NCERT Solution of Class 10 Hindi क्षितिज भाग 2 लखनवी अंदाज पाठ का सार for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board, Up Board, RBSE and Some other state Boards. We also Provides पाठ का सार और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर for score Higher in Exams.
Also Read: – Class 10 Hindi क्षितिज भाग 2 NCERT Solution
NCERT Solution of Class 10th Hindi Kshitij bhag 2/ क्षितिज भाग 2 Lakhnavi Andaaz / लखनवी अंदाज Summary / पाठ का सार Solution.
लखनवी अंदाज Class 10 Hindi पाठ का सार ( Summary )
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के लेखक यशपाल हैं। इस रचना के माध्यम से लेखक यह सिद्ध करना चाहता है कि बिना पात्रों, कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती परंतु एक स्वतंत्र रचना का निरूपण किया जा सकता है। इसमें लेखक ने नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है जो वास्तविकता से संबंध नहीं रखता। आज के समाज में दिखावटी संस्कृति को देखा जा सकता है ।
लेखक एकांत में नई कहानी पर सोच-विचार करना चाहता था इसीलिए सेकंड क्लास का किराया ज़्यादा होते हुए भी उसी का टिकट लिया। सेकंड क्लास में कोई नहीं बैठता था गाड़ी छूटने वाली थी इसीलिए वह दौड़कर एक डिब्बे में चढ़ गया। जिस डिब्बे को वह खाली समझ रहा था वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष विराजमान थे। लेखक का उस डिब्बे में आना उन सज्जन को अच्छा नहीं लगा। नवाब के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे थे। नवाब ने लेखक से बातचीत करना पसंद नहीं किया। इसका कारण यह हो सकता है कि नवाब आम खाए जाने वाले खीरों का शौक रखता था। लेखक नवाब के बारे में अनुमान लगाने लगा कि उसे उसका आना क्यों अच्छा नहीं लगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे के लिए पूछा। लेखक ने उन्हें इन्कार कर दिया। नवाब साहब ने दोनों खीरों को धोया, तौलिए से पोंछ कर चाकू से दोनों सिरों को काट कर, खीरे का झाग निकाला। वे खीरे को बड़े सलीके और नजाकत से संवार रहे थे उन्होंने खीरों पर नमक मिर्च लगाया। नवाब साहब का मुँह देखकर ऐसा लग रहा था कि खीरे की फांके देखकर उनके मँह में पानी आ रहा है। लेखक का खीरे की सजावट देखकर खीरा खाने का मन हो रहा था परंतु वह पहले इन्कार कर चुके थे। इसीलिए नवाब के दुबारा पूछने पर आत्मसम्मान के कारण उन्होंने इन्कार कर दिया।
नवाब साहब ने खीरे की फांक उठाई, फांक को होंठों तक ले गए। उसे सूंघा । मुंह में खीरे के स्वाद के कारण पानी भर गया था। परंतु नवाब साहब ने फांक को सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया। नवाब साहब ने सभी फांकों को बारी-बारी सूंघा और खिड़की से बाहर फेंक दिया। बाद में नवाब साहब ने तौलिए से हाथ पोंछे और गर्व से लेखक की ओर देखा। ऐसा लग रहा था जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का ढंग है। लेखक यह सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा ? इतने में नवाब साहब ज़ोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब कहते हैं कि खीरा खाने में तो अच्छा लगता है परंतु अपच होने के कारण मेदे पर भारी करता है। लेखक को लगता है कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है तो वह बिना घटना पात्रों और विचार के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती।