HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 11 – भास्कराचार्य Explanation Solution

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HBSE Class 8 Naitik Siksha Chapter 11 भास्कराचार्य Explanation for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 8th Book Solution.

भास्कराचार्य Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 11 Explanation


भास्कराचार्य का जन्म 1114 ई. में हुआ था किन्तु उनके जन्मस्थान के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं। भास्कर ने अपना गौत्र शांडिल्य और मूल स्थान विज्जडविड बताया है। उन्होंने लिखा है

“आसीत् सह्य कुलाचलाश्रितपुरे त्रैविद्यविद्वज्जने,
नाना सज्जनधाम्नि विज्जडविडे शांडिल्य गोत्रो द्विजः ।।

उपर्युक्त कथन के आधार पर कुछ विद्वानों ने उनका जन्मस्थान सह्याद्रि पर्वत की घाटियों में से विज्जडित ग्राम माना है। एक सम्भावना यह भी है कि गोदावरी के निकट विज्जडविड भास्कर का निवास स्थान है।

भास्कराचार्य के समय भारत बड़ी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा था। मुगलों के आक्रमण और धर्मान्धता के बढ़ते प्रभाव के कारण राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का ह्रास हो रहा था। समाज और संस्कृति पददलित हो रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में गणित और ज्योतिष के क्षेत्र में भास्कराचार्य ने नवीन शोध किए तथा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की।

भास्कराचार्य के पिता महेश्वर ने ही उन्हें गणित की शिक्षा दी जो स्वयं एक गणितज्ञ थे। उनके पुत्र लक्ष्मीधर और पौत्र गंगदेवा भी खगोलविद् एवं गणितज्ञ थे। भास्कराचार्य ने ‘सूर्य सिद्धान्तः सिद्धान्त शिरोमणि’ ‘करण कौतूहल’ तथा ‘रसगुण’ ग्रन्थों की रचना की। सिद्धान्त शिरोमणि चार भागों में विभाजित है- लीलावती, बीजगणित, ग्रहमणिताध्याय, गोलाध्याय। इस ग्रन्थ का लीलावती खण्ड और ‘सूर्य सिद्धान्त’ बहुत विख्यात हैं। यूरोपियन विद्वानों ने भी इनकी बहुत प्रशंसा की है। सन् 1587 में मुगल सम्राट अकबर ने फैजी द्वारा ‘लीलावती’ का अनुवाद फारसी भाषा में तथा सन् 1810 में एच.टी. कोलबुक ने इसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया था। इसमें 278 पद्य हैं। भास्कराचार्य की पुत्री का नाम लीलावती था, अतः उन्होंने अपना ग्रन्थ लीलावती को समर्पित किया। इस पुस्तक के नामकरण के विषय में एक रोचक प्रसंग मिलता है। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यदि लीलावती का विवाह एक विशेष दिन और मुहूर्त में नहीं हुआ तो वह विधवा हो जाएगी। भास्कराचार्य ने ज्योतिष गणना के आधार पर वह विशेष दिन और मुहूर्त खोज निकाला। सही समय पता लगाने के लिए उन्होंने एक नाड़िका यन्त्र (एक प्रकार की जलघड़ी जिसका प्रयोग प्राचीन ज्योतिषी काल- गणना के लिए करते थे) स्थापित किया तथा लीलावती को उसके पास जाने के लिए मना किया। लेकिन लीलावती कौतूहलवश जब उस घड़ी को देख रही थी तो उसकी नाक की लौंग का मोती उस जलपात्र में गिर पड़ा। मोती जलघड़ी के छिद्र में फँस गया तथा उससे पानी कम हो गया। परिणामतः विवाह के मुहूर्त की गणना गलत हो गई। विवाह के एक सप्ताह पश्चात् ही लीलावती के पति की चट्टान से गिरकर मृत्यु हो गई। भास्कराचार्य ने इस दुर्घटना के लिए अपने आपको दोषी माना। उन्होंने अपनी पुत्री को सांत्वना देते हुए कहा- “मैं तुम्हारे नाम से एक ऐसा ग्रन्थ रखूँगा जो अमर कीर्ति बना जाएगा, क्योंकि सुनाम एक प्रकार का दूसरा जीवन ही तो है।”

लीलावती नामक ग्रन्थ का प्रारम्भ उस समय में प्रचलित भार तथा माप की इकाइयों के वर्णन से होता है। इसमें दसगुणोत्तर प्रणाली से अंक दर्शाए गए हैं। इसमें अंकगणित की बीस संक्रियाएँ संकलन (जोड़), व्यकलन (घटा), गुणन (गुणा), विभाजन (भाग), वर्ग, वर्गमूल, घनमूल, वस्तु-विनिमय, आदि तथा आठ सारिणियों के मिश्रण, खुदाई, भण्डार, शंकु की छाया, अनाज का ढेर आदि का विवेचन है। इसके अतिरिक्त इसमें द्वितीय घात के निर्धार्थ समीकरणों त्रिभुजों, चतुर्भुजों, वृत्तों के क्षेत्रफल, पिरामिड आदि के घन सम्बन्धी प्रश्न भी दिए हैं। कुछ प्रश्न देखिए-

