HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 4 – प्रेरक प्रसंग Explanation Solution

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प्रेरक प्रसंग Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 4 Explanation


भगिनी निवेदिता

स्वामी विवेकानन्दजी की ख्याति अमेरिका और यूरोप के प्रमुख देशों में आग के समान फैल चुकी थी। मिस मारग्रेट नोबल उनके प्रवचनों से अत्यन्त प्रभावित थीं और उनके प्रति अपार श्रद्धा रखती थीं। वे एक विद्यालय का संचालन भी करती थीं। उनकी इच्छा थी कि स्वामीजी किसी दिन उनके विद्यालय में पधारें।

एक दिन स्वामीजी उनके विद्यालय में गए। विद्यालय में बड़े ही श्रद्धाभाव से उनका स्वागत किया गया। उसके बाद स्वामीजी ने प्रत्येक कक्षा का निरीक्षण किया तथा बच्चों से बातचीत की। स्वामीजी ने प्रत्येक कक्षा के निरीक्षण के दौरान पाया कि कक्षाएँ अच्छी प्रकार सजाई गई थीं। बच्चों के बैठने के लिए बढ़िया डेस्क थे, जिनमें पुस्तकें रखने का उचित स्थान बना था। कक्षा में बढ़िया श्यामपट्ट लगा था। सुन्दर चित्रों से दीवारों को सजाया गया था।

कक्षाएँ देखने के बाद स्वामीजी प्रधानाचार्य के कक्ष में पहुँचे। उस कक्ष में भी कुर्सियाँ, मेज़ तथा अलमारी ढंग से सजा-सँवार कर रखी गई थीं। अल्पाहार की व्यवस्था थी। ये सब देखकर स्वामीजी की आँखों में आँसू आ गए। नोबल ने पूछा, “स्वामीजी क्या हुआ? स्वागत में किसी प्रकार की कमी रह गई क्या? आपकी आँखों में आँसू देखकर मैं बहुत चिन्तित हूँ।” इस पर बड़ी भावुकता से स्वामीजी ने कहा, “नोबल, मैं तुम्हारा विद्यालय देखकर अत्यन्त प्रसन्न हूँ। यहाँ की साज-सज्जा बहुत आकर्षक है। विद्यार्थियों के बैठने का प्रबन्ध भी सुन्दर है।

ये सब देखकर मुझे अपने देश की याद आ गई थी। हमारे यहाँ शिक्षक के लिए सुविधाएँ नहीं, कठिनाइयाँ ही कठिनाइयाँ हैं। विद्यालय इतने दूर-दूर हैं कि छात्रों को मीलों चलकर जाना पड़ता है। लड़कियों को तो इतनी दूर पढ़ाने के लिए भेजने की बात कोई सोच भी नहीं सकता। जो विद्यालय हैं, उनमें भवन के नाम पर दो-तीन कमरे हैं। कहीं-कहीं तो शिक्षक पेड़ के नीचे ही पढ़ाते हैं। डेस्क की जगह बालक टाट-पट्टी या बोरी पर बैठते हैं। सब प्रकार की सहायक सामग्री की जगह शिक्षक ही है। शिक्षक भी जहाँ दस पैसे अपेक्षित हैं तो चार-पाँच पैसों में ही गुजारा चला रहा है। मैं अपने देश के उन बच्चों की परिस्थितियों के बारे में सोचकर भावुक हो गया था। मैं सोच रहा था कि क्या कभी मेरे भारत में भी इस प्रकार के सुविधा-सम्पन्न विद्यालय चलेंगे?”

स्वामीजी के देशप्रेम की इस अभिव्यक्ति से कुमारी मारग्रेट नोबल बहुत प्रभावित हुईं। उन्होंने एक दृढ़-संकल्प लिया, ‘स्वामीजी, मैं आपकी शिष्या बनकर आपके साथ चलूँगी। मैं भारत के बच्चों की, वहाँ की जनता की सेवा करना चाहती हूँ। क्या आप मुझे अनुमति देंगे? ‘स्वामीजी ने उन्हें न केवल अपनी शिष्या बनाया, बल्कि उन्हें बहन बनाकर उनका नाम रखा-‘भगिनी निवेदिता’ ।


तीन छन्नी परीक्षण प्राचीन यूनान में सुकरात नामक एक विख्यात दार्शनिक व ज्ञानी व्यक्ति रहा करते थे। एक दिन उनका एक परिचित उनसे मिलने आया और बोला, ‘क्या तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे मित्र के बारे में क्या सुना है?’ सुकरात ने उसे टोकते हुए कहा, ‘एक मिनट रुको। इससे पहले कि तुम मुझे मेरे मित्र के बारे में कुछ बताओ, मैं तीन छन्नी परीक्षण करना चाहता हूँ।’ ‘तीन छन्नी परीक्षण?” व्यक्ति ने कहा। सुकरात ने कहा, ‘जी हाँ, मैं इसे तीन छन्नी परीक्षण इसलिए कहता हूँ, क्योंकि जो भी बात आप मुझसे कहेंगे, उसे तीन छन्नी से गुजारने के बाद ही कहेंगे।’ पहली छन्नी है-‘सत्य’। जो बात आप मुझसे कहने जा रहे हैं, क्या विश्वासपूर्वक कह सकते हैं कि वह पूर्ण सत्य है? व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘जी नहीं, दरअसल वह बात मैंने अभी-अभी सुनी है, औ……. सुकरात बोले, ‘तो तुम्हें इस बारे में ठीक से कुछ नहीं पता है।’ ‘आओ, अब दूसरी छन्नी लगाकर देखते हैं। दूसरी छन्नी है ‘भलाई’। क्या तुम मेरे मित्र के बारे में कोई अच्छी बात जानते हो? ‘जी नहीं, बल्कि मैं तो तो तुम मुझे कोई बुरी बात बताने जा रहे थे, लेकिन तुम्हें यह भी मालूम है कि यह बात सत्य है या नहीं,’ सुकरात बोले। ‘तुम एक और परीक्षण से गुजर सकते हो। तीसरी छन्नी है- ‘उपयोगिता’। क्या वह बात जो तुम मुझे बताने जा रहे हो, मेरे लिए उपयोगी है?’ वह व्यक्ति बोला- ‘शायद नहीं।’ यह सुनकर सुकरात ने कहा, ‘जो बात तुम मुझे बताने जा रहे हो, न तो वह सत्य है और न ही अच्छी व उपयोगी। तो फिर ऐसी बात कहने का क्या फायदा।’


 

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