Class 6 इतिहास NCERT Solution for chapter 3 रामायण व महाभारत काल notes for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 6 History mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer in hindi are available of हमारा भारत II Book for HBSE.
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HBSE Class 6 इतिहास / History in hindi रामायण व महाभारत काल / Ramayan va Mahabharat kal notes for Haryana Board of chapter 3 in Hamara Bharat 1 Solution.
रामायण व महाभारत काल Class 6 इतिहास Chapter 3 Notes
रामायण और महाभारत दो ऐसे ग्रंथ हैं जिनके प्रति भारतीय जन-मानस में अगाध श्रद्धा का भाव पाया जाता है। ये दोनों ग्रंथ विश्व की उच्च कोटि की रचनाओं में शामिल हैं। इन दोनों ग्रंथों को महाकाव्य कहकर संबोधित किया जाता है। यद्यपि कई पश्चिमी व भारतीय विद्वान इन्हें कपोल कल्पना कहते हैं, लेकिन वर्तमान में बहुत से पुरातात्विक व अन्य वैज्ञानिक शोधों से इनकी ऐतिहासिकता प्रमाणित हुई है।
संक्षिप्त रामायण कथा
रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि ने की थी, इसलिए उन्हें दुनिया का आदिकवि माना जाता है। सूर्यवंशी राजा दशरथ कौशल राज्य पर शासन करते थे। इनकी राजधानी अयोध्या थी। उनकी तीन रानियां थी। कौशल्या, जिसके पुत्र श्रीराम थे, दूसरी सुमित्रा, जिसके पुत्रों के नाम लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे। सबसे छोटी कैकेयी थी, जिसके पुत्र का नाम भरत था। श्रीराम सबसे बड़े और सर्वगुण सम्पन्न होने के कारण जनप्रिय थे। उस काल में राक्षस लोग जंगल में रहने वाले ऋषि-मुनियों को तंग करते थे और उनके यज्ञ-हवनों में बाधा डालते थे। ऋषि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ ले गए। उन्होंने उनकी देख-रेख में शिक्षा ग्रहण की और ऋषि-मुनियों को सुरक्षा प्रदान की। श्रीराम का विवाह राजा जनक की पुत्री सीता से हुआ। राजा दशरथ श्रीराम को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे परन्तु भरत की माता कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे – भरत को राजगद्दी दी जाए तथा श्रीराम को 14 वर्षों के लिए वनवास के लिए भेजा जाए। राजा दशरथ के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल था परन्तु श्रीराम ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और उनके साथ उनकी धर्मपरायण पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण भी चले गए। राजा दशरथ अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम के वियोग को सहन नहीं कर सके और इसी दुःख में वे स्वर्ग सिधार गए।
कैकेयी के पुत्र भरत उन दिनों अपने नाना के घर गए थे। उन्हें बुलाने गए संदेश वाहक हरियाणा के कुरुक्षेत्र से गुजरे थे। अयोध्या लौटने पर जब उन्हें सारी घटना का पता चला तो उन्होंने अपनी माता की काफी आलोचना की और राजा बनने से भी मना कर दिया। वे अपने मंत्रियों सहित श्रीराम से मिलने गए और उनसे राज्य संभालने की प्रार्थना की। परन्तु श्रीराम ने मना किया और भरत ने भी राजगद्दी लेने से मना कर दिया। वापिस जाते समय भरत को श्रीराम ने अपनी पादुकाएं दी और भरत उन पादुकाओं को रखकर श्रीराम के नाम से राज करने लगे । वनवास काल के दौरान लंका नरेश रावण सीता को छल-कपट से उठाकर ले गया। श्रीराम ने सीता की तलाश शुरू की। इसी दौरान श्रीराम की हनुमान व सुग्रीव से भेंट हुई। हनुमान ने सीता को अशोक वाटिका में खोज निकाला। संधि के सभी प्रयास विफल होने पर श्रीराम ने किष्किन्धा के राजा सुग्रीव और उनकी सेना की सहायता से लंका जाने के लिए एक