Class 8 Hindi Naitik Siksha BSEH Solution for Chapter 9 प्रकृति वर्णन Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 8 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.
Also Read – HBSE Class 8 नैतिक शिक्षा Solution
HBSE Class 8 Naitik Siksha Chapter 9 प्रकृति वर्णन Explanation for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 8th Book Solution.
प्रकृति वर्णन Class 8 नैतिक शिक्षा Chapter 9 Explanation
भारतभूमि प्रकृति की क्रीड़ास्थली है। यहाँ प्रकृति नित नए परिधान में अनूठे श्रृंगार के साथ अपने विभिन्न रूप दिखाती है। जैसे कोई पारखी ही किसी कलाकार की रचना को परखकर उससे आनन्दित हो सकता है तथा उसका वर्णन कर सकता है, उसी प्रकार प्रकृति का आनन्द तो बहुत लोग लेते हैं किन्तु उसका वर्णन कोई चतुरचितेरा ही कर सकता है। अनेक महान् कवियों ने अपनी-अपनी शैली में प्रकृति के विविध रूपों का वर्णन किया है। महाकवि तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में प्रकृति का जीवन्त चित्रण प्रस्तुत किया है। प्रकृति-वर्णन से जुड़ी कुछ चौपाइयाँ नीचे दी जा रही हैं-
1. बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बितान दिए जनु तानी ।।
कदलि ताल बर धुजा पताका। देखि न मोह धीर मन जाका ।।
भावार्थ- पम्पासरोवर की सुन्दरता का वर्णन करते हुए वे कहते हैं कि विशाल वृक्षों में लताएँ उलझी हुई ऐसी मालूम होती हैं मानो नाना प्रकार के तम्बू तान दिए गए हैं। केला और ताड़ सुन्दर ध्वजा-पताका के समान हैं। इन्हें देखकर वही नहीं मोहित होता, जिसका मन धीर है।
2. बिबिध भाँति फूले तरु नाना। जनु बानैत बने बहु बाना।
कहुँ कहुँ सुन्दर बिटप सुहाए। जनु भट बिलग बिलग होइ छाए।।
भावार्थ – अनेक वृक्षों में रंग-रंग के फूल खिले हुए ऐसे लगते हैं मानो अलग-अलग वेश में सिपाही खड़े हैं। कहीं-कहीं जो विरले पेड़ सुन्दर और सुहावने दीख पड़ते हैं वे ऐसे लगते हैं मानो कोई-कोई योद्धा सेना से दूर जा खड़े हों।
3. कूजत पिक मानहुँ गज माते। ढेक महोख ऊँट बिसराते ।।
मोर चकोर कीर बर बाजी। पारावत मराल सब ताजी ।।
भावार्थ – कोयलें कूक रही हैं, पक्षी मानो ऊँट और खच्चर हैं। मानो मतवाले हाथी चिंघाड़ रहे हैं। ढेक और महोख मोर, चकोर, तोते, कबूतर और हंस मानो सब ताजी (अरबी) घोड़े हैं।
4. तीतिर लावक पदचर जूथा। बरनि न जाइ मनोज बरूथा ।।
रथ गिरि सिला दुन्दुभी झरना। चातक बन्दी गुन गन बरना ।।
भावार्थ – तीतर और बटेर पैदल सिपाहियों के झुण्ड हैं। सौन्दर्य के देवता कामदेव की सेना का वर्णन नहीं हो सकता। पर्वतों की शिलाएँ, रथ और जल के झरने नगाड़े हैं। पपीहे भाट हैं जो अपने राजा के गुणों का वर्णन करते हैं।
5. मधुकर मुखर भेरि सहनाई। त्रिबिध बयारि बसीठीं आई ।।
चतुरंगिनी सेन सँग लीन्हें। बिचरत सबहि चुनौती दीन्हें ।।
भावार्थ – भौरों की गुंजार भेरी और शहनाई हैं। शीतल, मन्द और सुगन्धित हवा मानो दूत बनकर आई है। इस प्रकार चतुरंगिणी सेना साथ लिए कामदेव मानो सबको चुनौती देता हुआ विचर रहा है।
6. बिकसे सरसिज नाना रंगा। मधुर मुखर गुंजत बहु भृंगा ।।
बोलत जलकुक्कुट कलहंसा। प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा ।।
भावार्थ- सरोवर में रंग-बिरंगे कमल खिले हुए हैं। बहुत से भौरे मधुर स्वर से गुंजार कर रहे हैं। जल के मुर्गे और राजहंस बोल रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे प्रभु को देखकर उनकी प्रशंसा कर रहे हैं।
7. ताल समीप मुनिन्ह गृह छाए। चहु दिसि कानन बिटप सुहाए ।।
चम्पक बकुल कदम्ब तमाला। पाटल पनस परास रसाला ।।
भावार्थ – उस झील (पम्पासरोवर) के समीप मुनियों ने आश्रम बना रखे हैं। उसके चारों ओर वन में सुन्दर वृक्ष हैं- चम्पा, मौलसिरी, कदम्ब, तमाल, पाटल, कटहल, ढाक और आम आदि।
8. नव पल्लव कुसुमित तरु नाना। चंचरीक पटली कर गाना।।
सीतल मन्द सुगन्ध सुभाऊ। सन्तत बहइ मनोहर बाऊ ।।
भावार्थ- बहुत प्रकार के वृक्ष नए-नए पत्तों और पुष्पों से युक्त हैं। भौरों के समूह गुंजार कर रहे हैं। स्वभाव से ही शीतल, मन्द सुगन्धित एवं मन को हरने वाली हवा सदा बहती रहती है।
प्रकृति जीवनदायिनी है। प्रकृति के सौन्दर्य का आनन्द तो हम सभी लेते हैं परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसकी सुरक्षा का दायित्व भी हमारा ही है। बच्चो, ज़रा सोचो जिन पेड़-पौधों से हम फल-फूल प्राप्त करते हैं, जिनकी शीतल छाया में हम विश्राम करते हैं और जो पेड़-पौधे हमें प्राण वायु प्रदान करते हैं, क्या उनके प्रति हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है? निश्चित रूप से उनकी सुरक्षा करना, नए पेड़-पौधे लगाना और पर्यावरण प्रदूषण कम करने में अपना योगदान देकर ही हम प्राकृतिक सौन्दर्य को बनाए रख सकते हैं।