HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Chapter 11 गोस्वामी तुलसीदास Explain Solution

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HBSE Class 12 Naitik Siksha Chapter 11 गोस्वामी तुलसीदास / Goswami Tulsidas Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 12th Book Solution.

गोस्वामी तुलसीदास Class 12 Naitik Siksha Chapter 11 Explain


गोस्वामी तुलसीदास रचित “रामचरितमानस’ में सामाजिक और पारिवारिक परिप्रेक्ष्य में जो आदर्श स्थापित किए गए हैं, वे अन्य किसी ग्रन्थ में दुर्लभ हैं और आज के समय में नितान्त आवश्यक हैं। जैसे- राम की पितृभक्ति, लक्ष्मण का भ्रातृप्रेम, सीता का पातिव्रत धर्म और हनुमान की स्वामी भक्ति इत्यादि ऐसे आदर्श हैं, जो आज के परिपेक्ष्य में लगता है जैसे कहीं खो गए हैं। इन आदर्शों को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से यहाँ रामचरितमानस के ‘बालकाण्ड’ से कुछ चौपाइयों का संकलन किया गया है। इन चौपाइयों में रामकथा के महत्त्व के साथ-साथ राम के बाल चरित्र का वर्णन किया गया है जिसमें राम का भाइयों के संग खेलना, मिल बैठकर भोजन करना, माता-पिता की आज्ञा का पालन इत्यादि ऐसे चरित्र हैं जिन्हें पढ़कर व आत्मसात् कर उच्च चरित्र का निर्माण किया जा सकता है।

दोहा – रामकथा सुरधेनु सम, सेवत सब सुख दानि ।
सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि ।।

शब्दार्थ – रामकथा – भगवान राम की कथा। सुरधेनु – कामधेनु / गाय। सम – समान। सेवत – सेवा करने से। सब – सभी। सुख दानि – सुख देने वाली है। सतसमाज – सत्पुरुषों का समाज। सुरलोक – देवताओं का लोग। सब – सभी। को – कौन। न – नहीं। सुनै – सुनेगा। अस – ऐसा। जानि – जानकर

व्याख्या – राम की कथा कामधेनु के समान सेवा करने से सब सुखों को देने वाली है और सत्पुरुषों के समाज ही सब देवताओं के लोक हैं, ऐसा जानकर इसे कौन नहीं सुनेगा।


रामकथा सुन्दर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी ।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी सादर सुनु गिरिराजकुमारी ।।

शब्दार्थ – रामकथा – राम की कथा। करतारी – हाथ की ताली। संसय – सन्देहरूपी। बिहग – पक्षियों को। उड़ावनिहारी – उड़ा देती है। कलि – कलयुग रूपी। बिटप – वृक्ष को काटने के लिए। कुठारी – कुल्हाड़ी। सादर – आदरपूर्वक। सुनु – सुनो।

व्याख्या – राम की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुगरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो।


राम नाम गुन चरित सुहाए। जनम करम अगनित श्रुति गाए । ।
जथा अनन्त राम भगवाना। तथा कथा कीरति गुन नाना ।।

शब्दार्थ राम नाम – राम का नाम। गुन – गुण। चरित – चरित्र।  जनम – जन्म। करम – कर्म। अगनित – अनगिनत। श्रुति गाए – कहे गए हैं। जथा – जिस प्रकार। अनन्त – अनंत। भगवाना – भगवान। तथा – उसी प्रकार। कीरति – कीर्ति। गुन – गुण। नाना – अनंत।

व्याख्या – वेदों ने श्री रामचन्द्रजी के सुंदर नाम, गुण, चरित्र, जन्म और कर्म सभी अनगिनत कहे हैं। जिस प्रकार भगवान श्री रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उसी तरह उनकी कथा, कीर्ति और गुण भी अनंत हैं


तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी। कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी ।।
उमा प्रस्न तव सहज सुहाई । सुखद सन्त सम्मत मोहि भाई ।।

शब्दार्थ तदपि – तो भी। जथा – जैसा। श्रुत – सुना है। जसि – जैसी। मति – बुद्धि। मोरी – मेरी। कहिहउँ – कहूंगा। देखि – देखकर। प्रीति – प्रीति। अति – अत्यंत। तोरी – तुम्हारी। उमा –पार्वती। प्रस्न – प्रश्न। तव – तुम्हारा। सहज – स्वाभाविक। सुहाई – सुंदर। सुखद – सुखदायक। सन्त सम्मत – संतसम्मत। मोहि – मुझे। भाई – बहुत अच्छा लगा है।

