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HBSE Class 8 Naitik Siksha Chapter 8 रानी दुर्गावती Explanation for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 8th Book Solution.
रानी दुर्गावती Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 8 Explanation
आज जिसे मध्यप्रदेश कहा जाता है, उस राज्य में जबलपुर शहर भी है। इसी जबलपुर के पास गढ़ामण्डला का एक किला है। सोलहवीं सदी में इस किले के पास-पड़ोस में गोंड लोगों का राज्य था। राज्य के इस भूभाग को गोंडवाना कहा जाता था। इसी गोंडवाना राज्य के राजा दलपतशाह की वीर पत्नी रानी दुर्गावती ने अपने असाधारण पराक्रम से सम्राट अकबर की विशाल सेना के छक्के छुड़ा कर भारत की महान नारियों में अपना नाम सदा के लिए अमर कर दिया।
जब भी फुरसत मिलती, दुर्गावती कभी घोड़े की सवारी करती, तो कभी तीर-कमान पर हाथ आजमाती, कभी तलवार या भाला चला कर देखती, तो कभी बन्दूक व तमंचे पर भी अँगुली रख कर देखती थी। एक किस्सा है- एक दिन उसने अपने पिता कीर्तिसिंह के हाथी पर अम्बारी कसवाई और महावत से कहने लगी कि वह खुद हाथी को चलाएगी। महावत कीर्तिसिंह का पुराना नौकर था। उसने रानी बेटी से कहा कि वह उसे भी अपने साथ हाथी पर बैठने दे। किन्तु दुर्गावती ने यह बात नहीं मानी। वह जिद करने लगी। आखिर महावत स्वयं घोड़े पर चढ़ा और दुर्गावती को हाथी पर बिठाया। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि एक बार भी अंकुश का प्रयोग किए बिना ही दुर्गावती हाथी को जहाँ मर्जी हुई, घुमा कर सकुशल वापस ले आई।
दुर्गावती के रूप तथा बुद्धिमानी की, कला तथा हथियार दोनों में निपुण होने की बात गोंडवाना और पूरे बुन्देलखण्ड में फैल गई। बड़े-बड़े राजा उसे अपनी रानी बनाने के सपने देखने लगे। गढामण्डला का तरुण राजा दलपतशाह भी उनमें एक था। उसने तो मन ही मन निश्चय कर लिया था कि विवाह करेगा तो दुर्गावती से ही। यह बात दुर्गावती के कानों तक पहुँच गई थी। उसने भी मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि वह उन्हीं के साथ शादी करेगी।
घर में शादी की तैयारियाँ जारी देखकर दुर्गावती ने दलपतशाह को एक पत्र लिखकर अपना निश्चय बता दिया और कहा कि राजपूत परम्परा के अनुसार युद्ध करके आप मुझे पाने के अधिकारी बनें।
वैसे तो दलपतशाह युद्ध की तैयारी में लग ही गए थे, दुर्गावती का पत्र पाकर उन्होंने और भी उत्साहित होकर तैयारी पूरी कर ली। अन्त में दलपतशाह के रणकौशल तथा युद्धनीति के कारण कीर्तिसिंह की सेना हार गई, दलपतशाह विजयी हुए। दुर्गावती दलपतशाह के साथ गढ़ामण्डला चली गई।
विवाह के कुछ समय पश्चात् दलपतशाह की अचानक किसी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। रानी दुर्गावती पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। किन्तु वह एक महान क्षत्राणी थी, विपत्तियों से हारने वाली नहीं थीं। उन्होंने तय किया कि वे महाराजा दलपतशाह के अधूरे कार्य को पूरा करेंगी तथा अपनी प्रजा को सभी तरह से सुखी करने का प्रयास करेंगी।
दुर्गावती ने पति के देहान्त के बाद गोंडवाना राज्य को सुव्यवस्थित किया, मांडो के राजा बाजबहादुर को बार-बार हराया और पड़ोस के अन्य शासकों से भी लोहा लेती रहीं।
उन्होंने अपने राज्य में दूर-दूर तक लोगों के पीने के लिए पानी के तालाब बनवाए, सरायें बनवाईं। राज्य में अच्छी सड़कें बनाने का काम किया। इन सब बातों का परिणाम यह हुआ कि गढ़ामण्डला की ओर उठी हुई तलवारें बढ़ने लगीं। अकबर पर यह धुन सवार थी कि किसी प्रकार गढ़ामण्डला पर कब्जा कर लिया जाए। रानी दुर्गावती के सुन्दर रूप का वर्णन उसने सुना था। उसके अच्छे राजकाज की कीर्ति भी उसके कानों तक पहुँची थी।
रानी दुर्गावती इससे बड़ी सतर्क हो गई थीं। अकबर से लोहा लेने को जहाँ तक बने, वह टालना चाहती थीं। इधर अकबर दुर्गावती को देखना चाहता था। उसने रानी दुर्गावती को एक उपहार भेजा। इसे नज़राना कहा जाता था। दुर्गावती के दरबारियों ने जब उस नज़राने के पिटारे को खोला, तो उसमें से एक चरखा निकला। दुर्गावती इसका मतलब समझ गई कि बादशाह अकबर इस चरखे के द्वारा यह सूचित करना चाहता है कि औरतों का काम तो बस घर में बैठकर चरखे पर सूत कातना ही है। यही करो, राजकाज से आपका क्या लेना देना। रानी का चेहरा गुस्से से ताँबा बन गया। दरबारियों के हाथ म्यान से तलवार खींचने को एकदम मचले किन्तु रानी दुर्गावती जोश में होश खोने वालों में से नहीं थीं।
उसने सरदारों को शान्त रहने को कहा और अपने मन्त्री से मन्त्रणा कर बादशाह अकबर को जवाब में एक नज़राना भेजने को कहा।
जब यह नज़राना आगरा में अकबर के सामने रखा गया, तो अकबर ने पूछा-इसमें क्या है?
