HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 13 – ऊधम सिंह Explanation Solution

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ऊधम सिंह Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 13 Explanation


भारतीय क्रान्तिकारियों में ऊधम सिंह एक ऐसे क्रान्तिवीर के रूप में प्रसिद्ध हैं जिन्होंने सात समुद्र पार जाकर अंग्रेजों से भारतीयों के खून का बदला लिया। ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेरसिंह था। शेरसिंह बचपन से ही बहुत साहसी थे। उनके बचपन की एक घटना से उनकी वीरता प्रकट होती है। शेरसिंह के पिता जहाँ चौकीदार थे, वह पंजाब प्रान्त का एक छोटा-सा स्टेशन था। स्टेशन देहात में था और उसके चारों तरफ जंगल था। जंगल में भेड़िए, जंगली सुअर, तेंदुए आदि काफी संख्या में थे। इस इलाके में भेड़िए बड़े भयानक थे और स्टेशन पर रहने वाले कर्मचारियों की गाय-भैंसों को अपना शिकार बना लेते थे। एक दिन शैतान भेड़िए ने बकरी को अपना शिकार बना लिया। शेरसिंह उस भेड़िये से अपनी गाय-भैसों की रक्षा करना चाहते थे। अतः उन्होंने भेडिये को मारने का मन बना लिया।

शेरसिंह उसका इन्तजार करने लगा। आठ-दस दिन शेरसिंह सो न सका। एक दिन बारह बजे उसने एक भेड़िए को आते हुए देखा। शेरसिंह ने रस्सी का एक फन्दा भेड़िए के गले में फेंका और दूसरा सिरा दीवार से निकले हुए एक लोहे के मजबूत कड़े में बाँध दिया। फन्दा फँसने से भेड़िया मर गया। शेरसिंह की बहादुरी पर सभी गर्व अनुभव कर रहे थे।

पिता और भाई की मृत्यु के पश्चात् उनका पालन-पोषण एक अनाथाश्रम में हुआ। उस अनाथाश्रम के संचालक जयचन्द्र शर्मा क्रान्तिकारी विचारों के थे। उनसे प्रभावित होकर ही शेरसिंह में देशभक्ति की भावना बलवती हुई और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे। शेरसिंह क्रान्तिकारियों की चिट्ठियों को यथा स्थान पहुँचाने का कार्य सावधानीपूर्वक करते थे।

जलियाँवाला बाग का हत्याकाण्ड बालक शेरसिंह ने अपनी आँखों से देखा था जिसे देखकर उसका बालमन दहल गया था। शेरसिंह ने जनरल डायर को मारने की प्रतिज्ञा कर ली किन्तु गुजराँवाला का काण्ड देखकर वे अमृतसर से भाग गए। कुछ समय उपरान्त उन्हें पता चला कि जनरल डायर सात साल की लम्बी बीमारी के बाद लंदन में मर गया तो उसे अपनी असफलता पर दुख हुआ।

शेरसिंह ने तभी दूसरी प्रतिज्ञा की कि वह गुजराँवाला काण्ड के माइकल ओ डायर से भारतीयों के प्रति दिखाई गई क्रूरता का बदला लेगा। शेरसिंह 33 वर्ष की आयु में इंग्लैंड गए और उन्होंने अपना नाम शेरसिंह से बदलकर ऊधम सिंह कर लिया। 3 मार्च, 1940 को लन्दन के केक्सटन हॉल में एक सभा का आयोजन होना था, जिसमें माइकल ओ डायर को भाषण देना था। ऊधम सिंह ने एक दिन पहले जाकर केक्सटन हॉल का निरीक्षण किया और दूसरे दिन जमकर खाना खाया। ऊधम सिंह ने केक्सटन हॉल पहुँचकर माइकल ओ डायर को उनके साथियों समेत गोलियों से भूनकर गुजराँवाला-काण्ड का बदला लिया और वीरतापूर्वक वहीं डटे रहे। ऊधम सिंह ने वहाँ से भागने का प्रयास नहीं किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फाँसी की सजा सुनाई गई। अपने अन्तिम समय तक भी उनके मुँह से ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ व ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे उच्चरित होते रहे।


 

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