HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Chapter 14 करतार सिंह सराबा Explain Solution

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HBSE Class 12 Naitik Siksha Chapter 14 करतार सिंह सराबा / Kartar Singh Srabha Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 12th Book Solution.

करतार सिंह सराबा Class 12 Naitik Siksha Chapter 14 Explain


भारत भूमि पर ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने शौर्य और पराक्रम से न केवल भारत भू को अपितु पूरी मानव जाति को गौरवान्वित किया है। भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में यूँ तो अनेकों वीरों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी हैं, किन्तु अल्पायु में मातृभूमि पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले बालक्रान्तिकारियों की श्रृंखला में करतार सिंह सराबा का नाम बड़े आदर व सम्मान के साथ लिया जाता है।

करतार सिंह देश के महान् क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर 1 नवम्बर, 1916 को अपने प्राणों की आहुति दी थी। क्रान्तिकारी आन्दोलन में इन्होंने 20 वर्ष की आयु में महान कार्य कर दिखाए थे। इनमें देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। इनमें अदम्य साहस, आश्चर्यजनक आत्म-विश्वास और आत्म-त्याग था। वह विप्लव (क्रान्ति) के अंगारे थे। उनकी नस-नस तथा रोम-रोम में विप्लव व्याप्त था। जिस दिन वह फांसी पर चढे, उनके मुखमण्डल पर प्रसन्नता नृत्य कर रही थी और शरीर का वजन 10 पौंड बढ़ गया था। इस प्रकार वह महान् क्रान्तिकारी थे।

करतार सिंह सराबा का जन्म सन् 1896 ई0 में जिला लुधियाना के सराबा नामक गाँव में हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की प्राथमिक पाठशाला में हुई, बाद में लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में पढ़ने के लिए भेजे गए। देश तथा स्वतन्त्रता प्रेम के भाव आपके हृदय में हिलोरें मारने लगे। आपने अमेरिका जाने का संकल्प किया और सनफ्रान्सिसको बन्दरगाह पर पहुँचे।

उस समय अमेरिका में भारतीयों की कोई इज्जत नहीं थी। अमेरिकन भारतीयों को ‘डेम हिन्दू और डेम कुली कहकर पुकारते थे। तरुण करतार सिंह ने जब ये शब्द सुने तो वह तिलमिला उठे। उधर अपने देश भारत को याद करते तो उसे गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ, लुटा हुआ और असहाय पाते। इन्होंने अपने संकल्प को फौलादी बनाया। सनफ्रान्सिसको से ही उनके विद्रोही जीवन की शुरूआत हुई। अमेरिका में रहते हुए आपको समाचार-पत्र की आवश्यकता अनुभव हुई और आपने ‘गदर’ नामक समाचार पत्र निकाला।

बड़े जोरों से प्रचार-प्रसार और संगठन कार्य शुरू हुआ। दिसम्बर, 1914 में पिंगले भी अमेरिका से भारत आ पहुँचे। उनकी प्रेरणा से श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल और रासबिहारी बोस पंजाब पहुँचे। विद्रोह की तैयारी में करतार सिंह जोर-शोर से जुट गए। 21 फरवरी, 1915 समस्त भारत में एक साथ विद्रोह करने का दिन निश्चित हुआ था, किन्तु घर का भेदी लंका ढाये वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए एक विश्वासघाती ने धोखा कर दिया। सरगोधा के पास चक नं0 5 में गये तथा फिर से विद्रोह की चर्चा छेड़ दी और वहीं पकड़े गए। जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो वह अत्यधिक प्रसन्न थे। वह प्रायः कहा करते थे- “साहस से मर जाने पर मुझे बागी का खिताब देना।” उन्होंने जेल तोड़कर कैदियों को निकालने की योजना बनाई। बेड़ियाँ पहना दी गई। तलाशी में लोहा काटने के यन्त्र करतार सिंह की सुराही के नीचे के स्थान से बरामद किए गए। मुकदमा चला। उस समय करतार की आयु सिर्फ 18 वर्ष की थी।

अपने बयान में करतार सिंह ने कहा- “मैंने आजादी के लिए भारत में विप्लव करने का षडयन्त्र रचा था। जो कि एक साथी के विश्वासघात के कारण सफल न हो सका। अपने कार्य के लिए मैं फाँसी के ही दण्ड का वरण करूंगा, ताकि मैं शीघ्र ही पुनः जन्म लेकर भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के लिए तैयार हो जाऊँ। जब तक भारत स्वतन्त्र न हो जाए तब तक बार-बार जन्म धारण कर फाँसी पर लटकता रहूँ, यही अभिलाषा है और यदि पुनर्जन्म में स्त्री बना तो भी विद्रोही पुत्रों को जन्म दूँगा।

जब जज ने मृत्यु दण्ड सुनाया तो करतार सिंह ने वीरता पूर्वक मुस्कराते हुए जज से कहा “आपका धन्यवाद’ । 1 नवम्बर, 1916 में वे फाँसी पर लटका दिए गए।


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