जीवन को दे नया आयाम : प्राणायाम Class 9 नैतिक शिक्षा Chapter 2 Explain HBSE Solution

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जीवन को दे नया आयाम : प्राणायाम Class 9 Naitik Siksha Chapter 2 Explain


योग में इतनी शक्ति है कि वह व्यक्ति को जीवनपर्यन्त स्वस्थ और सेहतमन्द बनाए रख सकता है। अगर हम अपनी दिनचर्या में प्राणायाम को शामिल कर लें तो रोगों का हम पर कोई हमला ही न हो।

वर्तमान में योग एक बहुत प्रचलित शब्द है। योग का सम्बन्ध मनुष्य की चेतना और ब्रह्माण्डीय चेतना के मिलन से है। शरीर के आन्तरिक विकारों को दूर कर मन एवं चित्त को स्थिर करने के लिए विकसित यौगिक प्रक्रिया ही योग कहलाती है। योग अन्तःकरण को शुद्ध कर असीम आनन्द प्रदान करता है। योग के कुल आठ अंग हैं, इसी कारण इसे अष्टांग योग कहा जाता है। इसका तीसरा और चौथा अंग क्रमश: आसन और प्राणायाम होते हैं. जिनसे हम अच्छी तरह परिचित हैं। अगर हम प्राणायाम के लिए 20-25 मिनट और अपनी ज़रूरत के अनुसार कुछ आसनों के लिए 10-15 मिनट समय निकाल लें तो स्वस्थ जीवन जीना हमारा स्वप्न नहीं अपितु यथार्थ बन जाए।

प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है- प्राण और आयाम प्राण अर्थात् जीवन शक्ति और आयाम अर्थात् नियमन। इस प्रकार प्राणायाम का तात्पर्य हुआ जीवन शक्ति का नियमन। निरन्तर अभ्यास के द्वारा सॉस पर नियन्त्रण करके जीवन शक्ति को बढ़ाना ही प्राणायाम है। महर्षि पतंजलि ने कहा है-

श्वासप्रश्वासयोः गतिविच्छेदः प्राणायामः (यो सू. 2/49)

थानी प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है। इड़ा, पिंगला आदि नाडियों का व्यवहार नियमित करना और उनमें नियमित गति उत्पन्न कर प्राण शक्ति को उत्प्रेरित संचारित, नियन्त्रित व आनुपातिक करना प्राणायाम का महान उद्देश्य है। प्राणायाम से सिद्ध हुई इड़ा और पिंगला की नियमित गति जब और भी सूक्ष्म हो जाती है तो हम मूलभूत शक्ति जिसे प्राण कहते हैं, को प्राप्त करते हैं। यह श्वास ली जाने वाली वायु मात्र नहीं है अपितु प्राण शक्ति है। इस विश्व में जो कुछ विद्यमान है वह सब प्राण के स्पन्दन का ही कार्य है। इसलिए प्राण की गति को नियमित कर शरीर शोधन व ज्ञानोदय दोनों सम्भव है ।

ततः क्षीयते प्रकाशावरणम् । ( योग दर्शन 2/52)

अर्थात् ज्ञान को ढकने वाले अज्ञान का नाश होता है। प्राणायाम के अभ्यास से सुषुम्ना नाडी प्रभावित होती है, जिससे नाडी चक्रों में चेतना आती है और अनेक प्रकार की शक्तियाँ विकसित होती हैं। पिछली कक्षाओं में आपको कुछ योगासनों व प्राणायाम की जानकारी दी जा चुकी है, जिन्हें आपने जीवनचर्या का हिस्सा बनाया होगा।

