HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 14 – गुरुपर्व Explanation Solution

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गुरुपर्व Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 14 Explanation


त्योहार हमारी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतीक हैं। त्योहार हमारे जीवन में उत्साह का संचार करते हैं। वे हमें गौरवमयी इतिहास के मंगलमय मन्त्र सिखाते हैं। हमारे त्योहारों का आरम्भ किसी न किसी समाज सुधार के उद्देश्य को लेकर हुआ है। गुरु को सम्मान देने की परम्परा हमारी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है। गुरु हमारे जीवन में भगवान् के समान होता है। कबीरदास तो गुरु को भगवान् से भी बड़ा मानते थे।

गुरु गोबिन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिन्द दियो मिलाय ।।

गुरु का जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। साहित्य और शास्त्रों में गुरु की महिमा का बड़ा सुन्दर वर्णन हुआ है। सिख गुरुओं के जीवन से सम्बन्धित ‘गुरुपर्व’ एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। गुरुपर्व का शाब्दिक अर्थ है- गुरुओं की स्मृति में उत्सव। यहाँ हम उस त्योहार का उल्लेख कर रहे हैं जो सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरुनानकदेव के जन्मोत्सव पर बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह से मनाया जाता है। गुरुनानकजी का यह प्रकाशोत्सव कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

उनका जन्म 1469 ई. में तलवण्डी (ननकाना साहिब) में हुआ। उन्होंने अपने दो पुत्रों की अपेक्षा अपने योग्य शिष्य भाई लहणा (श्री गुरु अंगददेवजी) को गुरुगद्दी सौंपी। वे 22 सितम्बर, 1539 ई. को ज्योति में ज्योतिवत लीन हो गए। उन्होंने जाति-पाँति, छुआछूत तथा अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाई। जनता को सारहीन भ्रमों एवं भ्रान्तियों से मुक्त किया। उन्होंने समस्त संसार को परस्पर प्रेम, भाईचारे तथा नम्रतापूर्वक रहने का सन्देश दिया। उनकी पवित्र वाणी ‘श्री गुरुग्रन्थ साहिब’ में संकलित है। वे जनसामान्य की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान करने वाले महान विचारक थे तथा अपनी सुमधुर सरल वाणी से जनमानस के हृदय को झंकृत कर देने वाले महान सन्त कवि थे। उन्होंने बेहद सरल भाषा में समझाया कि सभी इन्सान एक-दूसरे के भाई हैं। ईश्वर सबका पिता है, फिर हम सन्तानो में भेद कैसे हो सकता है?

अबूल अल्लाह नूर उपाय, कुदरत दे सब बन्दे ।
एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले को मन्दे ।।

गुरुनानकजी ने स्वयं एक आदर्श बनकर सामाजिक सद्भाव का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने लंगर की परम्परा चलाई, जहाँ सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर एक पंक्ति में भोजन करते हैं। लंगर सेवा का ऐसा विशाल कार्यक्रम है जो बिना भेदभाव के होता है। जातिगत वैमनस्य को दूर करने के लिए उन्होंने संगत परम्परा शुरु की जहाँ हर जाति के लोग इकट्ठे होकर प्रभु की आराधना करते थे। इस प्रकार तत्कालीन सामाजिक परिवेश में गुरुनानकजी ने इन क्रान्तिकारी कदमों से एक ऐसे भाईचारे की नींव रखी जिससे धर्मजाति का भेदभाव खत्म हो गया।

गुरुपर्व का यह त्योहार निष्ठा, प्रेम, साहचर्य के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर गुरुद्वारों में “श्रीगुरुग्रन्थसाहिब के अखण्ड पाठ’ अर्थात् अविराम पाठ किए जाते हैं। गुरुपर्व से एक दिन पूर्व नगर कीर्तन अर्थात् शोभा यात्राएँ निकाली जाती हैं। इस पर्व की शोभा तब और भी बढ़ जाती है जब गंगा स्नान करने वालों के कानों में अमृतवाणी की मधुर ध्वनि पड़ती है। यह सुखद संयोग भारतीय धार्मिक सहिष्णुता का परिचय देता है। इनके शिष्य तलवारबाजी के जो करतब दिखाते हैं रणकौशल का प्रतीक हैं। गुरुद्वारों एवं अन्य स्थानों पर जगह-जगह लंगर चलाया जाता है, यह एक बड़ा सेवाकार्य है। गुरुनानकदेव ने अपने सिद्धान्तों से पूरे विश्व में मानवता एवं भाईचारे का अद्भुत सन्देश दिया है। हम सभी को उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण कर श्रेष्ठ राह पर चलना चाहिए।


 

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