व्याख्या – तो भी तुम्हारी अत्यन्त प्रीति देखकर, जैसा कुछ मैंने सुना है और जैसी मेरी बुद्धि है, उसी के अनुसार मैं कहूँगा। हे पार्वती! तुम्हारा प्रश्न स्वाभाविक ही सुंदर, सुखदायक और संतसम्मत है और मुझे तो बहुत ही अच्छा लगा है


एक बात नहिं मोहि सुहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी ।।
तुम्ह जो कहा राम कोउ आना। जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना ।।

शब्दार्थ नहिं – नहीं। मोहि – मुझे। सुहानी – अच्छी लगी। जदपि – यद्यपि। मोह बस – मोह के वश में होकर। कहेहु – कही है। भवानी – पार्वती। तुम्ह – तुमने। जो कहा – जो यह कहा। कोउ – कोई। आना – और है। जेहि – जिन्हें। श्रुति – वेद। गाव – गाते। धरहिं – धारण करते हैं। मुनि – मुनिजन। ध्याना – ध्यान।

व्याख्या – परंतु हे पार्वती! एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी, यद्यपि वह तुमने मोह के वश होकर ही कही है। तुमने जो यह कहा कि वे राम कोई और हैं, जिन्हें वेद गाते और मुनिजन जिनका ध्यान धारण करते हैं।


दोहा – कहहिं सुनहिं अस अधम नर, ग्रसे जे मोह पिसाच ।
पाषंडी हरि पद विमुख, जानहिं झूठ न साच।।

शब्दार्थ – कहहिं – कहते। सुनहिं – सुनते। अस – ऐसे। अधम नर – अधम मनुष्य। ग्रसे – ग्रस्त है। जे – जो। मोह पिसाच – मोह रुपी पिशाच। पाषंडी – पाखंडी। हरि – भगवान विष्णु। पद – चरण।  जानहिं – जानते हैं। झूठ न साच – झूठ-सच नहीं

व्याख्या – जो मोह रूपी पिशाच के द्वारा ग्रस्त हैं, पाखण्डी हैं, भगवान के चरणों से विमुख हैं और जो झूठ-सच कुछ भी नहीं जानते, ऐसे अधम मनुष्य ही इस तरह कहते-सुनते हैं


बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा । अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा ।।
कछुक काल बीते सब भाई। बड़े भए परिजन सुखदाई ।।

शब्दार्थ – बालचरित – बाललीलाएं। हरि – भगवान ने। बहुबिधि – बहुत प्रकार से। कीन्हा – कीं। अति – अत्यंत। अनंद – आनंद। दासन्ह – सेवकों को। कहँ – अपने। दीन्हा – दिया। कछुक – कुछ। काल – समय। बीते – बीतने पर। सब भाई – सभी भाई। बड़े भए – बड़े होकर। परिजन – कुटुंबयों को। सुखदाई – सुख देने वाले हुए

व्याख्या – भगवान ने बहुत प्रकार से बाललीलाएँ कीं और अपने सेवकों को अत्यंत आनंद दिया। कुछ समय बीतने पर चारों भाई बड़े होकर कुटुंबियों को सुख देनेवाले हुए।


चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई । विप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई ।।
परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा ।।

शब्दार्थ – चूड़ाकरन – चूड़ाकर्म-संस्कार। कीन्ह – किया। गुरु जाई – गुरु ने जाकर । विप्रन्ह – ब्राह्मणों ने। पुनि – फिर। दछिना – दक्षिणा। बहु – बहुत-सी। पाई – प्राप्त की। परम – बड़े ही। मनोहर – मनोहर। चरित – चरित्र। अपारा – अपार। करत – करते। फिरत – फिरते हैं। चारिउ – चारों। सुकुमारा – राजकुमार।

व्याख्या – तब गुरु ने जाकर चूड़ाकर्म-संस्कार किया। ब्राह्मणों ने फिर बहुत-सी दक्षिणा पाई। चारों सुंदर राजकुमार बड़े ही मनोहर अपार चरित्र करते फिरते हैं।


मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई।।
भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा।।

शब्दार्थ मन – मन। क्रम – कर्म। बचन – वचन। अगोचर – अगोचर। जोई – जो है। दसरथ – दशरथ। अजिर – वहीं। बिचर – विचर। प्रभु – प्रभु। सोई – रहे हैं। भोजन – भोजन। करत – करते समय। बोल – बुलाते हैं। नहिं – नहीं। आवत – आते हैं। तजि – छोड़कर। बाल – बचपन। समाजा – समाज को।

