HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 10 – अनूठा बलिदान Explanation Solution

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अनूठा बलिदान Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 10 Explanation


भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में कूका आन्दोलन का विशेष स्थान है। गुरु रामसिंह के सभी शिष्य कूका नाम से जाने जाते हैं। आप जानना चाहेंगे कि कूका से क्या तात्पर्य है? जब गुरु के अनुयायी आराधना करते तो बाहरी संसार को बिलकुल भूल जाते थे। वे इतने भावविभोर हो जाते थे कि उनके कण्ठ से कूक (एक प्रकार की ध्वनि) निकलने लगती थी, इसलिए वे कूका कहलाए। कूका अपने गुरु को ही बादशाह मानते थे, जबकि उस समय महारानी विक्टोरिया का शासन था। गुरु के इन शिष्यों ने अंग्रेज सरकार से जमकर टक्कर ली।

सन् 1872 में कूकाओं की ओर से माँग की गई कि गौ-हत्या पर रोक लगाई जाए। अंग्रेज नहीं माने। एक दिन की बात है कि कुछ कसाई गौएँ ले जा रहे थे। कूकाओं ने कसाइयों को ललकारा-“गौएँ छोड़कर चले जाओ, वरना सब मारे जाओगे।” कसाई अंग्रेजों की शह पर काम कर रहे थे। उन्होंने अनसुना कर दिया तथा गौओं के झुण्ड लेकर लगातार आगे बढ़ते रहे। कूकाओं के सब्र का बाँध टूट गया। उन्होंने कसाइयों को पकड़कर बाँध लिया। इतने में ही पुलिस आ गई। कूकाओं और पुलिस का आमने-सामने युद्ध हुआ। कूकाओं की वीरता के सामने पुलिस ठहर न सकी और भाग खड़ी हुई। मलौंध के किले पर कूकाओं ने कब्जा कर लिया। इतना ही नहीं, मालेर कोटला महल तक अंग्रेजों का नामोनिशान न रहा। उन दिनों वहाँ के डिप्टी कमिश्नर मिस्टर काबेन थे। उन्होंने भारी फौज को बुलाकर कूका आन्दोलन दबा दिया।

अंग्रेजी फौज ने 50 कूकाओं को पकड़ लिया। सभी को लुधियाना लाया गया। इन कूकाओं में एक बालक बिशनसिंह भी था। काबेन ने आदेश दिया कि सभी बन्दी कूकाओं को तोप से उड़ा दिया जाए। जिस समय आदेश दिया गया काबेन की पत्नी भी वहीं थी। उसे कूका बिशनसिंह पर बड़ी दया आई। उसने अपने पति काबेन से उस बच्चे को छोड़ देने की प्रार्थना की।

निर्दयी काबेन को पत्नी की बात जरा भी अच्छी नहीं लगी। उसने पत्नी की ओर क्रोध से घूरा और कूकाओं के गुरु को अपशब्द कहने लगा। फिर उसने बिशनसिंह से कहा- “तुम अपने आपको गुरु का शिष्य होने से इन्कार कर दो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा।”

गुरु के प्रति अपशब्द सुनकर बालक पहले ही क्रोध में भरा बैठा था। काबेन की इस बात ने उसे और भड़का दिया। वह फुर्ती से उठा और झपटकर दोनों हाथों से काबेन की दाढ़ी पकड़ ली। काबेन ने बहुत प्रयत्न किया किन्तु अपनी दाढ़ी नहीं छुड़ा पाया। “इसके दोनों हाथ काट दो” दर्द से कराहते हुए काबेन चिल्ला पड़ा। बालक के दोनों हाथ काट दिए गए किन्तु आश्चर्य की बात कि कटे हाथों से भी दाढ़ी नहीं छूटी। हाथ कटते ही बिशनसिंह धरती पर गिरकर तड़पने लगा और कुछ देर बाद ही उसके प्राणपखेरू उड़ गए।

शेष सभी कूकाओं को काबेन के आदेश पर तोपों के मुँह से बाँध कर उड़ा दिया गया। गुरु के प्रति भक्ति-भावना रखने वाले तथा अंग्रेजों से घृणा करने वाले देशभक्त बिशनसिंह ने अपना बलिदान दे दिया। उसने सिद्ध कर दिया कि भारतीय अपने गुरु और देश के सम्मान की रक्षा करने में मौत से भी नहीं डरते। ऐसे ही वीर सपूतों को पाकर भारतमाता निहाल हो उठी। स्वतन्त्र भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा। निम्नलिखित पंक्तियाँ सम्भवतः बिशनसिंह की भावनाओं को प्रकट करती हैं-

जो हार मान ले, झुक जाए, चुक जाए
मानव कहलाने का उसको क्या हक है?
संघर्ष करे जो, जूझे और टकराए
जग में जीने का उसको हक बेशक है।


 

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