HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 18 – रेज़ांग ला : ज़रा याद करो कुर्बानी Explanation Solution

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रेज़ांग ला : ज़रा याद करो कुर्बानी Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 18 Explanation


इतिहास के पन्नों में कुछ तारीखें हमेशा के लिए अमर हो जाती हैं। 18 नवम्बर एक ऐसी ही तारीख है, जब भारतीय सैनिकों ने अपने अदम्य साहस एवं प्रेरक बलिदान की अनूठी मिसाल कायम की। 18 नवम्बर, 1962 को भारत-चीन के बीच हुए इस युद्ध में भारतीय सेना की 13 कुमाऊँ रेजीमेंट की चार्ली कम्पनी के 114 जवानों ने कठिन परिस्थितियों में अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपनी अंतिम सांस तक मातृभूमि की रक्षा की एवं प्राणों का बलिदान दिया।

यह युद्ध रेज़ांग ला में लड़ा गया। रेज़ांग ला भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में चुशूल घाटी के दक्षिणपूर्व में उस घाटी में प्रवेश करने वाला एक पहाड़ी दर्रा व सामरिक महत्त्व की चौकी है। इसकी औसतन ऊँचाई सोलह हजार फुट है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में इस चौकी पर तैनात लगभग 120 जवानों की चार्ली कम्पनी का नेतृत्व, मेजर शैतान सिंह कर रहे थे। इस सेना में बड़ी संख्या में सैनिक अहीरवाल क्षेत्र से थे।

17-18 नवम्बर की रात्रि में चीनी फौज ने रेज़ांग ला के आस-पास चढ़ाई कर दी। उस समय यहाँ का तापमान शून्य से बहुत नीचे था। असामान्य व खून जमा देने वाली कडाके की ठंड थी। सुबह पौ फटने से पहले ही चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया। भारतीय सैनिकों ने जबरदस्त जवाबी कार्यवाही की। इस युद्ध में शत्रु सेना के बहुत से सैनिक मारे गए व घायल हो गए। चीनी सैनिकों के लिए पीछे से मदद पहुँच जाने पर उन्होंने एक और जबरदस्त हमला किया। दूर-दूर तक चीनी सैनिकों की लाशें बिछी थीं। कई जगह हमलावरों को अपने ही सैनिकों की लाशों पर से गुज़रना पड़ा। अब चीनी फौज ने भारतीय चौकी को घेर लिया व भारी बम्बारी शुरु कर दी। वे भारतीय सैनिकों की अपेक्षा संख्या में बहुत अधिक थे तथा उनके पास हथियार व गोला बारुद भी काफी उन्नत किस्म के थे। फिर भी हमारे जांबाज सिपाहियों ने हिम्मत नहीं हारी। वे मोर्चे पर डटे रहे तथा उन्होंने अपने से कई गुना ज्यादा संख्या में चीनियों को मौत के घाट उतारा। वे आखिरी सांस तक दुश्मन से लोहा लेते रहे। इसीलिए इस युद्ध को ‘आखिरी गोली व आखिरी सैनिक’ का युद्ध भी कहा जाता है। इस कम्पनी के अधिकांश जवान शहीद हो गए किन्तु चीन के नापाक इरादों को सफल नहीं होने दिया।

फरवरी 1963 में इंटरनेशनल रेडक्रास के जरिए एक भारतीय दल वहाँ पहुँचा। उन्हें यहाँ बर्फ की चादर में लगभग 96 शहीदों के पार्थिव शरीर युद्धमुद्रा में मिले। अनेक शहीदों ने मृत्यु के इतने समय बाद तक भी बंदूक व हथियार कसकर पकड़े हुए थे। इससे साबित होता है कि उन्होंने अंतिम सांस तक युद्ध किया था।

मेजर शैतान सिंह के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए जोधपुर भेजा गया तथा शेष शहीदों का अंतिम संस्कार मोर्चे पर ही किया गया। यहाँ उनकी शहादत को चिरस्थाई एवं प्ररेणापुंज बनाने के लिए एक स्मारक बनाया गया। अहीर-धाम नामक इस युद्ध स्मारक पर थॉमस बैबिंगटन मैकाले की कविता ‘होरेशियस’ के प्रेरक अंश इस शहादत का भावपूर्ण स्मरण कराते है।

देश व दुनिया में अपनी अनूठी शहादत परम्परा और सैन्य संस्कृति के लिए प्रख्यात वीरभूमि हरियाणा में अनेक स्थानों पर इन वीर शहीदों की स्मृति में स्मारक एवं स्मृतिस्थल बनाए गए है। यहाँ प्रतिवर्ष 18 नवम्बर को रेजांग ला के इन शहीदों को अनेक संगठनों के माध्यम से याद किया जाता है।

रेवाड़ी जिले में गाँव धवाना के दो सगे भाईयों, वीर चक्रा नायक सिंहराम तथा सिपाही रामकुमार की मार्मिक शहादत के किस्से क्षेत्र की शौर्य गाथाओं में सुने जाते हैं। जैसे-

“एक कोख के दूणों लाल,
भारत माँ की बणगै ढाल।”

इसी प्रकार इन वीर शहीदों की याद में कुछ आल्हा गीत भी प्रचलित हैं। जैसे-

“खूब लड़े वै वीर गाभरू,
खूब मिलाई सुर मै ताल।
टुकड़ी एक सौ चौबीस की,
या कायम कर गई मिसाल।
छाती पै सबने गोली खाई,
फैल करी बैरी की चाल।”

इस युद्ध के जांबाज़ रणबांकुरों की वीरता एवं बलिदान के लिए भारत सरकार द्वारा चार्ली कम्पनी के कमांडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरान्त परमवीर चक्र, आठ जवानों को वीर चक्र तथा चार को सेना मैडल से अलंकृत किया गया।

मेज़र शैतान सिंह तथा उनकी चार्ली कम्पनी के सैनिकों के अतुल्य बलिदान की गाथाएँ आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करती रहेंगी।


 

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