HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 6 – दया धर्म का मूल है Explanation Solution

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HBSE Class 8 Naitik Siksha Chapter 6 दया धर्म का मूल है Explanation for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 8th Book Solution.

दया धर्म का मूल है Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 6 Explanation


बहुत समय पहले की बात है। एक घने जंगल में शेर और शेरनी का जोड़ा रहता था। कुछ दिनों बाद शेरनी के दो बच्चे हुए। सुन्दर बच्चों को पाकर वे दोनों बहुत खुश हुए।

शेर ने शेरनी से कहा, ‘जब तक बच्चे बड़े नहीं हो जाते तब तक तुम घर में ही रहो। मैं बाहर जाकर शिकार करूँगा।’

शेर नियमित रूप से शिकार करने जाता और शेरनी के लिए भरपूर भोजन लेकर लौटता। एक दिन शेर को कोई शिकार नहीं मिला। शाम को जब वह खाली हाथ लौट रहा था तो रास्ते में एक सियार का बच्चा दिखाई पड़ा। वह उसी को उठाकर शेरनी के पास ले आया।

घर पहुँच कर शेर ने कहा, ‘आज मुझे इस सियार के बच्चे के अलावा और कुछ नहीं मिला। तुम इसे ही मार कर खा लो। वह अभी छोटा बच्चा है, इसलिए इसे मारना मुझे अच्छा नहीं लगा।’

इस पर शेरनी बोली, ‘बच्चा समझ कर जब तुम इसे मारना नहीं चाहते, तब मैं इसे कैसे मार सकती हूँ? मैं तो इसी की तरह के दो बच्चों की माँ हूँ। आज से यह मेरा तीसरा बेटा होगा। मैं इस पर कोई आँच नहीं आने दूँगी।’

शेरनी सियार के बच्चे की भी देखभाल करने लगी। उसे भी वह अपने बच्चों के साथ-साथ पालने लगी। इस प्रकार तीनों बच्चे साथ-साथ पलकर बड़े हुए।

तीनों बच्चे हमेशा साथ रहते। साथ ही खेलते और साथ ही इधर-उधर भागा-दौड़ी करते। कभी-कभी वे घर से दूर निकल जाते और यदि किसी जानवर पर उनकी नज़र पड़ जाती तो उसका पीछा करने लगते।

एक दिन कहीं से घूमता-घामता एक हाथी उस जंगल में आ गया। शेर के बच्चों ने जैसे ही हाथी को देखा, वे उसका पीछा करने लगे। वे दोनों उस हाथी को मार डालना चाहते थे लेकिन सियार का बच्चा हाथी को देखकर घबरा गया।

उसने चिल्लाकर कहा, ‘यह तो हाथी है! उसके नज़दीक न जाना। यह तुम्हें मार डालेगा।’ इतना कहकर सियार का बच्चा भागने लगा।

शेर के बच्चों ने जब अपने भाई को भागते देखा तो वे भी हिम्मत हार गए और हाथी का पीछा छोड़कर घर भाग आए।

घर पहुँच कर उन्होंने यह घटना अपनी माँ को सुनाई। उन्होंने बताया कि जब वे हाथी का पीछा करने लगे तो उनका भाई घबरा गया और उनका साथ देने की बजाय वहाँ से भाग गया।

सियार के बच्चे ने भी ये बातें सुनीं। उसे बहुत बुरा लगा। उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने जोर-जोर से चिल्लाकर कहा, ‘मैं डरपोक नहीं हूँ। अगर तुम बहादुर हो तो मैं भी तुमसे कम नहीं हूँ। तुमने मुझे समझा क्या है? ज़रा बाहर निकलो और लड़कर देखो।’

शेरनी ने सियार के बच्चे को अलग बुलाकर कहा, ‘तुम्हें अपने भाइयों से ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए।’

शेरनी की बात सुनकर उसका गुस्सा और बढ़ गया। ‘ये क्यों मेरी हँसी उड़ाते हैं, मैं क्या इनसे कम बहादुर हूँ। अभी इनकी सारी हेकड़ी भुला दूँगा। मैं दोनों को जान से मार डालूँगा।’

सियार के बच्चे की बात सुनकर शेरनी मुस्कराने लगी और बोली, ‘तुम्हारे क्या कहने ! तुम सुन्दर हो, बहादुर हो और चतुर भी हो। पर पता है तुम्हारे खानदान में हाथी नहीं मारे जाते ।’

सियार का बच्चा शेरनी की बात का अर्थ न समझा। उसने पूछा, ‘ऐसा कहने से तुम्हारा क्या मतलब?’ शेरनी ने कहा, ‘देखो बेटा, तुम सियार के लड़के हो। मुझे तुम पर दया आ गई थी। इसलिए मैंने तुम्हें अपने बच्चों की तरह पाला। मेरे बच्चों को पता भी नहीं है कि तुम सियार हो। हाँ, अब तुम यहाँ से चुपचाप भाग जाओ और सियारों के बीच जाकर रहो। यदि तुम नहीं गए तो मेरे बच्चे तुम्हें मार कर खा जाएँगे।’

यह सुनते ही डर के मारे सियार के बच्चे के रोंगटे खड़े हो गए। उसने आव देखा न ताव और वह फौरन वहाँ से जान बचाकर भाग गया। (पंचतन्त्र से)


 

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