प्रतिलोभन का प्रश्न एक तीर्थयात्री ने अपनी राशि का आधा भाग प्रयाग में, शेष का 2/9 भाग काशी में, फिर शेष भाग का 1/4 भाग सड़क कर के रूप में दे दिया। जो बचा, उसका 6/10 गया में दिया फिर उसके पास 63 शेष रहे। मुझे बताओ कि उसके पास शुरु में कितनी राशि थी?

समकोण त्रिभुज का प्रश्न देखिए एक स्तम्भ की जड़ में साँप का बिल बना हुआ है तथा एक मोर उसकी चोटी पर बैठा है। स्तम्भ की ऊँचाई से तीन गुणा फासले पर साँप को बिल की ओर आते देखकर मोर उस पर तिरछा झपटा। झटपट यह बताओ कि ये दोनों साँप के बिल से कितने हाथ की दूरी पर मिले, यदि उन दोनों ने समान फासला तय किया हो?

‘सिद्धान्त शिरोमणि’ ग्रन्थ के बीजगणित खण्ड में वर्णित बीजगणित सम्बन्धी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण खोजों व सामग्री का उल्लेख यहाँ उपादेय नहीं है। सामान्य व्यक्ति या विद्यार्थी इनको नहीं समझ सकता। केवल विशेष स्तर के विद्यार्थी ही इसे समझ सकते हैं।

भास्कराचार्य ने पृथ्वी के आधार के सम्बन्ध में लोगों की मिथ्या धारणाओं और भ्रमों का समाधान किया तथा प्रमाण सहित सिद्ध किया कि पृथ्वी निराधार है और उसके चारों ओर विद्यमान ग्रह तथा नक्षत्र परस्पर एक-दूसरे को खींचे हुए हैं। पृथ्वी धँसती नहीं है तथा अन्य ग्रहों के समान शून्य में निराधार स्थित है।

उन्होंने लिखा है कि सूर्य की गति क्रान्ति-वृत्त एक समान नहीं रहती। उनका यह कथन आधुनिक अनुसन्धानों से सत्य सिद्ध हुआ है। यही नहीं उन्होंने जर्मन विद्वान केपलर के, ‘गोजे की सतह और उसके घनफल’ को निकालने के नियम का पूर्वाभ्यास कर लिया था। न्यूटन से 500 वर्ष पहले ही उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त का विकास कर लिया था। उन्होंने लिखा-“आकृष्टि शक्तिश्च मही तपायत स्वस्थं गुरु स्वामि मुखं स्वशक्त्या”। अर्थात् भूमि में आकर्षण शक्ति है, इसलिए आकाश में स्थित भारी पदार्थों को भूमि अपनी शक्ति से अपनी ओर खींच लेती है।

भास्कराचार्य के पास आधुनिक युग की शक्तिशाली दूरबीनों की तरह कोई दूरबीन नहीं थी। अतः वे केवल रात में ही बाँस की नलिका की सहायता से ग्रहों और नक्षत्रों का निरीक्षण किया करते थे। वे ग्रह-नक्षत्रों के उदय-अस्त व गति से सम्बन्धित अपने निष्कर्षों को पुस्तक मे भी लिखते थे। उनके द्वारा स्थापित सिद्धान्तों-चक्रवाल (इन्वर्स साइक्लिंग), समाकलन गणित (इंटीग्रल केलकुलस), अवलकल गणित (डिफरेन्शल केल कुलस), अवकल गुणांक (डिफरेंशल कोफी शंट), तात्कालिक गति (ग्रहों की गति) कोआधुनिक वैज्ञानिक भी सत्य या सत्य के निकट मानते हैं। डॉ. स्पोटवुड ने रॉयल सोसायटी की पत्रिका में लिखा है- “भास्कराचार्य की विवेचन सूक्ष्मता उच्च कोटि की है, यह हमें स्वीकार करना होगा। उन्होंने जिन गणित ज्योतिष सिद्धान्तों की स्थापना की है और वह जिस दर्जे की है, उसकी तुलना हम आधुनिक गणित-ज्योतिष से नहीं कर सकते हैं।”

भारत के इस महान गणितज्ञ का 65 वर्ष की आयु में सन् 1179 ई. में देहान्त हो गया। भास्कराचार्य की गणित-विज्ञान को अनुपम देन को सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने अपने एक उपग्रह का नाम ‘भास्कर’ रखा है।


 

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