सेतु तैयार किया और रावण का वध करके विभीषण को लंका का राजा घोषित किया। तब वे रावण के ‘पुष्पक’ विमान में सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौट आए और अयोध्या वासियों ने उनका बड़ी धूमधाम से स्वागत किया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जो नियम बनाए थे, वे आज भी आदर्शों के तौर पर माने जाते हैं। उन्होंने बाली को परास्त करके उस के भाई सुग्रीव को और लंका के शासक रावण को परास्त करके उसके भाई विभीषण को राज्य सौंपा था और किसी राज्य को नहीं हड़पा ।
वाल्मीकि रामायण के प्रक्षेप अंश
वाल्मीकि रामायण के मूल रूप में चौबीस हजार श्लोक थे जिन्हें 500 सर्गों व 6 काण्डों में लिखा गया था जबकि अब उसमें पच्चीस हजार श्लोक, 658 सर्ग व 7 काण्ड हो चुके हैं। रामायण रावण वध तक ही लिखी गई थी और उत्तर काण्ड का उसमें कोई उल्लेख नहीं है।
रामायण की ऐतिहासिकता के लिखित प्रमाण
रामायण में वर्णित अनेक घटनाओं का उल्लेख महाभारत, पुराणों, रघुवंश आदि में मिलता हैं। ऋग्वेद में इक्ष्वाकु वंश का उल्लेख मिलता है।
बौद्ध परंपरा में दशरथ जातक, अनामक जातक कथाएं मिलती हैं जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से सम्बन्धित हैं।
जैन धार्मिक साहित्य :
- विमल सूरि द्वारा रचित पद्म चरित्र (प्राकृत)
- रविषेण आचार्य द्वारा रचित पद्म पुराण (संस्कृत)
- स्वयंभू कृत पद्मचरित्र (अपभ्रंश भाषा)
- श्रीराम चरित्र प्रमाण इत्यादि
जैन परंपरा में श्रीराम का मूल नाम पद्म मानते हैं।
भारत की अन्य भाषाओं में भी रामकथा मिलती है।
- हिंदी में 11
- मराठी में 8
- बांग्ला में 25
- तमिल में 12
- तेलुगु में 5
- उड़िया में 6
इनके अतिरिक्त भी अनेक विद्वानों और संतों ने अपनी-अपनी रचनाएं और व्याख्याएं दी हैं।
इण्डोनेशिया की ककबिन रामायण ( विदेशों में रामायण के विभिन्न रूप )
- खोतानी रामायणें
- तिब्बती रामायण
- जावा में सेरतराम
- इण्डोचाइना में रामकेर्ति
बर्मा व थाइलैण्ड में भी रामायण विभिन्न रूपों में मिलती है।
सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण इण्डोनेशिया में माना गया। 1949 ई. में डच सरकार ने इण्डोनेशिया को जब आजादी दी तो उसमें न्यूगिनी द्वीप नहीं दिया तो इण्डोनेशिया के लोगों ने न्यूगिनी को लेकर आंदोलन किए और प्रमाण के लिए वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धा काण्ड 40.30/31 को प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सुग्रीव ने सीता की खोज में पूर्व दिशा में गए वानर दल को संबोधित करते हुए कहा- तुम यत्रशील होकर सात राज्यों से सुशोभित (जावा) स्वर्णदीप, रूप्यदीप में भी ढूंढने प्रयास करना। यवद्वीप को लांघकर आगे जाने पर एक शिशिर नामक पर्वत मिलता है जिस पर देवता व दानव निवास करते हैं। वह पर्वत अपने उच्च शिखर से स्वर्ग लोक को स्पर्श करता है और यह शिशिर पर्वत न्यूगिनी में है। इस प्रमाण को सत्य मानकर डचों ने न्यूगिनी भी इण्डोनेशिया को दे दिया।
श्री लंका की संसद में विभीषण का राजतिलक दिखाया गया है। अशोक वाटिका को एक पर्यटक स्थल बनाया हुआ है।
थाईलैण्ड में राजा को आज भी राम कहा जाता है जबकि वे बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं।
रामायण की ऐतिहासिकता के पुरातात्विक प्रमाण –
भारत में भी रामायण में वर्णित अनेक स्थलों को पहचाना जा चुका है।
- रामायण से सम्बन्धित असंख्य मिट्टी की मूर्तियां उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान इत्यादि स्थानों से मिलती हैं। हरियाणा में भी जीन्द, सिरसा, हिसार, हाट, सुध, यमुनानगर इत्यादि स्थानों से अनेक मूर्तियां मिली हैं जिनमें रामायण की कथाओं को दिखाया गया है।
