HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 2 – योगासन एवं प्राणायाम Explanation Solution

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HBSE Class 8 Naitik Siksha Chapter 2 योगासन एवं प्राणायाम Explanation for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 8th Book Solution.

योगासन एवं प्राणायाम Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 2 Explanation


योगासन

पादहस्तासन

अर्थ – यहाँ पर ‘पाद’ का अर्थ पाँव तथा ‘हस्त’ का अर्थ हाथ है। इस आसन में हाथों का पैरों से सम्पर्क होता है इसलिए इसे पादहस्तासन कहा जाता है।

स्थिति – सामान्य स्थिति की अवस्था में खड़े होकर इस आसन का अभ्यास करें।

विधि –

  1. दोनों पैरों को सटाकर खड़े हो जाएँ, श्वास लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएँ। हाथों को खुला रखें तथा अँगुलियों को सटाकर हथेलियाँ सामने की ओर रखें।

  2. श्वास को बाहर छोड़ते हुए सामने की ओर धीरे-धीरे झुकें, दाईं हथेली को दाएँ पैर के साथ तथा बाईं हथेली को बाएँ पैर के साथ धरती पर टिकाने का प्रयास करें परन्तु घुटनों को सीधा रखें।

  3. आँखों को शरीर की स्थिति के अनुसार रखें और श्वास खींचते हुए धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाएँ।

लाभ –

  1. माँसपेशियाँ मजबूत होती हैं।

  2. मोटापा कम होता है।

  3. शरीर चुस्त और फुर्तीला बनता है।

  4. रक्त-संचार की क्रिया नियमित रहती है।

धनुरासन

अर्थ – ‘धनुर’ शब्द धनुष के अर्थ में लिया गया है क्योंकि इस आसन में शरीर धनुष के समान हो जाता है। इसलिए इसे ‘धनुरासन’ कहते हैं।

स्थिति – स्वच्छ कम्बल या दरी पर पेट के बल लेटकर अभ्यास करें।

विधि –

  1. पेट के बल लेटकर दोनों टखनों को हाथों से पकड़ें परन्तु नाभि को भूमि पर टिकाए रखें।

  2. शरीर के ऊपरी और निचले भाग को ऊपर उठाएँ और कुहनियों को सीधा रहने दें। सिर को ऊपर उठाएँ रखें तथा नज़र सामने रहने दें।

  3. इसके बाद बिना झटके के शरीर को धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लाएँ। शुरू में आधे मिनट तक यह आसन किया जा सकता है, फिर समय बढ़ाते हुए दो मिनट तक इसका अभ्यास करें।

लाभ –

  1. इस आसन से बुद्धि कुशाग्र होती है।

  2. स्नायुमण्डल मजबूत होता है।

  3. गुर्दे तथा लीवर सुचारु रूप से कार्य करते हैं।

  4. कब्ज और पेट के दूसरे रोग ठीक होते हैं।

उष्ट्रासन

अर्थ – ‘उष्ट्र’ का अर्थ होता है-ऊँट। इस आसन को करते समय शरीर ऊँट जैसी स्थिति में आ जाता है इसलिए इसे ‘उष्ट्रासन’ कहते हैं।

स्थिति – इस आसन को करने के लिए जमीन पर कम्बल या तौलिया रख लें। घुटनों के नीचे कोई मुलायम चीज़ रखकर अभ्यास करें।

विधि –

  1. घुटनों के सहारे खड़े होकर दाहिने हाथ से दाहिने पैर के टखने एवं बाएँ हाथ से बाएँ पैर के टखने के भाग को पकड़ लें। यदि टखना नहीं पकड़ सकते तो एड़ी पकड़ लें।

  2. एड़ी या टखनों को पकड़े हुए ही जाँघों तथा कमर को सीधा करें।

  3. सिर, गर्दन को यथासम्भव पीछे की ओर झुका दें। कमर के हिस्से को आगे की ओर थोड़ा-सा धकेलें।

  4. सामान्य साँस लेते हुए इस अवस्था में 6 से 8 सेकेण्ड तक रहें तथा धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाए।

लाभ –

  1. दमा के रोगियों के लिए उष्ट्रासन बहुत फायदेमन्द है।

  2. गर्दन, कन्धों या रीढ़ की कोई भी विकृति इससे धीरे-धीरे ठीक होने लगती है।

  3. आँखों की रोशनी से सम्बन्धित दोष दूर होते हैं।

  4. गले की बीमारी, टांसिल, आवाज का दोष तथा सिर के स्थायी दर्द में यह आसन बहुत लाभदायक है।

प्राणायाम

उद्गीथ प्राणायाम

यह शान्ति एवं सौम्यता प्रदान करने वाला प्राणायाम है। इसके करने से अन्तर्मन में अत्यन्त शान्ति का अनुभव होता है। ‘उद्‌गीथ’ शब्द ओ३म् का ही वाचक है।

विधि –

  1. इस प्राणायाम को करने के लिए किसी भी ध्यानमुद्रा वाले आसन का चयन करें।

  2. सबसे पहले 3 से 5 सेकेण्ड में श्वास को बिना रुकावट अन्दर भरें।

  3. श्वास भरने के बाद 15 से 20 सेकेण्ड तक ओ३म् शब्द का उच्चारण करते हुए श्वास को बाहर छोड़ें।

  4. इस तरह से लगभग तीन मिनट तक इस प्राणायाम का अभ्यास करें।

लाभ –

  1. इस प्राणायाम के करने से स्थिरता, एकाग्रता व ध्यान लगाने में सहायता मिलती है।

  2. इससे डर, भय और निराशा दूर होती है व आत्मविश्वास बढ़ता है।

  3. इस प्राणायाम के निरन्तर करते रहने से बार-बार क्रोध आना, चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या, हिंसा आदि की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है।

उज्जायी प्राणायाम

‘उज्जायी’ शब्द का अर्थ है ओर उठना। ऊपर की स्थिति इस प्राणायाम को करने के लिए किसी कम्बल या दरी पर प‌द्मासन में बैठ जाएँ।

विधि –

  1. आँखें बन्द रखें एवं ज्ञानमुद्रा बना लें।

  2. अब नासिका द्वारा इस प्रकार साँस लें कि कण्ठ में घर्षण करते हुए ध्वनि उत्पन्न हो।

  3. अब नासिका से वायु को धीरे-धीरे बाहर छोड़ दीजिए।

  4. इस तरह 3 से 5 मिनट तक इस प्राणायाम का अभ्यास करें।

लाभ –

  1. यह प्राणायाम सर्दी, खाँसी, जुकाम एवं गले के रोगों को दूर करने में अत्यन्त सहायक है।

  2. गले को स्वस्थ एवं आवाज को मधुर बनाने के लिए इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करना चाहिए।

  3. तुतलाकर बोलने वाले बच्चे यदि इस प्राणायाम का निरन्तर अभ्यास करते हैं तो उनका तोतलापन ठीक होता है।

  4. इस प्राणायाम से थाइराइड में विशेष लाभ होता है।


 

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