व्याख्या – जो मन, वचन और कर्म से अगोचर हैं, वही प्रभु दशरथ के आँगन में विचर रहे हैं। भोजन करने के समय जब राजा बुलाते हैं, तब वे अपने बाल सखाओं के समाज को छोड़कर नहीं आते हैं।


कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुक ठुमुक प्रभु चलहिं पराई ।।
निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहिं धरै जननी हठि धावा ।।

शब्दार्थ – कौसल्या – मां कौशल्या। जब – जब। बोलन – बुलाने। जाई – जाती है। ठुमुक ठुमुक – ठुमुक ठुमुक कर। प्रभु – प्रभु। चलहिं‌ – चलते हैं। पराई – भाग। निगम – निरूपण करते हैं। नेति – नेति ( यह वेद है। ) सिव – भगवान शिव। अंत न – अंत नहीं। पावा – पाया। ताहिं – उन्हें। धरै – पकड़ने के लिए। जननी – माँ। हठि – हठपूर्वक। धावा – दौड़ती है।

व्याख्या – कौसल्या जब बुलाने जाती हैं, तब प्रभु ठुमुक-ठुमुक भाग चलते हैं। जिनका वेद ‘नेति’ (इतना ही नहीं) कहकर निरूपण करते हैं और शिव ने जिनका अंत नहीं पाया, माता उन्हें हठपूर्वक पकड़ने के लिए दौड़ती हैं।


धूसर धूरि भरें तनु आए। भूपति बिहसि गोद बैठाए । ।

शब्दार्थ धूसर धूरि – धूल। भरें – लपेटे हुए। तनु – शरीर। भूपति – राजानी। बिहसि – हंसकर। गोद बैठाए – गोद में बैठा लिया।

व्याख्या – वे शरीर में धूल लपेटे हुए आए और राजा ने हँसकर उन्हें गोद में बैठा लिया।


दोहा – भोजन करत चपल चित, इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख, दधि ओदन लपटाइ ।।

शब्दार्थ – भोजन करत – भोजन करते हैं। चपल – चंचल। चित – चित्त। इत उत – इधर-उधर। अवसरु – अवसर। पाइ – पाकर। भाजि – भाग। चले – चले। किलकत – किलकारी मारते हुए। मुख – मुंह। दधि ओदन – दही भात। लपटाइ – लपटाए।

व्याख्या – भोजन करते हैं, पर चित्त चंचल है। अवसर पाकर मुँह में दही-भात लपटाए किलकारी मारते हुए इधर-उधर भाग चले


बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए।।
जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता । ते जन बंचित किए बिधाता ।।

शब्दार्थ – बालचरित – राम की बाललीलाएँ। अति  – बहुत ही। सरल सुहाए – भोली और सुंदर। सारद – सरस्वती। सेष – शेष। संभु – शिव। श्रुति – वेद। गाए – गाते हैं। जिन्ह कर – जिनका। मन – मन। इन्ह – इनमें ( लीलाओं में )। सन नहिं राता – अनुरक्त नहीं हुआ। ते जन – वे मनुष्य। बंचित – वंचित। किए – कर दिए। बिधाता – विधाता ने।

व्याख्या – राम की बहुत ही सरल (भोली) और सुंदर (मनभावनी) बाललीलाओं का सरस्वती, शेष, शिव और वेदों ने गान किया है। जिनका मन इन लीलाओं में अनुरक्त नहीं हुआ, विधाता ने उन मनुष्यों को वंचित कर दिया (नितांत भाग्यहीन बनाया)


भए कुमार जबहिं सब भ्राता । दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता ।।
अनुज सखा संग भोजन करहीं। मातु-पिता अग्या अनुसरहीं ।।

शब्दार्थ – भए कुमार – कुमारावस्था के हुए। जबहिं – जब। सब – सभी। भ्राता – भाई। दीन्ह – दिया गया। जनेऊ – जनेऊ। गुरु पितु माता – गुरु, पिता और माता। अनुज सखा – भाइयों। संग – साथ। भोजन करहीं – भोजन किया। मातु-पिता अग्या – माता पिता की आज्ञा। अनुसरहीं – अनुसरण किया।

व्याख्या – ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उन्हें जनेऊ दिया। रघुनाथ  ने (भाइयों सहित) भोजन किया और माता-पिता की आज्ञा का अनुसरण किया।


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