हम पंछी उन्मुक्त गगन के Class 7 Hindi Chapter 1 Vyakhya (व्याख्या) – वसंत भाग 2 NCERT Solution

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हम पंछी उन्मुक्त गगन के Class 7 Hindi व्याख्या


1.
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक- तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।

शब्दार्थ – पंछी –पक्षी। उन्मुक्त – खुला, बंधन रहित। पिंजरबद्ध – पिंजरे में बंद। गगन – आसमान। पुलकित – प्रसन्नता से भरे। कनक – सोना।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तिया हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग 2 मे संकलित “हम पंछी उन्मुक्त गगन के” नामक कविता से ली गई है। इसके कवि श्री शिवमंगल सिंह हैं। इस कविता में कवि पक्षियों की स्वतंत्रता का वर्णन करता है।

व्याख्या- इन पंक्तियों में कवि कहता है कि पक्षियों को खुले आसमान में आजादी से उड़ना बहुत अच्छा लगता है। पक्षी पिंजरे के अंदर गा भी नहीं सकते और ना ही उड़ सकते हैं। यदि वे उड़ने की कोशिश करेंगे तो उनके प्रसन्नता से भरे पंख सोने की सलाखो से टकराकर टूट जाएगे।


2.
हम बहता जल पीने वाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबौरी
कनक – कटोरी की मैदा से।

शब्दार्थ – कटुक – कड़वी। निबौरी – नीम का फल । भूखे-प्यासे – भूख प्यास से। कनक – कटोरी – सोने की कटोरी।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तिया हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग 2 मे संकलित “हम पंछी उन्मुक्त गगन के” नामक कविता से ली गई है। इसके कवि श्री शिवमंगल सिंह हैं। इस कविता में कवि पक्षियों की स्वतंत्रता का वर्णन करता है।

व्याख्या – इस कविता में कवि पक्षियों की ओर से कहता है कि हम नदियो से बहते पानी पीने वाले हैं। पिंजरे में हम भूखे प्यासे मर जाएंगे | हमे पिंजरे में बंद सोने की कटोरी मे पानी पीने से अच्छा कड़वे नीम की निंबोली खाना लगता है।


3.
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरु की फुनगी पर के झूले।

शब्दार्थ – स्वर्ण – सोना। श्रृंखला – जंजीरें| भूले – भूल गए। तरु – पेड़। फुनगी – वृक्ष का सबसे ऊपरी भाग।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तिया हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग 2 मे संकलित “हम पंछी उन्मुक्त गगन के” नामक कविता से ली गई है। इसके कवि श्री शिवमंगल सिंह हैं। इस कविता में कवि पक्षियों की स्वतंत्रता का वर्णन करता है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि कहता है कि पक्षी सोने की जंजीरों में बंद कर अपनी उड़ान भूल चुके हैं। अब तो वे बस पिंजरे में पड़े पड़े ही पेड़ों की सबसे ऊंची शाखाओं पर झूला झूलने का सपना देखते हैं।


4.
ऐसे थे अरमान कि उड़ते

नीले नभ की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने।

शब्दार्थ- अरमान – इच्छाएँ। नभ – आसमान। तारक – तारे।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तिया हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग 2 मे संकलित “हम पंछी उन्मुक्त गगन के” नामक कविता से ली गई है। इसके कवि श्री शिवमंगल सिंह हैं। इस कविता में कवि पक्षियों की स्वतंत्रता का वर्णन करता है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कभी कहता है की पक्षी तो खुले आसमान में उड़ने की इच्छा रखते हैं। उड़ते हुए भी आसमान की सीमा को छूना चाहते हैं। वे अपनी चोंच से अनार रूपी आसमान के तारे चुगना चाहते हैं।


5.
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।

शब्दार्थ- सीमाहीन – असीमित, जिसकी सीमा निश्चित न हो। क्षितिज – आकाश। होड़ा-होड़ी – जिद्द, प्रयत्न।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तिया हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग 2‌ मे संकलित “हम पंछी उन्मुक्त गगन के” नामक कविता से ली गई है। इसके कवि श्री शिवमंगल सिंह हैं। इस कविता में कवि पक्षियों की स्वतंत्रता का वर्णन करता है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि कहता है कि आसमान में उड़ रहे पक्षियों में आपस में होड़ लग जाती है। वे सभी आसमान की अनंत सीमा को छू लेना चाहते हैं। इस प्रयास में कई बार तो उन्हें सफलता मिल जाती है और कई बार आसमान में उड़ते उड़ते उनकी सांसो की डोर टूट जाती है।


6.
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।

शब्दार्थ-
नीड़ – घोंसला । आश्रय – सहारा । छिन्न-भिन्न करना – तोड़ डालना। आकुल – परेशान । विघ्न – बाधा।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तिया हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग 2 मे संकलित “हम पंछी उन्मुक्त गगन के” नामक कविता से ली गई है। इसके कवि श्री शिवमंगल सिंह हैं। इस कविता में कवि पक्षियों की स्वतंत्रता का वर्णन करता है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि कह रहा है कि चाहे पक्षियों को घोंसला बनाने के लिए टहनी ना दो। यदि चाहो तो उनका आश्रम भी तोड़ डालो। लेकिन भगवान ने उन्हें उड़ने के लिए पंख दिए हैं इसीलिए उनकी परेशान उड़ान में बाधा ना डालो मतलब उन्हें आजादी से उड़ने दो।


 

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