आपको पुनः स्मरण करवाना उचित जान पड़ता है कि शरीर की शुद्धि के लिए जिस प्रकार स्नान की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन की शुद्धि के लिए प्राणायाम की। प्राणायाम से हम स्वस्थ और नीरोग होते हैं, दीर्घायु प्राप्त करते हैं, हमारी स्मरण शक्ति बढ़ती है और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे हमारे अमाशय, लिवर, किडनी, छोटी-बड़ी आँते तथा पाचन संस्थान के सभी अंग प्रभावित होते हैं और कार्यकुशल बनते हैं। इससे नाडियाँ शुद्ध होती हैं, स्नायुमण्डल को शक्ति मिलती है, मन की चंचलता दूर होती है, मन एकाग्र होता है और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने में सहायता मिलती है। मनु का कहना है- जैसे अग्नि से चाके हुए स्वर्ण आदि धातुओं के मल नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार प्राणायाम करने से इन्द्रियों के मल हो जाते हैं।

पंच प्राण

यद्यपि प्राण एक है, मानव शरीर में स्थान और क्रिया भेद के आधार पर इसे पाँच उपभागों में विभाजित किया गया है। इन पाँचों उपविभागों को सामूहिक रूप से पंच प्राण कहा जाता है। ये निम्नलिखित हैं :

  1. प्राण यह कण्ठ से हृदय तक व्याप्त है। यह प्राण शक्ति साँस को नीचे खींचने में सहायक होती है।

  2. अपान यह मूलाधार चक्र के पास स्थित है। यह वायु बड़ी आँत को बल देती है और मल-मूत्र के निष्कासन में सहायक होती है।

  3. समान नाभि से हृदय तक रहने वाली वायु को समान कहते हैं। यह प्राण शक्ति पाचन संस्थान तथा उनसे निकलने वाले रसों को उत्प्रेरित तथा नियन्त्रित करती है।

  4. उदान कण्ठ से मस्तिष्क तक रहने वाली वायु को उदान कहते हैं। इस प्राण शक्ति द्वारा कण्ठ से ऊपर के अंगों, आँख, कान, नाक, मस्तिष्क आदि का नियन्त्रण होता है। इसके अभाव में हमारा मस्तिष्क ठीक से काम नहीं कर सकेगा और बाह्य जगत के प्रति हमारी चेतना नष्ट हो जाएगी।

  5. व्यान: यह वह प्राण शक्ति है, जो सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है। इसका मुख्य स्थान स्वाधिष्ठान चक्र है। यह शरीर की अन्य शक्तियों व प्राण वायु में सहयोग करती है और सारे शरीर की गतिविधियों का नियमन व नियन्त्रण करती है।

हम नाक के बाएँ और दाएँ छिद्रों द्वारा श्वास-प्रश्वास की क्रियाएँ करते हैं। दाहिने नथुने का प्राण प्रवाह सूर्य नाडी द्वारा व बाएँ नथुने का प्राण प्रवाह चन्द्र नाड़ी द्वारा होता है। ये दोनों प्राण प्रवाह मिलकर जो तीसरा प्राण प्रवाह बनता है, उसे सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं।

प्राणायाम में श्वास की तीन क्रियाएं की जाती है

  1. पूरक अर्थात श्वास को अन्दर लेना

  2. रेचक अर्थात् श्वास को बाहर निकालना तथा

  3. कुम्भक अर्थात् श्वास को अन्दर या बाहर रोकना। अन्दर श्वास भरकर रोकना आन्तरिक कुम्भक व श्वास बाहर निकालकर रोकना बाह्य कुम्भक कहलाता है।

इस दौरान लगने वाले तीन बन्धों को भी जानना आवश्यक है

  1. जालन्धर बन्ध ठोड़ी को हृदय से चार अंगुल ऊपर कण्ठकूप में दबाने से लगता है।

  2. उड्डियान बन्ध श्वास को बाहर निकालकर पेट को खींचने से लगता है।

  3. मूल बन्ध गुदा को ऊपर की ओर सिकोड़ने से लगता है।

आवश्यक बातें: प्राणायाम करते समय शरीर के किसी भी हिस्से में तनाव नहीं रहना चाहिए। दोनों हाथ दोनों घुटनों पर ज्ञान मुद्रा की स्थिति में रखने चाहिए। इसे प्रारम्भ करने से पूर्व थोड़ी देर श्वास को स्वाभाविक रूप से लेकर सम व शान्त करें। शरीर को ढीला कर लें व चारों ओर से विचारों को हटाकर मन को एकाग्र कर लें। इसे शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार ही करना चाहिए। अधिक तथा अनियमित रूप से नहीं। प्रातः काल खाली पेट प्राणायाम करना अधिक उपयुक्त व लाभप्रद है। इसे करते वक्त ऋतु का ध्यान रखें, जैसे गर्मियों में भस्त्रिका, सूर्य भेदन का अभ्यास न करें तथा सर्दियों में शीतली व शीतकारी प्राणायामों का अभ्यास न करें।

