HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Chapter 19 पारस्परिक सद्भावना Explain Solution

Class 12 Hindi Naitik Siksha BSEH Solution for Chapter 19 पारस्परिक सद्भावना Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 12 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.

Also Read – HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Solution

Also Read – HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Solution in Videos

HBSE Class 12 Naitik Siksha Chapter 19 पारस्परिक सद्भावना / parasprik sadbhavna Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 12th Book Solution.

पारस्परिक सद्भावना Class 12 Naitik Siksha Chapter 19 Explain


देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ।। गीता 3/11

देवान् भावयत, अनेन ते, देवाः, भावयन्तु वः,
परस्परम् भावयन्तः श्रेयः परम् अवाप्स्यथ ।।

देवों को उन्नत करो यज्ञ से
करेंगे तभी उन्नत तुम को भी वे ।
जो आपस में करते रहो ऐसा ही,
परम पद को पा जाओगे तुम तभी ।।

भावार्थ —

अध्यापक और माता-पिता के प्रति पारस्परिक स्नेह, सद्भाव और सम्मान का भाव हमारी भारतीय संस्कृति में इनकी भूमिका देवतुल्य है ही उनकी प्रसन्नता का कारण बनें, परेशानी का नहीं प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग, प्रदूषण मुक्ति एवं राष्ट्र गौरव के लिये भी महत्त्वपूर्ण प्रेरणा है यह गीता श्लोक

प्यारे बच्चो ! इस श्लोक को देखकर अथवा पढ़कर आपको आश्चर्य हो सकता है कि गीताजी का यह श्लोक तो यज्ञभाव तथा देवताओं की तुष्टि पुष्टि का है हमारा इससे क्या सम्बन्ध ? हमें तो अभी पढ़ना है। केवल देखने-पढ़ने से ऐसा लग सकता है, लेकिन गीता-ग्रन्थ की तो दिव्यता यही है कि इसकी प्रेरणायें हर दृष्टि से बहुत व्यापक चिन्तन लिये हुए हैं। देवता का वैचारिक अर्थ है जो देता है, जैसे सूर्य, चन्द्रमा वायु धरती, वरूण, अग्नि आदि देवता-सब दे रहे हैं। इस दृष्टि से आप सोचें। अध्यापक हमें शिक्षा देते हैं, हमारे जीवन को अच्छा बनाने में प्रयासरत रहते हैं। माता-पिता जन्म देते हैं, हमारा लालन-पालन करते हैं। स्वयं कठिनाइयाँ सहकर भी हमें आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं-हमारे लिये देवतुल्य हैं ।

अब इस श्लोक को पुनः देखें! अध्यापक हमें उन्नत करने का प्रयास कर रहे हैं- हम भी उनको प्रसन्न रखें। उनका सम्मान करें। अध्यापकों का सम्मान, उनके प्रति विनम्रता का भाव हमारी अच्छी शिक्षा और अच्छे जीवन में उन्नति का बहुत बड़ा सम्बल बनेगा। परस्परं भावयन्तः अर्थात् एक दूसरे के पति ऐसे पारस्परिक सद्भाव से कार्य सिद्धि अर्थात कार्य में सफलता अवश्य होगी।

इसी प्रकार माता-पिता के साथ भी पारस्परिक सूझबूझ बनी रहे। उनका स्नेहभाव हो, अच्छी बात है, लेकिन साथ ही आप भी निश्चय करें कि हमें उनकी परेशानी का नहीं, प्रसन्नता का कारण बनना है। वस्तुतः यह गीता श्लोक हर रूप में बहुत उपयोगी तथा आज की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

आज प्रदूषण बढ़ रहा है. प्रकृति असन्तुलित हो रही है. इसमें हम सहयोगी भूमिका बनायें जहाँ भी हो, स्वच्छता का ध्यान रखें। जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो, गन्दगी फैले, ऐसा कुछ न करें। प्रकृति बहुत कुछ दे रही है, हम केवल लेने के भाव अर्थात् अपने स्वार्थ, अपने सुख के लिये ही जब जीव हत्या, दूसरे प्राणियों को कष्ट या प्राकृतिक संसाधनों का शोषण अथवा दुरुपयोग करते है. तो ही समस्यायें बढ़ती हैं प्राकृतिक असन्तुलन होता है !

यही पारस्परिक भाव राष्ट्र के प्रति भी हो। देश की माटी ने हमें बहुत कुछ दिया है, हम भी अच्छे नागरिक बन कर राष्ट्र का गौरव बढ़ायें। नगर सुन्दर बनें, यह अच्छा है, लेकिन नागरिक अच्छे सुसंस्कारित बनें यह आवश्यक है। आओ, इसकी शुरूआत हम अपने से करें। –

यह भी सोचे कि जीवन और जीवन में सब कुछ ईश्वर का दिया हुआ है। शरीर की बनावट देखें या संचालन सबके पीछे ईश्वरीय चेतना शक्ति स्पष्ट अनुभव होगी। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव बनायें। जिससे कुछ पाया है, उसके प्रति कृतज्ञता भारतीय संस्कृति का मूल भाव है। इससे अपना मन भी शान्त सन्तुष्ट होगा तथा ईश्वरीय प्रसन्नता का लाभ भी स्वाभाविक मिलेगा।

गीताजी का यह श्लोक पारस्परिक सद्भावना एवं अपने साथ-साथ हर क्षेत्र की उन्नति का बहुत बड़ा सम्बल बन सकता है, मन की संकीर्णतायें छोड़े खुले मन से इसे स्वीकारें।


Leave a Comment