काक और हंस Class 9 नैतिक शिक्षा Chapter 17 Explain HBSE Solution

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HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 17 काक और हंस / Kak aur Hansh Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.

काक और हंस Class 9 Naitik Siksha Chapter 17 Explain


किसी समुद्रतटवर्ती राज्य में एक वैश्य रहता था। वह दयालु और दानपरायण था। उसके पुत्र अल्पवयस्क थे और वे प्रतिदिन एक काक को अपना जूठा भोजन दिया करते थे। उनके जूठे भोजन को खाकर वह काक हृष्ट-पुष्ट हो गया। वह गर्वित होकर अपने सजातियों को अपमानित करने लगा। एक बार मानसरोवरवासी तीव्र गति वाले कुछ हंस समुद्र तट पर आए। तब काक ने एक हंस के साथ उड़ान भरने की बाजी लगाई। इस पर सारे हंसों ने हँसी उड़ाते हुए उस काक से कहा, “हम मानसरोवरवासी हंस हैं और सर्वत्र उड़ते रहते हैं। तुम काक होकर हमें क्यों चुनौती देते हो?”

हंसों की बात सुनकर काक ने उनकी निन्दा की और अपनी प्रशंसा करते हुए बोला, “मैं एक सौ एक प्रकार की उड़ानें भरना जानता हूँ। उनमें से प्रत्येक उड़ान शतयोजन की होती है। मेरी उड़ानें अद्भुत होती हैं। यथा- ऊँचा उड़ना, नीचा उड़ना, चारों ओर उड़ना तथा तिरछा उड़ना आदि । जब मैं तुम्हें ये सब गतियाँ दिखाऊँगा, तब तुम्हें मेरी शक्ति पर विश्वास होगा। तुम बताओ कि मैं कौन-सी उड़ान भरूँ?” तब हंस ने हँसकर कहा, ” काक! तुम अवश्य ही सौ से अधिक प्रकार की उड़ानें भर सकते हो; किन्तु मैं एक ही प्रकार की उड़ान में दक्ष हूँ। तुम्हें जो उड़ान उचित लगे, उसी से उड़ो। ”

यह सुनकर वहाँ उपस्थित अन्य काक कहने लगे, “यह हंस एक ही उड़ान से सौ प्रकार की उड़ानों को कैसे जीत सकता है?” तब काक और हंस स्पर्धा करते हुए उड़ने लगे। काक अलग-अलग प्रकार की उड़ानों से दर्शकों को चकित करने लगा। हंस अपनी एक ही प्रकार की मृदुल गति से उड़ता रहा । काक की तुलना में उसकी गति अति मन्द थी। यह देखकर अन्य काक हंसों का तिरस्कार करने लगे, “देखो, हंस काक से पिछड़ता जा रहा है।” यह सुनकर हंस ने उत्तरोत्तर वेग बढ़ाते हुए उड़ना आरम्भ किया। काक थकावट महसूस कर रहा था। उसे विश्राम करने के लिए कोई वृक्ष या द्वीप दिखाई नहीं दे रहा था। घबराकर वह सोचने लगा- मैं थककर कहीं समुद्र में ही न गिर जाऊँ । अन्ततः वह हंस के पास गया। जब हंस ने देखा कि काक समुद्र जल में गिरने वाला ही है तो उसे बचा लेने के उद्देश्य से उसने कहा, “बन्धु! तुमने अपनी अनेक प्रकार की उड़ानों का बखान करते समय अपनी इस गुप्त उड़ान का जिक्र नहीं किया। इस समय तुम किस उड़ान से उड़ रहे हो? तुम्हारी चोंच और पंख तो जल का स्पर्श कर रहे हैं।”

तब काक बोला, “भाई हंस! हम तो काक हैं, व्यर्थ काँव-काँव करते रहते हैं। इस समय मेरे प्राण तुम्हारे अधीन हैं। तुम मुझे तट पर ले चलो।” ऐसा कहकर वह जल में गिर पड़ा।

यह देखकर हंस ने कहा, “विविध प्रकार की उड़ानों में दक्ष होकर भी तुम समुद्र में कैसे गिर गए?” काक ने उत्तर दिया, “जूठे अन्न का भक्षण करते-करते मेरा मन विचलित हो गया था और मैं स्वयं को गरुड़ के समान मानने लगा था; सजातीय काकों तथा अन्य पक्षियों का अपमान भी करता था । किन्तु अब मैं तुम्हारी शरण में हूँ। तुम मुझे किसी द्वीप या तट पर पहुँचा दो। यदि मैं जीवित रहा तो भविष्य में किसी का अपमान नहीं करूँगा।” ऐसा कहकर वह अचेत-सा होकर जल में डूबने लगा। हंस को उस पर दया आ गई उसने पंजों से पकड़कर काक को अपनी पीठ पर लाद लिया और उसे लेकर उसी स्थान पर लौटा, जहाँ से वे दोनों प्रतिस्पर्धा करते हुए उड़े थे। वहाँ जाकर उसने काक को धैर्य बँधाया और स्वयं उड़कर दूर देश को चला गया।


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