यदि निम्नलिखित दो प्राणायामों को आपने अभी प्रारम्भ नहीं किया है तो आओ इनके बारे में भी जानकर इन्हें अपने योगाभ्यास का हिस्सा बनाएँ:

1. कपालभाति प्राणायाम : कपाल अर्थात् मस्तिष्क का अग्र भाग और भाति अर्थात् तेज । कपालभाति प्राणायाम लगातार करने से चेहरे का लावण्य बढ़ता है। इसके लिए सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठें। इसमें सिर्फ साँस को बाहर निकालते रहना है। साँस को बाहर निकालते समय पेट को अन्दर की तरफ संकुचित करें। इस प्राणायाम में कोशिश करके साँस अन्दर न लें। केवल रेचक को जोर लगाकर करें। दो साँसों के बीच साँस अपने आप अन्दर चली जाएगी। यह प्राणायाम पहले 15-20 बार करें, फिर शक्ति के अनुसार अभ्यास बढ़ाएँ । जितनी बार भी कपालभाति करें, अन्त में बाह्य कुम्भक करते हुए मूल उड्डियान और जालन्धर बन्ध कुछ क्षण के लिए लगा सकते हैं। बाद में बन्धों को हटाते हुए श्वास को स्वाभाविक स्थिति में लाएँ।

कपालभाति के लाभ :

  • कपालभाति प्राणायाम से रक्त संचरण बढ़ता है व शरीर की बढ़ी चर्बी घटती है।
  • थॉयराइड की समस्या खत्म हो जाती है।
  • सम्पूर्ण पाचन तन्त्र स्वस्थ होता है।
  • बालों तथा त्वचा की कोई समस्या हो तो वह समाप्त हो जाती है।
  • डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल एवं एलर्जी की समस्या समाप्त होती है।
  • शरीर में स्वतः कैल्शियम और हीमोग्लोबिन बनने लगता है।
  • आँख और दाँत की सभी समस्याएँ समाप्त होती हैं और किडनी भी साफ होती है।
  • मूलाधार चक्र जाग्रत होता है।

2. सूर्य भेदन प्राणायाम: पद्मासन में बैठकर दाएँ हाथ की दो अंगुलियों को भ्रूमध्य में रखें व तीसरी अंगुली से बाईं नासिका को बन्द कर लें। फिर दाईं नासिका से जल्दी से गहरी लम्बी श्वास लें। अंगूठे से दाईं नासिका भी बन्द कर लें और आन्तरिक कुम्भक करें। तीनों बन्ध भी लगाएँ। पहले उड्डियान, फिर जालन्धर और मूलबन्ध खोलकर दाईं नासिका से जल्दी से जोर लगाते हुए श्वास को बाहर निकाल दें। इस प्राणायाम की विशेषता यह है कि केवल दाहिने नासारन्ध्र से ही श्वास-प्रश्वास की क्रिया की जाती है। आन्तरिक कुम्भक का अभ्यास बढ़ाएँ । इस प्राणायाम में ध्यान का केन्द्र नाभि चक्र रहेगा।

सूर्य भेदन के लाभ :

  • यह शरीर में ताप पैदा करता है और रक्त का शोधन करता है।
  • रक्त में लाल कणिकाओं को बढ़ाता है।
  • मन को स्वस्थ करता है।
  • पेट और आँतों के रोग दूर होते हैं।
  • नियमित अभ्यास कुष्ठ रोग में लाभदायक है।
  • पिंगला नाड़ी का भेदन कर मस्तिष्क की शक्ति को जगाता है।

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