मुगल सम्राट एवं उनका प्रारंभिक प्रतिरोध Class 8 इतिहास Chapter 1 Notes – हमारा भारत III HBSE Solution

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मुगल सम्राट एवं उनका प्रारंभिक प्रतिरोध Class 8 इतिहास Chapter 1 Notes


पाठ के बारे में – 1526 ई. में बाबर ने मुगल राजवंश की नींव रखी 1527 ई. में खानवा के युद्ध में राणा संग्राम सिंह ने बाबर का प्रतिरोध किया। हेमचंद्र विक्रमादित्य ने दिल्ली एवं आगरा से मुगलों को हराकर हिंदू साम्राज्य को पुनः स्थापित किया रानी दुर्गावती और महाराणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता को अस्वीकार किया। इस अध्याय में मुगल वंश के विरुद्ध होने वाले प्रतिरोधों को बताया गया है।

मुगल शासक और उनका कार्यकाल—

मुगल मूल रूप से मध्य एशिया के लोग थे। वे तुर्क मंगोल जाति का मिश्रण माने जाते हैं। मुगल चगताई भाषा बोलते थे, जो तुर्की की ही एक भाषा है।

  1. बाबर ( 1526 -1530 ई. )
  2. हुमायूं ( 1530 – 1540 व 1555-1556 ई. )
  3. अकबर ( 1556 – 1605 ई. )
  4. जहांगीर ( 1605 – 1627 ई. )
  5. शाहजहां ( 1627 – 1658 ई. )
  6. औरंगजेब ( 1658 – 1707 ई. )
  7. उत्तरवर्ती ग्यारह मुगल शासक ( 1707 – 1857 ई. )

1526 में भारत की राजनीतिक स्थिति अच्छी नहीं थी भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा था। इसी का फायदा उठाते हुए मुगल शासक बाबर ने दिल्ली पर कब्जा कर मुगल सल्तनत की नींव रखी।

बाबर ( 1526 – 1530 ई. ) —

बाबर भारत में मुगल वंश के संस्थापक थे।  वह उज्बेकिस्तान का निवासी था। भारत पर पांच आक्रमण के बाद उसने इब्राहिम लोदी को पानीपत के मैदान में हराकर 1526 ई. में अपनी सल्तनत की नींव रखी।  1527 ई. में खानवाँ के युद्ध में राणा सांगा व हसन खाँ मेवाती से युद्ध के दौरान जेहाद का सहारा लेकर युद्ध को जीत लिया।

राणा संग्राम सिंह ( राणा सांगा ) — उस काल के सबसे शक्तिशाली हिन्दू शासक राणा सांगा ने बाबर को युद्ध के लिए ललकारा। राणा के साथ चंदेरी के मेदिनीराय, मेवात के हसन खाँ मेवाती और पानीपत में परास्त हुए अफगान के लोग भी शामिल थे। युद्ध में राणा सांगा ने मुगलों को हरा दिया। युद्ध के दौरान घाव लगने से मूर्छित होने के कारण राणा सांगा को युद्ध क्षेत्र से बाहर जाना पड़ा।

हरियाणा के वीर मोहन सिंह मंढार — मोहन सिंह मंढार हरियाणा में कैथल के रहने वाले थे‌ उनका जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था। उसने अपने गांव को घेरने वाले बाबर के भेजे हुए मुगलों को भारी क्षति पहुंचाई। मोहन सिंह की वीरता की कथाएं सुन चुके मुगलों ने धोखा देने की योजना बनाई। मुगलों ने सेना को तीन हिस्सों में बांट दिया जब ग्रामीण लोग युद्ध में व्यस्त थे तभी पीछे से आकर बाबर के सैनिकों ने पूरे गांव को आग लगा दी। गांव को जलता देखें मोहन सिंह गांव की तरफ वापस आया। मुगलों द्वारा उस क गिरफ्तार कर सजा-ए-मौत दे दी गई।

हसन खाँ मेवाती — 16 मार्च, 1527 ई. को हसन खाँ ने राणा सांगा के साथ मिलकर खानवा के मैदान में बाबर से युद्ध लड़ा। जब युद्ध के दौरान एक तीर से राणा सांगा घायल हो गए तो खुद हसन खाँ मेवाती ने सेनापति का कमान संभाला और बाबर पर हमला किया। इसी दौरान एक तोप का गोला उनके सीने पर आला का और वे वीरगति को प्राप्त हो गए।

