HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 5 – नीति के दोहे Explanation Solution

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HBSE Class 8 Naitik Siksha Chapter 5 नीति के दोहे Explanation for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 8th Book Solution.

नीति के दोहे Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 5 Explanation


कबिरा खड़ा बजार में, माँगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर।।

भावार्थ : मित्रता एवं शत्रुता जैसे विभिन्न भावों से मुक्त होकर कबीरजी सभी के कल्याण की मंगलकामना करते हैं।

हिन्दू कहे मोहि राम पियारा, तुर्क कहे रहमाना।
आपस में दोऊ लरी-लरी मुए, मरम न कोऊ जाना ।।

भावार्थ : हिन्दू राम के भक्त हैं, तुर्कों को रहमान प्यारा है। इस बात पर दोनों लड़ते हैं। वास्तव में ये धर्म का सच नहीं जान पाए हैं। मज़हब कभी आपस में वैर करना नहीं सिखाता ।

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझया मन।
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहुँ सो पहला दिन ।।

भावार्थ: कहने, सुनने में ही सब दिन निकल गए। परन्तु यह मन अपनी उलझनों को सुलझा नहीं सका। इतने दिन बीतने पर भी मन की दशा पहले दिन जैसी ही है। इसकी चेतना जाग्रत नहीं हुई।

कबीर लहरी समन्द की, मोती बिखरे आई।
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनि-चुनि खाई ।।

भावार्थ: कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहरों ने तट पर मोती बिखेर दिए हैं। बगुला उनका महत्त्व नहीं समझ पा रहा है जबकि हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। इसी प्रकार पारखी व्यक्ति ही जीवन में मूल्यवान वस्तुओं की परख कर सकता है।

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाय।
जब गुण को गाहक नहीं, कौड़ी बदले जाय ।।

भावार्थ : कबीर कहते हैं कि गुणों के कद्रदान मिलने पर उनका मोल लाखों में होता है। गुणों का ग्राहक न मिलने पर वे कौड़ियों के भाव जाते हैं।

कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, के घर के परदेस ।।

भावार्थ : कबीर कहते हैं कि मनुष्य के केश, काल के हाथों में हैं। पता नहीं घर में अथवा परदेश में कहाँ मनुष्य का प्राणान्त हो जाए। अतः उसे घमण्ड नहीं करना चाहिए।

रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनि इठलेंहैं लोग सब, बाँटि न लेंहैं कोय ।।

भावार्थ : रहीमजी कहते हैं कि अपने हृदय की पीड़ा को अपने अन्तर में ही छिपा कर रखना चाहिए। उन्हें सुनकर लोग प्रसन्न ही होते हैं। उन्हें बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।

रहिमन अँसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।

भावार्थ : रहीमजी कहते हैं कि आँखों से बाहर आकर आँसू हृदय का दुख प्रकट कर देते हैं। सत्य है, जिसे घर से बाहर निकाला जाता है, वह घर का भेद दूसरों से कह देता है।

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधै मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन ।।

भावार्थ : वर्षाऋतु का आगमन होने पर कोयल तथा रहीमजी अपने मन से मौन हो गए हैं। इस ऋतु में तो मेंढक ही बोलते हैं। अभिप्राय है कि कुछ अवसरों पर गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय ।।

भावार्थ : रहीमजी कहते हैं कि थोड़े समय के लिए आई हुई विपत्ति भी भला ही करती है। इससे हमें यह ज्ञात हो जाता है कि हमारा हित चाहने वाले कौन हैं।


 

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