Class 12 Hindi Naitik Siksha BSEH Solution for Chapter 1 ईश वंदना Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 12 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.
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HBSE Class 12 Naitik Siksha Chapter 1 ईश वंदना / Eesh Vandana व्याख्या ( Vyakhya ) / Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 12th Book Solution.
ईश वंदना Class 12 Naitik Siksha Chapter 1 व्याख्या
1. ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।
यद्भद्रं तन्न आसुव ।।
तू सर्वेश सकल सुखदाता, शुद्ध स्वरूप विधाता है ।
उसके कष्ट नष्ट हो जाते, जो तेरे ढिग आता है ।।
सारे दुर्गुण दुर्व्यसनों से, हमको नाथ बचा लीजे ।
मंगलमय गुण कर्म पदार्थ, प्रेम सिन्धु हमको दीजे ।।
शब्दार्थ – विश्वानि – सभी। देव – देवता। सवितर्दुरितानि – सूर्यदेव दुर्गुणों को। परासुव – दूर कीजिए। यद्भद्रं – जो कल्याणकारी। तन्न – हमें। आसुव – प्रदान कीजिए। सर्वेश सकल – सभी को। सुखदाता – सुख देने वाला। शद्ध – पवित्र। ढिग – पास। नाथ – भगवान। लीजे – लीजिए। हमको – हमें। दीजे – दीजिए।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी कक्षा 12 हिंदी की पाठ्यपुस्तक “नैतिक शिक्षा” से ली गई हैं। इन पंक्तियों में भगवान से प्रार्थना की गई है।
व्याख्या – हे सूर्य देव! आप हमारे सभी दुर्गुणों को दूर कीजिए और जो कल्याणकारी हो वह हमें प्रदान कीजिए।
अर्थात — तुम सभी सुखों को प्रदान करने वाले हो और आपका सब रूप बहुत पवित्र है। जो भी आपके पास आपकी शरण में आता है उसके सभी कष्ट खत्म हो जाते हैं। हे भगवान आप हमें सभी प्रकार के दुर्गुणों से बचा लीजिए। और हमको अच्छे गुण और कर्म प्रदान कीजिए जिससे हम प्रेम पूर्वक रह सके।
2. ॐ य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः ।
यस्यच्छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ।।
तू ही आत्मज्ञान बलदाता, सुयश विज्ञ जन गाते हैं ।
तेरी चरण-शरण में आकर, भव-सागर तर जाते हैं ।।
तुझको ही जपना जीवन है, मरण तुझे बिसराने में ।
मेरी सारी शक्ति लगे प्रभु, तुझसे लगन लगाने में ।।
शब्दार्थ – य – जो। आत्मदा – आत्मज्ञान का दाता। बलदा – शरीर और आत्मा। यस्य – उसका। विश्व – संसार। उपासते – उपासना करते हैं। प्रशिषं – विद्वान। देवाः – देवता। यस्यच्छायामृतं – जिसकी मृत्यु और अमरता छाया मात्र है। यस्य – उसकी। मृत्युः – मृत्यु। कस्मै – किसके लिए । देवाय – देवता। हविषा – चलो। विधेम – प्रार्थना करें। सुयश – बहुत प्रसिद्ध। विज्ञ – परिचित। जन – लोग। जपना – जाप करना। लगन – प्रेम / लगाव।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी कक्षा 12 हिंदी की पाठ्यपुस्तक “नैतिक शिक्षा” से ली गई हैं। इन पंक्तियों में भगवान से प्रार्थना की गई है।
व्याख्या – जो आत्मज्ञान , शरीर और आत्मा का दाता है। संसार के सभी विद्वान उसी की उपासना करते हैं। जिसकी मृत्यु और अमरता एक छाया मात्र है। चलो! उस देवता की प्रार्थना करें।
अर्थात — तुम ही आत्मज्ञान, शरीर और आत्मा को देने वाले हो। बहुत प्रसिद्ध परिचित लोग भी गाते हैं। तुम्हारी छत्रछाया में आकर बड़े से बड़ा समुद्र भी तैरकर पार कर जाते हैं। हे प्रभु आपको याद करना ही जीवन है तुम्हें ना याद करने में मृत्यु है। मैंने अपनी सारी ताकत आपको याद करने में और आपसे लगाव लगाने में लगा दी है।
3. ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वारूपाणि परि ता बभूव ।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोऽस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ।।
तुमसे भिन्न न कोई जग में, सब में तू ही समाया है।
जड़ चेतन सब तेरी रचना, तुझमें आश्रय पाया है ।।
हे सर्वोपरि विभो! विश्व का, तूने साज सजाया है।
हेतु रहित अनुराग दीजिए, यही भक्त को भाया है ।।
शब्दार्थ – प्रजापते – प्रजा के स्वामी। त्वदेतान्यन्यो – तुम्हारे अतिरिक्त। विश्वारूपाणि – इस संसार में। परि ता – वह पर्याप्त। बभूव – बन गया। यत्कामास्ते – जिसकी कामना की। जुहुमस्तन्नोऽस्तु – वह प्राप्त हो। वयं – हम सभी। स्याम पतयो – स्वामी होंगे। रयीणाम् – अमीरों के। जग – संसार। चेतन – जागरुक। सर्वोपरि – सर्वश्रेष्ठ। विभो – देव। हेतु – उद्देश्य। रहित – के बिना। अनुराग – स्नेह। भक्त – भक्ति करने वाला।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी कक्षा 12 हिंदी की पाठ्यपुस्तक “नैतिक शिक्षा” से ली गई हैं। इसमें भगवान से अपनी इच्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना की गई है।
व्याख्या – हे प्रजा के स्वामी! तुम्हारे अतिरिक्त इस संसार में हम लोग जिसकी भी कामना करें। वह हम सभी को प्राप्त हो और हम अमीरों के स्वामी बन जाए।
अर्थात — हे प्रभु! इस संसार में कोई भी तुमसे अलग नहीं है सब कुछ तुम्हारे अंदर ही समाया हुआ है। सभी जीव तुम्हारी ही रचना है और तुझमें ही आश्रय प्राप्त है। हे सर्वश्रेष्ठ प्रभु! इस संसार को तुमने बहुत ही सुंदर बनाया है। आप अपनी कृपा इसी प्रकार हमारे ऊपर रखिए यह हम भक्तों को बहुत पसंद है।
4. ॐ अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् ।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम ।।
तू ही स्वयं प्रकाश सुचेतन, सबका सिरजन हार तू ही।
रसना निशिदिन रटे तुम्हीं को, मन में बसना सदा तू ही ।।
कुटिल पाप से हमें बचाते रहना हरदम दया निधान ।
अपने भक्त जनों को भगवन्, दीजे यही विशद वरदान ।।
शब्दार्थ – अग्ने – अग्नि। नय – नया। सुपथा – अच्छे रास्ते पर। राये – धन-संपत्ति के लिए। अस्मान् – हमें। विश्वानि – विश्व के। देव – भगवान। वयुनानि – सभी प्रकार की क्रियाएं। विद्वान् – जानने वाला। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो – कुटिल पाप को हटा दें। भूयिष्ठां – बार-बार। ते – आपको। नम उक्तिं विधेम – बार-बार बोलते रहेंगे। सिरजन हार – निर्माण करना। निशिदिन – दिन रात। हरदम – हर समय। दीजे – दीजिए। विशद – व्यापक।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी कक्षा 12 हिंदी की पाठ्यपुस्तक “नैतिक शिक्षा” से ली गई हैं। इन पंक्तियों में भगवान से प्रार्थना की गई है।
व्याख्या – हे अग्नि के देवता! आप हमें अच्छे रास्ते पर ले जाएं और धन संपत्ति प्रदान करें। आपको विश्व में हो रही सभी प्रकार की क्रियाओं के बारे में पता है। आप हमारे अंदर से पाप को हटा दें। हम आपको सिर झुका कर यह बात बार-बार बोलते रहेंगे।
अर्थात — तुम खुद ही प्रकाश उत्पन्न करने वाले हो। सभी का पालन पोषण तुम ही करते हो। हम दिन रात तुम ही को रटते हैं। मन में तुम हमेशा के लिए बसे हुए हो। आप हमें कुटिल पाप से बचाते रहिए और हमेशा हम पर दयावान बने रहिए। आप अपने भक्तजनों को यही वरदान प्रदान कीजिए।