हुमायूँ ( 1530 – 1540 व 1555 – 1556 ई. ) —

बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूं राज सिंहासन पर बैठे। उनका स्वभाव चंचल था और वे अफीम के आदि थे। एक योग्य अफगान सेना नायक शेरशाह सूरी ने चौसा और कन्नौज के युद्ध में उसे पराजित करके भारत से बाहर खदेड़ दिया। 15 वर्ष पश्चात 1555 ई. में जब शेरशाह सूरी का साम्राज्य कमजोर हो गया तो उन्होंने वापिस दिल्ली पर हमला करके अपना अधिकार जमा लिया। 1556 ई. में सीढियो से लुढ़ककर उनकी मृत्यु हो गई।

शेरशाह सूरी — हुमायूं के राजा बनने के दस वर्ष के अंदर ही शेरशाह सूरी ने उसे हराकर हिंदुस्तान से बाहर निकाल दिया। 1539 ई. में चौसा तथा 1540 ई. में कन्नौज के युद्ध में हुमायूं को पराजित करके हिंदुस्तान छोड़ने पर विवश कर दिया गया। उसके प्रयासों से ही मुग़ल 15 वर्षों तक ( 1540 से 1555 ई. तक ) हिंदुस्तान के मानचित्र से गायब रहे। कालिंजर का युद्ध में बारूद फटने से 22 मई, 1545 ई. को शेरशाह की मृत्यु हो गई। उन्होंने 1540 ई. से 1545 ई. तक शासन किया। अपने शासनकाल में उसने सड़के और सराएं बनवाई तथा मुद्रा एवं डाक व्यवस्था में कई सुधार किए।

अकबर ( 1556 से ‌1605 ई. ) —

अकबर मुगल सम्राट हुमायूं तथा हमीदा बानो बेगम का बेटा था जिसका जन्म 1542 ई. में राजपूत रियासत अमरकोट में हुआ। 1556 ई. में पिता की मृत्यु के बाद वह सिंहासन पर बैठा। प्रारंभ में ही उनका सामना दिल्ली के शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य से पानीपत के मैदान में 1556 ई. में हुआ। जिसे पानीपत का दूसरा युद्ध कहा जाता है। इसमें अकबर की जीत हुई। इसके अलावा अकबर का वीरांगना दुर्गावती और महाराणा प्रताप से संघर्ष चलता रहा। अकबर ने ‘तीर्थ-यात्रा कर’‘जजिया कर’ समाप्त कर दिया और युद्धबंदियों को दास बनाने की प्रथा पर रोक लगा दी।

अकबर का प्रतिरोध — अकबर का विरोध हेमचंद्र, दुर्गावती और राणा प्रताप ने किया। अकबर के विरुद्ध उनके संघर्ष मई प्रतिरोधों का वर्णन निम्नलिखित है:

हेमचंद्र विक्रमादित्य — पानीपत की दूसरी लड़ाई के प्रमुख नायक हेमचंद्र विक्रमादित्य लगभग तीन शताब्दियों के बाद दिल्ली पर मुस्लिम शासन के बाद एकमात्र अंतिम हिंदू राजा थे। उन्होंने अपने जीवन काल में 22 युद्ध जीते और देश की एकता के लिए निछावर हो गए। अकबर के दरबारी अबुल फजल ने अपनी पुस्तक अकबरीनामा में हेमू की प्रशंसा की है।

उनका जन्म राजस्थान के अलवर के पास माछेली गांव में 1501 ई. में संत पूरण दास के घर हुआ था। कुछ समय पश्चात उनका परिवार रेवाड़ी आकर बस गया। जहां उसने संस्कृत, हिंदी, पारसी तथा अरबी की शिक्षा ली। उन दिनों रेवाड़ी एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था। हेमू ने बारूद बनाने वाले प्रमुख तत्व शौर्य का व्यापार शुरू किया तथा शेरशाह सूरी को बारूद की आपूर्ति कराने लगा।

हेमू प्रधानमंत्री व सेनापति के रूप में – शेरशाह सूरी ने हेमू की कद काठी और योग्यता देखकर अपनी सेना में भर्ती कर लिया 22 मई, 1545 ई. को शेरशाह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र इस्लाम शाह ने गद्दी संभाली। उसने हेमू को अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया और बाद में उसे गुप्तचर विभाग का प्रमुख बना दिया। 1552 ई. में इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद उसका 12 वर्षीय पुत्र राजा बना। लेकिन तीन दिन बाद ही उसकी हत्या कर आदिल शाह ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। आदिल सहायक विलासी, शराबी व निर्बल शासक था। उसने हेमू को सारी जिम्मेदारियां सौंप दी और उसे प्रधानमंत्री तथा सेना का मुख्य सेनापति बना दिया। अधिकतर अफगान सरदारों ने आदिल शाह के खिलाफ विद्रोह कर दिया। लेकिन हेमू ने उन को हरा दिया। बाद में हेमू को आदिलशाह ने बंगाल भेज दिया। हेमू की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर हुमायूं ने दिल्ली व आगरा पर अधिकार कर लिया।

हेमू का राज्याभिषेक व उनकी घोषणाएं — मुगल सेना के अधिकार करने के बाद आदिलशाह ने हेमू को मुगलों से लड़ने के लिए भेज दिया। हेमू ने आगरा के गवर्नर सिकंदर खान उजबेक को हरा दिया और अपनी सेना को लेकर दिल्ली की ओर चल पड़ा। दिल्ली का गवर्नर कर्दीखान बेग, हेमू का नाम सुनकर घबरा गया और अकबर से बड़ी सेना की मांग की। अकबर के वजीर बैरम खान ने तुरंत विशाल सेना भेजी। यह विशाल युद्ध 6 अक्टूबर, 1556 ई. को तुगलकाबाद में हुआ। इस युद्ध में अकबर की सेना हार गई। 7 अक्टूबर, 1556 ई. को सैकड़ों वर्षो के बाद दिल्ली पर हिंदू साम्राज्य की स्थापना हुई। जिसमें हेमू का राज्याभिषेक किया गया। लगातार युद्ध जीतने के कारण उन्हें विक्रमादित्य की उपाधि दी गई।

पानीपत की दूसरी लड़ाई — हेमू से युद्ध हारने के बाद बैरम खान सुख में था। उसने दोबारा युद्ध करने की ठानी। 5 नवंबर, 1556 ई. को हेमू को समाचार मिला कि मुगल सेना पानीपत के मैदान में पहुंच चुकी है। हेमू अपने प्रिया हाथी हवाई पर सवार होकर युद्ध के लिए निकल पड़ा। अकबर को इस युद्ध से आठ मील दूर रखा गया था ताकि अगर युद्ध हार जाते हैं तो काबुल भागा जा सके। हेमू की सेना ने अकबर की सेना को तीन तरफ से घेर दिया और उनको भागने पर मजबूर कर दिया। इसी दौरान एक तीर उनकी आंख में आग लगा जिससे वह बेहोश होकर हाथी से गिर गए। सेना में अपने सेनापति को ना पाकर सेना में भगदड़ मच गई और वह इस युद्ध हार गए। हेमू को बंदी बनाकर अकबर के सामने लाया गया और उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया गया। उसके धड़ को दिल्ली के पुराने किले के बाहर लटका दिया गया और सिर को काबुल के दिल्ली दरवाजे पर लटकाया गया ताकि लोगों के दिलों में डर पैदा हो।

रानी दुर्गावती — रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 ई. को उत्तर प्रदेश के बांदा में स्थित कालिंजर के किले में हुआ। उनके पिता प्रसिद्ध राजपूत चंदेल सम्राट कीर्ति सिंह थे। रानी दुर्गावती इन की इकलौती संतान थी वह सुंदर, सुशील, विनम्र, योग्य व साहसी लड़की थी। दुर्गावती के शोर्य, साहस एवं बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर गोण्डवाना राज्य के राजा संग्राम सिंह ने अपने पुत्र दलपतशाह का विवाह उनके साथ कर दिया। विवाह के एक वर्ष पश्चात दुर्गावती को पुत्र प्राप्ति हुई जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। महाराज की मृत्यु के पश्चात दलपत शाह को शासक बनाया गया लेकिन दुर्भाग्य से उनका भी निधन हो गया। वीर नारायण को राजतिलक करवा कर उसे राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया गया और दुर्गावती स्वयं शासन का संचालन करने लगी।

दुर्गावती का प्रशासन एवं प्रजा हित के कार्य —

उनके नेतृत्व में गोंण्डवाना राज्य ने बहुत तरक्की की। प्रजा समृद्धि वैभव संपन्न हो गई। रानी ने जनता की भलाई के लिए मठ, कुएं, बावरियों एवं धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। अपने दीवान आधार सिंह के नाम पर आधारताल और बचपन की दासी रामचेरी के नाम पर चेरीताल तथा प्रिय हाथी सरमन के नाम पर हाथी ताल बनवा कर उनकी समृद्धि को स्थाई बनाया। उन्होंने नर-बलि, बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, सती-प्रथा व जाति-प्रथा जैसी कुरीतियों से प्रजा को मुक्त किया।

दुर्गावती का प्रतिरोध – मालवा के सुल्तान बाज बहादुर के युद्ध हार जाने के बाद रानी दुर्गावती का राज्य रीवा और मालवा की सीमा तक फैल गया। रीवा अकबर के सूबेदार आसिफ खान के अधीन था। आसिफ खान ने अकबर को दुर्गावती के खिलाफ उकसाया। अकबर ने 1864 ई. में आसिफ खान को गोण्डवाना पर आक्रमण के आदेश दे दिए। अकबर की सेना ज्यादा होने के कारण दुर्गावती युद्ध हार गई। अपने सम्मान की रक्षा के लिए उसने खुद को पूरा घूम लिया। मुगलों ने वहां से भारी मात्रा में सोने चांदी के सिक्के, सोने के बर्तन, रतन, मोती, मूर्तियां, सोने की बनी हुई पशुओं की आकृतियां व अन्य दुर्लभ वस्तुएं लूट ली।

महाराणा प्रताप —

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1840 ई. को कुंभलगढ़ राजस्थान में महाराणा उदय सिंह के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम जैवन्ताबाई सोनगरा था। उनका बचपन का नाम कीका था। उनके पिता की मृत्यु के बाद 28 फरवरी, 1572 ई. को उन्हें 32 वर्ष की आयु में सिंहासन पर बैठाया गया। महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ और गोगुन्दा को केंद्र बनाकर समस्त मेवाड़ राज्य को स्वतंत्र कराने के लिए अपने बड़े-बड़े सरदारों को बुलाकर प्रतिज्ञा ली।

अकबर मेवाड़ पर अधिकार कर के वहां के बहुमूल्य खनिज पदार्थों एवं मेवाड़ से गुजरने वाले व्यापार के रास्ते पर अधिकार करना चाहता था अकबर को यह भी डर था कि अगर महाराणा प्रताप सफल हुआ तो अन्य राजपूत राज्य उनका अनुसरण करने लगेंगे। जिससे बाकी राजपूत राज्यों का भी साहस बढ़ जाएगा।

हल्दीघाटी का युद्ध — अकबर ने राजा मान सिंह व राणा के विद्रोही भाई शक्ति सिंह को मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया। इधर महाराणा प्रताप भी अपनी सेना के साथ हल्दीघाटी पहुंचे। महाराणा प्रताप के साथ रावत किसनदास, भीम सिंह डोडिया, रामदास मेड़तिया, भामाशाह झाला मान और भील सरदार राणा पूंजा शामिल थे। चंदावल में घाटी के मुहाने पर भीडल लोग तीर कमान के साथ मौजूद थे। उनकी सेना में अफगान बादशाह शेरशाह सूरी का वंशज हकीम खां सूर भी था, जिसे प्रताप ने मेवाड़ का सेनापति बनाया गया था। मेवाड़ी सेना के आक्रमण का वेग इतना तीव्र था कि मुगल सैनिकों ने भागकर जान बचाई। महाराणा प्रताप युद्ध में वीरता से लड़ रहे थे तभी उन्होंने हाथी पर सवार मानसिंह पर अपने वाले से वार किया लेकिन संयोग से वह बच गया और उसका हाथियों से लेकर भाग खड़ा हुआ। युद्ध के दौरान प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया।

दुश्मनों ने उनको चारों तरफ से घेर लिया इसके बावजूद भी वह डरे नहीं। उन्होंने युद्ध की दिशा को मैदानों की बजाय पहाड़ों में मोड़ने का प्रयास किया। तब तक झाला मान ने मुगल सेना को रोके रखा। जिसमें उन्होंने अपने जीवन का बलिदान दे दिया। दो मुगल सरदारों ने महाराणा प्रताप का पीछा किया, जिन्हें शक्ति सिंह ने मार डाला। इस युद्ध से मुगल सैनिकों का मनोबल इतना टूट चुका था कि उनमें प्रताप की सेना का पीछा करने का साहस ही नहीं बचा। इस युद्ध में महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक में अपना दम तोड़ दिया।

हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम — हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात प्रताप की प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई। राजस्थान की महिलाएं उनकी वीरता और शौर्य के गीत गाने लगी। महाराणा प्रताप के कठिन जीवन को देखकर वह राजपूत राजा भी शर्मिंदा हुए जिन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर रखी थी।

अकबर ने शाहबाज खाँ, अब्दुर्रहीम, व जगन्नाथ कुशवाहा को प्रताप से लड़ने के लिए भेजा, लेकिन वे हार गए। 1582 में प्रताप ने मुगलों के प्रमुख थाने दिवेर पर हमला कर दिया और सेनानायक सुल्तान खाँ को मौत के घाट उतार दिया। अब चावंड को प्रताप ने अपनी नई राजधानी बनाया और आसपास के राजाओं को संगठित करने लगा। महाराणा प्रताप की आक्रामक नीति के चलते उन्होंने उन किलो को प्राप्त कर लिया, जिन्हें उनके पिता महाराणा उदय सिंह ने अकबर के हाथों गंवा दिया था। 19 जनवरी, 1597 ई. को 57 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।

महाराणा प्रताप का आदर्श व्यक्तित्व — युद्धों में दिवंगत वीरों के परिवारों को प्रताप ने पिता की तरह स्नेह दिया। प्रताप ने कैद की गई मुगल स्त्रियों को सुरक्षित लौटा कर नारी सम्मान व सुरक्षा का संदेश दिया। उन्होंने पर्यावरण सुरक्षा, जल संरक्षण व जलाशय बनाने की तकनीक का विकास किया संस्कारी जीवन जीने की दृष्टि से उन्होंने ‘व्यवहार आदर्श’ जैसा ग्रंथ लिखवाया।

जहांगीर ( 1605 – 1627 ई. ) —

1605 में अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर राज सिंहासन पर बैठा। उसके शाही हरम में अनेक पत्नियां व‌ उप-पत्नियां थी। वह बहुत अहंकारी था तथा हमेशा चापलूसी से घरा रहता था। सम्राट बनने के लिए उसने अबुल फजल की हत्या करवाई। जहांगीर की प्रिय पत्नी नूरजहां थी जिसका प्रभाव उसके शासन पर दिखाई पड़ता था। जहांगीर ने सिखों के पंचम गुरु अर्जुन देव की हत्या करवाई। 1627 ई. में जहांगीर की मृत्यु हो गई।

शाहजहां ( 1627 – 1658 ई. ) —

जहांगीर का बेटा शाहजहां 1627 में सिंहासन पर बैठा। उसने शासक बनने के लिए अपने पिता के समय में ही विद्रोह कर दिया था। शाहजहां में सहनशीलता की कमी थी और वह धार्मिक रूप से इस्लामिक रिवाजों को  दृढ़ता से पालन करता था। उसने बहुत सारे हिंदू मंदिरों को तुड़वा दिया और कभी भी हिंदुओं को ऊंचे पद नहीं दिए। 1657 में शाहजहां बीमार हो गया और उसके चारों बेटों दारा, सूजा, मुराद व औरंगजेब में उत्तराधिकारी बनने के लिए युद्ध छिड़ गया। औरंगजेब ने अपने सारे भाइयों को मार डाला और अपने पिता को कारागार में डाल कर सम्राट बन गया।

औरंगजेब ( 1658 – 1707 ई. ) —

उत्तराधिकार का युद्ध जीतकर और अपने पिता को कैद में डालकर औरंगजेब 1658 ई. में राजा बना। वह कट्टर सुन्नी मुसलमान था उसने सभी हिंदुओं को पदों से हटा दिया। इसके अलावा उसने ‘तीर्थ-यात्रा कर’‘जजिया कर’ को वापस लगा दिया। उसने धार्मिक मेलों पर रोक लगा दी और बनारस व मथुरा के मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई जिसके परिणाम स्वरूप जाटो, सतनामीयों, मराठों, राजपूतों, सीखो व बुंदेलों के विद्रोह हो गए। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर को मृत्युदंड दिया गया था। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य बिखर गया।

यद्यपि कुछ मुगल शासक 1857 ई. तक शासन किया लेकिन उनकी सत्ता केवल दिल्ली तक ही सीमित रह गई।

 

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