- HBSE Class 12 Hindi नैतिक शिक्षा Solution
- Also Read – Class 12 Hindi आरोह भाग 2 NCERT Solution in Videos
- Also Read – Class 12 Hindi वितान भाग 2 NCERT Solution in Videos
- Also Read – HBSE Class 12 Hindi नैतिक शिक्षा Solution in Videos
- Also Read – HBSE Class 12 Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम Solution in Videos
HBSE ( Haryana Board ) Solution of Class 12th Hindi aroh bhag 2/ आरोह भाग 2 all chapter important सप्रसंग व्याख्या Question And Answer / passage questions Solution.
HBSE Class 12 Hindi Important Passage (सप्रसंग व्याख्या आरोह भाग 2 ) for 2024-2025 Chapter-Wise
पद्य भाग
पाठ 1 – (i) आत्म परिचय (ii) एक गीत ( हरिवंशराय बच्चन )
हो जाए न पथ में रात कहीं
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
बच्चे प्रत्याशा में होंगे
नीड़ों में झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को,
भरता उर में विह्वलता है
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
पाठ 2 – पतंग ( आलोक धन्वा )
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए । Most Important
सबसे तेज बौछारें गईं भादों गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नई चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए।
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं।
महज एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे।
पाठ 3 – (i) कविता के बहाने (ii) बात सीधी थी पर ( कुंवर नारायण )
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी
हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया। Most Important
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”
पाठ 4 – कैमरे में बंद अपाहिज ( रघुवीर सहाय )
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं ?
तो आप क्यों अपाहिज हैं ?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है ?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है ? Most Important
पाठ 5 – उषा ( शमशेर बहादुर सिंह )
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो
और ………
जादू टूटता है इस उषा का
अब सूर्योदय हो रहा है। Most Important
प्रात नम था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो।
पाठ 6 – बादल राग ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला )
जीर्ण बाहु है शीर्ण शरीर
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर !
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
हे जीवन के पारावार !
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर !
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार !
(i) ‘विप्लव के वीर’ क्यों कहा गया है ?
(ii) ‘जीवन के पारावार’ क्यों कहा गया है ?
(iii) ‘चूस लिया है उसका सार’ से क्या तात्पर्य है ?
(iv) ‘जीर्ण बाहु, शीर्ण शरीर’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
(v) ‘विप्लव के वीर’ किसे कहा गया है ?
घन, भेरी गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल !
तिरती है समीर सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया।
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर !
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार !
पाठ 7 – (i) कवितावली (ii) लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( गोस्वामी तुलसीदास )
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना
अस मम जिवन बंधु बिन तोही । जौ जड़ दैव जिआवै मोही
जैहउँ अवध कवन मुहु लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ।
बरु अपजस सहतेउँ जग माही। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।। Most Important
कथा कहीं सब तेहि अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी ।
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा-महा जोधा संघारे ।।
दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा ।। Most Important
बहु विधि सोचत सोच विमोचन। स्रवत सलिल राजीव दल लोचन ।।
उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाई ।।
प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना मँह बीर रस।।
सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच विकलाई।।
जो जनतेऊँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता ।। Most Important
पाठ 8 – रुबाइयां/ गजल ( फिराक गोरखपुरी )
No Questions
पाठ 9 – (i) छोटा मेरा खेत (ii) बगुलों के पंख ( उमाशंकर जोशी )
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटत
रोपाई क्षण की
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती ।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष
शब्द के अंकुर फूटे
पल्लव पुष्पों से नमित हुआ विशेष । Most Important
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।
गद्य भाग
पाठ 10 – भक्तिन
भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत होगा जितना अपने घर में बारी-बारी से आने वाले अंधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना । वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतन्त्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए हैं। Most Important
दिन भर के कार्य-भार से छुट्टी पाकर जब मैं कोई लेख समाप्त करने या भाव को छंदबद्ध करने बैठती हूँ, तब छात्रावास की रोशनी बुझ चुकती है। मेरी हिरनी सोना तख्त के पैताने फर्श पर बैठकर पागुर करना बंद कर देती है। कुत्ता बसंत मचिया पर पंजों में मुख रखकर आँखें मूँद लेता है और बिल्ली गोधूलि मेरे तकिए पर सिकुड़कर सो रहती है।
दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औंधाकर उसने मेरी धुली धोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और के अंधकार और मेरी दीवार से फूटते हुए सूर्य और पीपल का, दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, लैब मैंने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर है।
पाठ 11 – बाजार दर्शन
लेकिन ऊँचे बाजार का आमन्त्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव | चौक बाज़ार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके पास काफी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह !
मन खाली नहीं रहना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है।
लोग संयमी भी होते हैं। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं। वे पैसे को बहाते नहीं हैं और बुद्धिमान होते हैं। बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते हैं, जोड़ते ही जाते हैं। वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है। Most Important
बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति, शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं।
पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाजार जाओ तो खाली मन न हो। मन खाली हो, तब बाजार न जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो बाजार भी फैला-का-फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना।
(i) लू में जाते समय पानी क्यों पीते हैं
(ii) बाजार की सार्थकता किसमें है ?
(iii) बाजार हमें कब आनंद प्रदान करता है ?
(iv) उपर्युक्त गद्यांश के रचयिता एवं पाठ का नाम लिखिए।
(v) बाजार के जादू की जकड़ से कैसे बच सकते हैं ?
पाठ 12 – काले मेघा पानी दे
अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे ? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पिआसे के पिआसे रह जाते हैं। Most Important
मैं असल में था तो इन्हीं मेढक मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार – सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था। सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था।
पाठ 13 – पहलवान की ढोलक
सियारों का क्रन्दन और पेचक की डरावनी आवाज कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज, ‘हरे राम, हे भगवान !’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी । Most Important
जाड़े का दिन। अमावस्या की रात ठंडी और काली । मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयार्त्त – शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य ! अँधेरा और निस्तब्धता। Most Important
अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। Most Important
दो सेर रसगुल्ला को उदरस्थ करके, मुँह में आठ-दस पान की गिलोरियाँ हँस, ठुड्डी को पान के रस से लाल करते हुए अपनी चाल से मेले में घूमता । मेले से दरबार लौटने के समय उसकी अजीब हुलिया रहती-आँखों पर रंगीन अबरख का चश्मा, हाथ में खिलौने को नचाता और मुँह से पीतल की सीटी बजाता, हँसता हुआ वह वापस जाता।
पाठ 14 – शिरीष के फूल
शिरीष वायुमण्डल से रस खींचकर इतना कोमल और कठोर है। गाँधी भी वायुमण्डल से रस खींचकर इतना कोमल और कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब-तब हूक उठती है – हाय, वह अवधूत आज कहाँ है। Most Most Important
जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है। यद्यपि कवियों की भाँति फूल-पत्ते को देखकर मुग्ध होने लायक हृदय विधाता ने नहीं दिया है, पर नितांत हूँठ भी नहीं हूँ। शिरीष के पुष्प मेरे मानस में थोड़ा हिल्लोल जरूर पैदा करते हैं।
यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हजरत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमण्डल से अपना रस खींचता है।
पाठ 15 – (i) श्रम विभाजन और जाति प्रथा (ii) मेरी कल्पना का आदर्श समाज
आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह है कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप है और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है। Most Important
क्षमताओं के आधार पर भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक तथा औचित्यपूर्ण क्यों न हो, मानवता के दृष्टिकोण से समाज दो वर्गों व श्रेणियों में नहीं बाँटा जा सकता। ऐसी स्थिति में राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए।
यह विडंबना की ही बात है कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य कुशलता’ के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है, और चूंकि जाति -प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। Most Important
गमनागमन की स्वाधीनता, जीवन तथा शारीरिक सुरक्षा की स्वाधीनता के अर्थों में शायद ही कोई ‘स्वतन्त्रता’ का विरोध करे। इसी प्रकार सम्पत्ति के अधिकार, जीविकोपार्जन के लिए आवश्यक औजार व सामग्री रखने के अधिकार जिससे शरीर को स्वस्थ रखा जा सके, के अर्थ में भी ‘स्वतन्त्रता’ पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। तो फिर मनुष्य की शक्ति के सक्षम एवं प्रभावशाली प्रयोग की भी स्वतन्त्रता क्यों न प्रदान की जाए ?