HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 17- 1857 की क्रान्ति में ‘रोहनात’ का योगदान Explanation Solution

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1857 की क्रान्ति में ‘रोहनात’ का योगदान Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 17 Explanation


हरियाणा राज्य के पश्चिम में स्थित आधुनिक भिवानी जिले में एक गाँव है-रोहनात। इस गाँव के वीर सपूतों ने सन् 1857 की महान क्रान्ति में अतुल्य योगदान दिया। रोहनात की विद्रोह में भूमिका को समझने के लिए हांसी, हिसार व तोशाम की गतिविधियों की जानकारी आवश्यक है। 10 मई, 1857 के बाद उत्तरी भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत हो गई थी। हिसार में इसकी सूचना 27 मई को मुहम्मद आज़म द्वारा दी गई।

क्रान्ति का आरम्भः

सन् 1857 में रोहनात गाँव हिसार कमिश्नरी के अंतर्गत था। हिसार में क्रान्ति का नेतृत्व हुकुमचंद जैन, मुनीर बेग, फकीरचंद, रुकुनुद्दीन मौलवी, शहबाज बेग, गुरबक्श सिंह तथा मुहम्मद आज़म कर रहे थे। योजना के अनुसार 29 मई, 1857 को दादरी के रजब बेग के नेतृत्व में एक घुड़सवार दस्ते ने तोशाम के रास्ते रोहनात, मंगाली व पुट्ठी के लोगों को साथ लेकर 11 बजे हांसी छावनी पर हमला कर दिया। उन्होंने वहाँ पर अंग्रेजी शासन को समाप्त करके उसी दिन एक बजे हिसार के जिला मुख्यालय पर भी हमला किया जिसमें तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर वैडरबर्न व तहसीलदार थॉमसन मौके पर मारे गए। इसके बाद क्रान्तिकारियों ने जेल तोड़कर बन्दियों को मुक्त कराया, किले पर आक्रमण करके उस पर कब्जा किया तथा खजाने में रखे 1,70,000/- रुपये लूट लिए।

क्रान्ति का विस्तारः

अंग्रेज सरकार द्वारा पश्चिमी हरियाणा क्षेत्र के लिए जनरल वॉर्न कोर्टलैंड को नियुक्त किया गया। 2 अगस्त को हाँसी में कोर्टलैंड व स्थानीय लोगों के बीच संघर्ष हुआ। स्थानीय लोगों का नेतृत्व हुकुमचन्द जैन व मुनीर बेग कर रहे थे। इस संघर्ष में रोहनात गाँव के भिरडी दास बैरागी, रूपा खाती व नोन्दा राम जाट की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। कोर्टलैण्ड के हांसी में होने का लाभ उठाकर क्रान्तिकारियों ने मौहम्मद आज़म के नेतृत्व में संगठित होकर 3 अगस्त को हिसार पर कब्जा कर लिया। कोर्टलैण्ड को हांसी छोडनी पड़ी किन्तु शीघ्र ही उसने 8 अगस्त को हिसार के किले पर फिर से कब्जा कर लिया। इस तरह किले पर अंग्रेजों का तथा किले से बाहर के क्षेत्र पर क्रान्तिकारियों का नियन्त्रण था। 19 अगस्त, 1857 को किले के नागौरी गेट पर एक महत्त्वपूर्ण युद्ध हुआ। अंग्रेजी तोपों व बंदूकों के सामने स्थानीय लोगों के गंडासे, जेली व कुल्हाड़ियाँ अधिक देर न टिक सके। अंततः इस संघर्ष में 300 क्रान्तिकारी मौके पर ही मारे गए, 180 की लाशें समीपवर्ती क्षेत्र में मिलीं जबकि 123 लोगों को पकड़कर रोड रोलर के नीचे कुचल दिया गया। 25 अगस्त को रोहनात, नलवा, हाज़िमपुर आदि गाँवों के क्रान्तिकारियों ने तोशाम पर कब्जा कर लिया। किन्तु शीघ्र ही 30 अगस्त को कोर्टलैंड ने पुनः तोशाम पर कब्जा कर लिया।

30 सितम्बर को प्रातःकाल हांसी के समीपवर्ती गाँव जमालपुर में युद्ध हुआ जहाँ हार के बाद क्रान्तिकारी पीछे हटे तथा रोहनात गाँव में जम गए। कड़े संघर्ष के बाद कोर्टलैंड को यहाँ क्रान्ति पर काबू पाने में सफलता मिली। उसने गाँव को आग के हवाले कर दिया जिसमें कुछ महिलाओं ने जान बचाने के लिए बच्चों सहित कुएँ में छलाँग लगा दी। रोहनात स्थित ऐतिहासिक कुँआ जहाँ महिलाएं बच्चों सहित तोपों के भय से प्राण रक्षा हेतु कूद गई

क्रान्ति का दमनः

30 सितम्बर के बाद आगामी चार माह तक यहाँ कोर्टलैंड ने खूब अत्याचार किए। बग़ावत में शामिल लोगों को उनके गाँव के बाहर सार्वजनिक स्थानों पर पेड़ों पर लटकाकर फाँसी दी गई तथा परिवार के सदस्यों को स्पष्ट निर्देश दिए गए कि इन मृत शरीरों को आगामी आदेश तक पेड़ों से न उतारा जाए। लोगों को हांसी लाकर रोड़ रोलर के नीचे कुचला गया। रोहनात के स्वामी भिरड़ी दास व रूपा खाती को सार्वजनिक रूप से तोप से बाँधकर उड़ा दिया गया। नोन्दा राम जाट को हांसी ले जाकर रोड रोलर के नीचे कुचल दिया गया। सरकार ने सख्त आदेश जारी करके, लोगों को इनके परिवार को किसी भी रूप में साथ न देने का फरमान सुना दिया। भिरड़ी दास के परिवार ने गाँव छोड़ दिया तथा वे ईसरवाल गाँव के पास रोढ़ा नामक गाँव में बस गए। वहाँ उन्होंने भिरडी दास के नाम पर एक मन्दिर भी बनवाया।

इस गाँव पर अंग्रेजी दमन की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। सूची बनाकर इस क्षेत्र के 133 लोगों को फाँसी दी गई। प्रस्तुत लोकगीत की ये पंक्तियाँ अंग्रेजों के अत्याचार पर प्रकाश डालती हैं

“हांसी आली लाल सड़क पै, हजारां गए लिटाए थे
सड़क बनी थी नदी खून की, न्यूं रोलर फिरवाए थे,
रुहणात गाम मैं कोल्हू चाले, भोत घणे पिड़वाए थे,
चौबीसी के लीडर सारे महम मैं मरवाए थे।”

निम्न पंक्तियाँ भी इसी क्षेत्र की दर्दनाक कहानी का वर्णन करती हैं –

“बख्त बदलग्या अंग्रेज़ सम्भलग्या, तोपां के मुंह फेर दिए,
देश भगत जिब ढीले पड़गे दुश्मन नैं मैं घेर लिए,
रूहणात गाम मैं कोल्हू चाल्या, पीड़-पीड़ कै गेर दिए,
लाल सड़क हांसी आली पै, कर वीरां के ढेर दिए।”

दमन के पश्चातः

क्रान्ति के दमन के बाद समूचे रोहनात गांव को दण्डित करने के लिए यहाँ की ज़मीन नीलाम करने का फैसला किया गया। ज़मीन संबंधी विभिन्न तरह की सूचनाओं को प्राप्त करके फाइनैन्शियल कमिश्नर पंजाब लाहौर द्वारा पत्र संख्या 1076 दिनांक 12 अप्रैल, 1858 को नीलामी का आदेश जारी कर दिया गया। नीलामी की कार्यवाही 20 जुलाई, 1858 को जिलाधीश जनरल बिन तहसीलदार हांसी की देखरेख में हुई। इसमें गाँव की आबादी व तालाब का 13 बीघा 10 बिसवे जमीन को छोड़कर पूरा गाँव रुपये 8100/- में नीलाम कर दिया गया। इस नीलामी के अवसर पर यह स्पष्ट कर दिया गया कि तालाब के किनारे व मार्गों पर खड़े पेड़ भी मूल निवासियों (बागियों) के नहीं होंगे, बल्कि जिसका खेत उसके साथ लगता होगा, वह उनका मालिक होगा। यह जमीन कुल 61 लोगों ने खरीदी। नीलामी के रुपयों के कोष में जमा होने के बाद सरकार द्वारा गाँव के लोगों को उनके खेतों से बेदखल कर दिया गया। इसी दस्तावेज में यह भी स्पष्ट किया गया कि इस जमीन के विरुद्ध किसी तरह की कोई अपील नहीं होगी। यहाँ के निवासी स्थायी तौर पर बागी माने जाएँगे तथा इनकी संतान को बागियों की संतान कहा जाएगा। इस घटना के बाद भी केवल आबादी क्षेत्र में मूल निवासी बचे तथा जब तक अंग्रेजी शासन रहा, वे निरन्तर भेदभाव का शिकार होते रहे।

इस प्रकार देशभक्ति की इतनी बड़ी कीमत चुकाने वाला यह गाँव व इसके वीर सपूतों की गाथाएँ प्रदेश में हमेशा आत्मगौरव व प्रेरणा का स्रोत रहेंगे।


 

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