- श्रीराम से सम्बन्धित अनेक त्योहार जैसे रामनवमी, रावण पर विजय का प्रतीक, विजयदशमी काफी उल्लास से मनाया जाता है। रामलीला सदियों से भारत के हर प्रदेश में दिखाई जाती है।
- नासा, अमरीकी एजेंसी ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत और लंका को जोड़ने वाला पुल मानव निर्मित है जिसे श्रीराम द्वारा निर्मित माना जाता है और उसका समय सात हजार ईसा पूर्व के लगभग है।
महाभारत
महाभारत के रचयिता वेद व्यास हैं। आधुनिक महाभारत से पहले हमें इस महाकाव्य के अन्य रूप भी मिलते हैं। ‘जय ग्रंथ’ में कौरव और पांडवों के युद्ध का मूल कथानक है। इसके मूल में केवल आठ हजार आठ सौ श्लोक थे। जय ग्रंथ में भरत वंश के इतिहास का अंश जोड़ने पर यह ‘भारत ग्रंथ’ बना जिसकी वजह से इसमें श्लोकों की संख्या चौबीस हजार हो गई। भारत ग्रंथ में अनेक नीतिपरक अंश तथा आख्यानों को जोड़ने पर यह ‘महाभारत’ ग्रंथ बना। इसमें एक लाख के लगभग श्लोक हैं। इस प्रकार महाभारत का वर्तमान रूप अपने में अनेक शताब्दियों के विकास को संजोए हुए है।
- पुणे के भण्डारकर ओरिएंटल संस्था में रखा गया महाभारत का संस्करण सबसे ज्यादा प्रमाणिक माना जाता है।
- महाभारत ग्रंथ के बारे में कहा जाता है कि इस ग्रंथ में जो कुछ है वह सभी स्थानों पर है परन्तु जो इसमें नहीं है वह कहीं भी नहीं है।
- इसे हिन्दू धर्म का विश्वकोश भी माना जाता है। इसे पंचम वेद भी कहा गया है।
- इसे धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, काम शास्त्र, नीति शास्त्र और मोक्ष शास्त्र भी माना जाता है।
अध्ययन की दृष्टि से यह अनुपम ग्रंथ है। इसमें श्रीमद्भगवद्गीता, अनु गीता, पाराशर गीता, मोक्ष धर्म आदि महत्वपूर्ण अंश संकलित हैं। इसमें नीति और लोक शिक्षा से सम्बन्धित संजयनीति, विदुरनीति, भीष्मनीति आदि का समावेश है। शांति पर्व में राजधर्म, आपदधर्म और मोक्ष धर्म का भी वर्णन है।
मूल कथानक कौरव और पांडवों के बीच युद्ध का है परन्तु इसके अतिरिक्त अनेक ऐतिहासिक कथाओं का भी उल्लेख मिलता है।
महाभारत का काल
पश्चिमी इतिहासकार इसका समय 900 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व में रखते हैं। भारतीय गुप्त कालीन गणितज्ञ वराहमिहिर ने अपनी गणनाओं के हिसाब से इसका समय 2449 ईसा पूर्व माना है। गुप्त कालीन गणितज्ञ आर्यभट्ट ने इसकी तिथि 18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व मानी है। चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के ‘ऐहोल’ शिलालेख से महाभारत की तिथि 3100 ईसा पूर्व निकलती है। पी.वी. होले ने ग्रह नक्षत्रों की गणना के अनुसार महाभारत की तिथि 13.11.3143 ईसा पूर्व मानी है। एन.एस. राजाराम, के. सदानन्द, सुभाष काक आदि इतिहासकारों ने इसका समय 3067 ईसा पूर्व माना है। उपर्युक्त वर्णन तथा आधुनिक पंचागों में लिखे हुए कलि सम्वत के हिसाब से भी महाभारत की तिथि 3100 ईसा पूर्व के लगभग बनती है।
महाभारत की ऐतिहासिकता
- महाभारत में वर्णित स्थानों की पहचान लगभग हो चुकी है। यह युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था, जो आधुनिक कुरुक्षेत्र ही है क्योंकि इसकी दूरी सतलुज और यमुना के मध्य बताई गई है।
- दिल्ली के पुराने किले में भी महाभारत से सम्बन्धित अवशेष मिले हैं।
- गुजरात में अरब सागर में कृष्ण की द्वारका नगरी भी ढूंढी जा चुकी है।
- बरनावा में लाक्षागृह के अवशेष मिले हैं।
- सनोली की खुदाई से भी महाभारत की पुष्टि में सहायता मिलती है।
- महाभारत के नायकों व अन्य स्थानों की पहचान पौराणिक व अन्य साहित्य से भी मिलती है। इस प्रकार महाभारत के बारे में संदेह नहीं रहता।
- महाकाव्यों में वर्णित सभ्यता और संस्कृति
- महाकाव्यों में वर्णित सभ्यता को किसी काल विशेष में नहीं बांधा जा सकता क्योंकि इनके वर्तमान रूप कई बार बदले गए हैं; फिर भी हम उस काल का अनुमान लगा सकते हैं जब ये घटनाएं घटित हुई थी जो इस प्रकार हैं :
आर्यों का प्रसार : रामायण में आर्यो ने विंध्याचल पर्वत श्रृंखला को पार कर लिया था और महाभारत में तो दक्षिण के राजाओं ने युद्ध में भाग लिया था। महाभारत में भीष्म पर्व में विश्व और भारतवर्ष के भूगोल का वर्णन मिलता है।
राजा की उत्पत्ति : महाभारत के शांतिपर्व में लिखा है कि प्रारंभ में न राज्य था और न राजा, न दण्ड था और न ही दण्ड देने वाला। धर्म से ही एक दूसरे की रक्षा की जाती थी। परन्तु नैतिक पतन होने के बाद समाज में अराजकता की स्थिति पैदा हुई और राजा की आवश्यकता बनी। एक समझौता हुआ जिसमें प्रजा ने राजा को कर देना स्वीकार किया और राजा ने प्रजा की रक्षा का वचन दिया और इस प्रकार एक शक्तिशाली राज्य बनने की कल्पना की गई।
राजा के प्रमुख कर्तव्य
निरंकुश होते हुए भी राजा का प्रमुख कर्तव्य प्रजापालन और प्रजा की रक्षा करना होता था। राजा से अपेक्षा की जाती थी कि वह अपनी प्रजा से ऐसा ही व्यवहार करे जैसा घर में पिता पुत्रों के साथ करता है। शांति पर्व में लिखा है कि राजा दुर्बल पर अत्याचार न करे क्योंकि दुर्बल की हाय राजा को समाप्त कर देती है। धर्म का उल्लंघन करने वाले राजा की कठोर शब्दों में निन्दा की गई है। भीष्म ने रक्षा न करने वाले अत्याचारी राजा के विरुद्ध सक्रिय विद्रोह की भी अनुमति दी है।
राजनीतिक चिंतन : रामायण में आदर्शवाद एवं उच्च नैतिक मापदण्डों की स्थापना का प्रयास है जबकि महाभारत में यथार्थ और जीवन की व्यवहारिकता पर ज्यादा जोर किया। महाभारत में भीष्म ने सामाजिक जीवन के निर्वाह के लिए राजधर्म की भूमिका पर जोर दिया। उनके अनुसार सब लोकों की परमगति राजधर्म है। राजधर्म सब धर्मो से श्रेष्ठ है यदि यह लुप्त हो जाता है तो सभी वर्ण और आश्रमों के धर्म समाप्त हो जाएंगे।
राज्य के सात अंग : राजा के सात अभिन्न अंग माने जाते थे : राजा, अमात्य (मंत्री), जनपद, दुर्ग, कोष, दण्ड (सेना) और मित्र । राज्य सेना पर आश्रित होते थे। इनके बिना राज्य को अराजक माना जाता था। अतः एक राष्ट्र का शक्तिशाली होना बहुत जरूरी माना जाता था क्योंकि इनके बिना जीवन संपत्ति, परिवार, धर्म सुरक्षित नहीं रख सकते।
जनमत की शक्ति : राजा का पद वंशानुगत होता था। परन्तु उत्तराधिकार के मामले में कई बार जनमत की शक्ति का भी उल्लेख मिलता है। जैसे राजा प्रतीक ने अपने पुत्र देवापि को राजा बनाना चाहा, तो जनता ने विरोध करके उसे रुकवा दिया। रामायण तथा महाभारत से पता चलता है कि राज्याभिषेक के समय समाज के सभी वर्गों को आमंत्रित किया जाता था।
नारी की स्थिति : महाकाव्य काल में स्त्रियों के मान सम्मान में कुछ कमी आ गई थी परन्तु फिर भी समाज में उनको सम्मान प्राप्त था। महाभारत के आदि पर्व में पत्नी को मनुष्य का आधा अंग माना गया है। वह सखी है, वह ही धर्म-अर्थ-काम की मूल है। महाभारत के अनेक स्त्री पात्रों का सम्भाषण उस युग की नारी की विद्वता और तेजस्विता का बोध कराता है। विवाह को भी एक पवित्र बंधन माना गया है। सामान्यतः नारी के लिए एक पति का ही विधान था। पतिव्रता स्त्रियों की बड़ी प्रशंसा की गई है।
सामाजिक जीवन :
रामायण की भांति महाभारत में भी चारों वर्णों की उत्पत्ति ब्रह्म के विभिन्न अंगों से मानी गई है। ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के अनेक प्रमाण मिलते हैं परन्तु अब क्षत्रियों की प्रधानता हो गई है। महाभारत में स्वाध्याय तप से रहित और वर्ण विरुद्ध कार्य करने वाले ब्राह्मण को शूद्र से अधिक निन्दनीय माना गया है। वर्ण व्यवस्था का आधार जन्म के बदले कर्म बताया गया है।
अनुशासन पर्व 143/46, 47 में उमा-महेश्वर संवाद में कहा है कि जो सच्चरित्रा, दयालु, अतिथि परायण, निरहंकार गृहस्थ है, वह नीच जाति में जन्म लेने पर भी द्विजत्व लाभ प्राप्त करता है और जो ब्राह्मण होकर भी चरित्रहीन, सर्वभक्षी और निन्दितकर्म वाला होता है, वह शूद्रत्व प्राप्त करता है। इन विचारों से शूद्रों के प्रति मानवीय एवं उदारता के रुख का पता चलता है। विदुर, काव्य और मतंग जैसे जन्मजात शूद्रों को अच्छे आचरण के कारण सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था। उस काल की विदेशी जातियां, यवन, किरात, गन्धर, शबर, शक, तुषर, पल्हव, पुलिन्द, कम्बोज व अन्य जातियों को वर्ण व्यवस्था में शामिल किया गया।
आर्थिक जीवन :
कृषि, शिल्प और वाणिज्य के अतिरिक्त धन कमाने का श्रेष्ठ साधन और कोई नहीं होता। महाभारत के सभा पर्व के अनुसार किसानों को संतुष्ट रखना, कृषि के लिए जलाशय खुदवाना, दरिद्र किसानों को बीज आदि का दान करना और राजकोष से कृषकों को अनुग्रह देना राजा के प्रमुख कर्तव्य थे।
पशुपालन मुख्य व्यवसाय था और महाभारत में पशुओं की चिकित्सा विद्या का उल्लेख मिलता है।
उस काल में शिल्प भी अधिक उन्नति पर था। शिल्पकार अलग-अलग श्रेणियों में संगठित थे और उनका अपना प्रधान होता था जैसे चांदी, सोना, लोहा, हाथी दांत, मणि मुक्ता, वास्तुशिल्प आदि ।
विदेशी व्यापारियों की आय-व्यय का ध्यान रखकर राज्य द्वारा कर लगाए जाते थे। जल और स्थल दोनों मार्गों से व्यापार होता था और व्यापारी अधिक लाभ कमाते थे।
इस काल में व्यापार बढ़ने से अनेक नए नगरों की स्थापना हो गई थी जैसे हस्तिनापुर, मथुरा, इन्द्रप्रस्थ आदि। ये सभी नगर सड़कों और नहरों से जुड़े हुए थे और व्यापारिक केन्द्र बनते जा रहे थे।
धार्मिक जीवन :
महाकाव्यों का उद्देश्य अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित करना है। जहां धर्म है वहीं विजय है। धर्म की स्थापना ही महाकाव्यों का एक मूल वाक्य कहा जा सकता है।
महाभारत में अनेक सम्प्रदायों का उल्लेख मिलता है। इस काल में भागवत एक महत्वपूर्ण सम्प्रदाय था जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु एवं नारायण का अवतार माना गया हैं। दूसरा सम्प्रदाय पाशुपत था जो शिव को सर्वोच्च देवता मानता था। सौर सम्प्रदाय में सूर्य देवता की भक्ति का उल्लेख मिलता है। शाक्त मत के अनुसार देवी की उपासना की जाती थी। ब्रह्मा, विष्णु, महेश (त्रिदेव) के विचारों का भी विकास मिलता है। महाभारत में अनेक ऐसे देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है।
यज्ञ कर्मकाण्डों की प्रधानता इस काल में बढ़ रही थी परन्तु पशु हिंसा के स्थान पर तिल, जौ आदि पर जोर दिया गया। कई स्थलों पर अहिंसा को परम धर्म बताया गया है।
इस काल में अंधविश्वास भी काफी बढ़ गए थे और लोग शत्रुओं को नष्ट करने और बीमारियों को दूर करने के लिए जादू टोने का आश्रय लेने लग गए थे। इस काल में सर्प पूजा भी प्रचलन में आ गई थी।
माइंड मैप – आओ तुलना से सीखे
ग्रंथ | रामायण | महाभारत |
रचयिता | महर्षि वाल्मीकि | महर्षि वेदव्यास |
भाषा | संस्कृत | संस्कृत |
श्लोक संख्या | चौबीस हजार | लगभग एक लाख |
भाग | छ: सर्ग | अठारह पर्व |
प्रमुख विषय | नैतिकता, दर्शन, प्रशासन, राजनीति, मनोविज्ञान, भूगोल आदि। | नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, मोक्ष शास्त्र |