रानी दुर्गावती के सरदारों ने जवाब दिया-बादशाह, इसमें हमारी रानी दुर्गावती ने आपके लिए जवाबी नजराना भेजा है।
अकबर ने पेटी को खुलवाया, तो उसमें से एक बढ़िया धुनक निकला। रुई के लिए पिंजारियों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला खास सोटा भी उसमें था। अब हैरान होने की बारी अकबर की थी। वह समझ गया कि रानी दुर्गावती ने उनकी शरारत का मुँहतोड़ जवाब दिया है कि तुम तो पिंजारे हो, रुई की पिंजाई करते रहो, राजकाज से तुम्हें क्या वास्ता? रानी दुर्गावती की इस धृष्टता के कारण अकबर तो झेंप कर रह गया। वह समझ गया कि रानी बहुत चतुर है।
इधर रानी भी समझ गई थी कि उसके जवाबी नज़राने का अर्थ युद्ध ही होगा। रानी का अनुमान ठीक ही निकला। अकबर ने विशाल सेना देकर आसफखान सरदार को गढ़ामण्डला पर चढ़ाई करने के लिए रवाना किया। आसफखान को हिदायत दी कि किसी महिला या बच्चे को कोई कष्ट न पहुँचाए तथा निहत्थे नागरिकों को भी तंग न करे।
युद्ध प्रारम्भ करने से पहले आसफखान ने रानी दुर्गावती को कहला भेजा कि यदि वह बादशाह की अधीनता स्वीकार कर लेती है, तो उनके अधीन गढ़ामण्डला का पूरा राज्य उन्हें इनाम में दिया जा सकता है और अन्य कई इलाके भी उन्हें उपहार के रूप में दिए जा सकते हैं। इस सन्देश का जो उत्तर दुर्गावती ने आसफखान को भेजा वह बड़ा ही ओजपूर्ण, वीरता व देशभक्ति से भरा था। उसने जवाब दिया- यदि तुम्हारी यही पेशकश थी तो इतनी सारी सेना साथ क्यों लाए हो? तुम अकबर का साथ छोड़कर मेरे राज्य में मेरे अधीन सरदार बन जाओ, तो मैं तुम्हें बहुत बड़ा वजीर बना दूँगी।
आसफखान ने लड़ाई लड़ने के लिए गढ़ा से पश्चिम में भेड़ाघाट की ओर एक मोर्चा लगाया। गढ़ा के दक्षिण पूर्व में बरेला गाँव में जो मोर्चा जमाया गया, उसका संचालन आसफखान ने स्वयं अपने हाथ में लिया। यहीं पर अन्तिम लड़ाई लड़ी गई।
आसफखान रानी का वह रणचण्डी रूप देखकर काँप गया। रानी के दुर्भाग्य से उसकी सेना पीछे से गढामण्डला की नदी और बाकी तीनों ओर से आसफखान की सेना से घिर गई। तभी अचानक बेमौसम ही उस नदी में बाढ़ आ गई। वीरनारायण इस लड़ाई में घायल हो गया। रानी ने उसे अपने विश्वासी सरदारों के संरक्षण में चौरागढ़ पहुँचने का आदेश दिया। उसके बाद दुर्गावती अपने बचे हुए 300 सिपाहियों को लेकर मोर्चे पर डट गई। खूब जमकर लड़ाई हुई। शत्रु की सेना संख्या में चौगुनी थी। अचानक एक तीर सनसन करता आया और रानी की एक आँख में घुस गया। रानी ने उसे दूसरे हाथ से जोर से खींच निकाला तो अवश्य किन्तु उसकी नोक आँख में ही रह गई। असीम वेदना सहते हुए रानी ने अपने घोड़े की बाग दाँतों में ली और दोनों हाथों से तलवार चलाकर मार काट करती निकलीं। आसफखान रानी की वीरता का कायल हो गया। तभी रानी ने देखा कि आसफखान विकट हँसी हँसता हुआ उसकी ओर बढ़कर उसे जीवित ही पकड लेना चाहता है। रानी लपक कर दूर हो गई और अपनी देह की पवित्रता को बनाए रखने के लिए अपनी ही छुरी निकाल कर अपने पेट में घोंप ली। इस प्रकार रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुई। उसने अपने प्राण दे दिए किन्तु अपना सम्मान नहीं बेचा अपना बलिदान कर दिया किन्तु देशाभिमान नहीं छोड़ा।
आज भी बरेला गाँव में दुर्गावती की समाधि बनी हुई है। जिस पर लिखी पंक्तियों को लोग बडे अभिमान से गाते हैं उन पंक्तियों का भावार्थ हैः-
“जब दुर्गावती रण को निकलीं
हाथों में थीं तलवारें दो।
गुस्से से चेहरा ताँबा था,
आँखों से शरारे उड़ते थे।
घोड़े की बागें दाँतों में
हाथों में थीं तलवारें दो।”