HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Chapter 6 दुर्गा भाभी Explain Solution

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HBSE Class 12 Naitik Siksha Chapter 6 दुर्गा भाभी / Durga Bhabhi Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 12th Book Solution.

दुर्गा भाभी Class 12 Naitik Siksha Chapter 6 Explain


राष्ट्र के स्वतन्त्रता संग्राम में जिन नारियों ने पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर सक्रिय भाग लिया, उनमें दुर्गा देवी का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जा सकता है। उन्होंने भगत सिंह राजगुरु, सुखदेव जैसे क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, जिसके कारण उन्हें क्रान्तिकारियों में गिना जाने लगा ।

इनका जन्म 07 अक्टूबर, 1907 को इलाहाबाद में हुआ, जहाँ इनके पिता न्यायाधीश के रूप में नियुक्त थे। ग्यारह वर्ष की आयु में इनका विवाह भगवती चरण बोहरा से हुआ। पति-पत्नी दोनों क्रान्तिकारी विचारों वाले थे तथा देश को स्वतन्त्र कराना चाहते थे। साण्डर्स वध के पश्चात् पुलिस अधिक सतर्क व सक्रिय हो गई। क्रान्तिकारियों की धरपकड़ की जाने लगी, इससे बचने के लिए एक योजना बनाई गई, योजनानुसार सुखदेव दुर्गा भाभी के पास पहुँचे और उन्हें इस कार्य में सहयोग के लिए अनुरोध किया। दुर्गा भाभी ने तत्काल ‘हाँ’ भर ली, उन्होंने इस कार्य हेतु 500/- रुपये की आर्थिक मदद भी की तथा अगले दिन अपने बेटे शची को साथ लेकर क्रान्तिकारियों के साथ बाहर जाने की भी स्वीकृति दे दी। बिना किसी हिचकिचाहट के ‘हाँ’ भर लेने पर सुखदेव को सुखद आश्चर्य हुआ, क्योंकि इस कार्य में थोड़ी सी चूक भी उसके व उसके पुत्र के लिए जोखिम भरी हो सकती थी। दुर्गा देवी जी ने सुखदेव के आश्चर्य को भाँपते हुए कहा, “मैं न केवल एक क्रान्तिकारी की पत्नी हूँ बल्कि स्वयं भी क्रान्तिकारी हूँ”। योजना के अनुसार अगली रात को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव दुर्गा भाभी के घर पहुँच गए। फिर प्रातः भगत सिंह ने क्लीनशेव होकर, अंग्रेजी फैल्ट टोपी धारण की तथा शची को गोद में लेकर रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़े, उसके पीछे दुर्गा भाभी ऊँची हील की सैंडिल पहने, पर्स लटकाए मेम साहब बन कर चल पड़ी, उन दोनों के पीछे-पीछे राजगुरु नौकर बनकर चले। रेलवे स्टेशन पर पहुँचकर भगत सिंह व दुर्गा भाभी पति-पत्नी के रूप में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में तथा राजगुरु तृतीय श्रेणी के डिब्बे में सवार हुए। लखनऊ पहुँचने पर राजगुरु उनसे अलग होकर आगरा चल दिए। लखनऊ स्टेशन पर भगवती चरण बोहरा और सुशीला दीदी उन्हें लिवाने आए। इस प्रकार उस विकट परिस्थिति में लाहौर से भगत सिंह व राजगुरु को बाहर निकालने का श्रेय दुर्गा भाभी को ही जाता है।

08 अप्रैल 1929 को असेम्बली में किए गए बम विस्फोट में भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त गिरफ्तार होकर जेल चले गए। इन्हें छुड़ाने की योजना के तहत किए जा रहे बम-परीक्षण के दौरान भगवती चरण बोहरा की मृत्यु हो गई । मृत्यु की सूचना पाकर दुर्गा भाभी सन्न रह गई. इस वज्रपात को सहन करते हुए तथा अपने पति के अन्तिम दर्शन भी न कर पाने का दंश झेलते हुए दुर्गा भाभी धैर्य और साहस की प्रतिमूर्ति बनी रही। पति की मृत्यु के बाद वे और अधिक तीव्र गति से क्रान्ति कार्यों में लग गई, मानो पति की मृत्यु से क्रान्ति कार्यों में आई कमी को स्वयं पूरा करना चाह रही हो।

मुम्बई के गवर्नर हेली की हत्या की योजना दुर्गा भाभी ने पृथ्वी सिंह आजाद, सुखदेव, शिन्दे और बापट से मिलकर बनाई, परन्तु गलतफहमी के कारण इन लोगों ने पुलिस चौकी के पास एक अन्य अंग्रेज अधिकारी पर गोलियाँ बरसा दीं । बापट ने कुशलता पूर्वक ड्राईविंग करते हुए इन लोगों को पुलिस के हत्थे चढ़ने से बचा लिया।

चन्द्रशेखर आजाद बड़े भाई की तरह दुर्गा देवी का ध्यान रखते थे व अपेक्षित मार्ग दर्शन करते थे। कुछ दिनों के बाद 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद में जब चन्द्रशेखर आजाद भी शहीद हो गए तो दुर्गा भाभी पर मानो दूसरा वज्रपात हुआ।

दुर्गा देवी के लाहौर और इलाहाबाद के आवासों को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। उसने शची को अपने से दूर कर दिया था। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दे दी गई। इन सब घटनाओं का उनके मन पर गहरा आघात लगा, लेकिन वे निष्क्रिय नहीं हुई 14 सितम्बर, 1932 को बुखार में तपती हुई दुर्गा देवी को अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया 15 दिनों की रिमांड के पश्चात् सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया गया, परन्तु लाहौर और दिल्ली में उनके प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी गई। तीन वर्ष बाद पाबन्दी हटाई गई तब तक इन्होंने प्यारे लाल कन्या विद्यालय गाजियाबाद में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। इस दौरान इन्हें क्षय रोग हो गया, फिर भी ये समाज सेवा करते हुए कांग्रेस से जुड़ी रही। सन् 1937 में आप दिल्ली कांग्रेस समिति की अध्यक्षा चुनी गई सन् 1938 में हुई हड़ताल में भाग लेने पर इन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया। रिहा होने के बाद इन्होंने अयार माण्टेसरी में प्रशिक्षण लिया और सन 1940 में लखनऊ में पहला माण्टेसरी स्कूल खोला। सेवानिवृत्ति के बाद वे गाजियाबाद में रहीं। उनका सम्पूर्ण जीवन त्याग, आदर्श व समर्पण का प्रतीक है। राष्ट्र को समर्पित दुर्गा भाभी का निधन 14 अक्टूबर, 1999 को हुआ। उनका सम्पूर्ण जीवन भविष्य में भी आदर्श बन कर युवाशक्ति को प्रेरित करता रहेगा।


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