राष्ट्रीय भक्ति आंदोलन Class 8 इतिहास Chapter 3 Important Question Answer – हमारा भारत III HBSE Solution

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HBSE Class 8 इतिहास / History in hindi राष्ट्रीय भक्ति आंदोलन / Rastariya Bhakti Andolan Important Question Answer for Haryana Board of chapter 3 in Hamara Bharat III Solution.

राष्ट्रीय भक्ति आंदोलन Class 8 इतिहास Chapter 3 Important Question Answer


प्रश्न 1. भक्ति आंदोलन किस प्रकार राष्ट्रव्यापी था?

उत्तर – मध्यकाल में समाज में व्याप्त दुर्बलताओं को दूर करने के लिए भक्ति आंदोलन चला। यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी था। 14वीं से 16वीं शताब्दी तक तो यह आंदोलन अपने चरम पर था। इस आंदोलन का सूत्रपात दक्षिण भारत में हुआ। वहाँ से यह संपूर्ण भारत में फैल गया। अनेक संतों ने समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए भक्ति मार्ग का प्रचार-प्रसार किया। इन महापुरुषों में रामानुजाचार्य, नामदेव, जयदेव, चैतन्य महाप्रभु, रामानंद, संत कबीर, मीराबाई व गुरु नानक देव जैसे महापुरुष थे। बहुत सारे संतो के चलते यह भक्ति आंदोलन राष्ट्रव्यापी बन गया।


प्रश्न 2. कबीर तथा गुरु रविदास के जीवन से किस प्रकार श्रम के महत्व का संदेश मिलता है।

उत्तर – संत कबीर व रविदास ने सादगीपूर्ण भक्ति का प्रचार करते हुए भी अपने-अपने व्यवसाय को नहीं छोड़ा तथा श्रम के महत्व का संदेश दिया। कबीर ने जीवनभर कपड़ा बुना तथा रविदास ने जीवनभर अपना पुश्तैनी कार्य किया।


प्रश्न 3. सगुण तथा निर्गुण संत परम्परा में मुख्य अंतर क्या था? 

उत्तर –  निर्गुण भक्ति धारा के संत ईश्वर को निराकार मानते थे और मूर्ति पूजा के विरोधी थे। जबकि सगुण भक्ति धारा के संत ईश्वर को साकार मानते थे तथा मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे।


प्रश्न 4. भक्तिकाल में संत कबीर के जीवन का वर्णन कीजिए।

उत्तर –  भक्तिकाल के संतों में सामाजिक बुराइयों पर गहरी चोट करने वाले व सरल व शुद्ध भक्ति के महान प्रचारक संत कबीर थे। कहा जाता है कि नीरु और नीमा नामक जुलाहा दम्पत्ति ने उनका पालन-पोषण किया था। कबीरपंथी परंपरा के अनुसार उनका जन्म 1455 ई. में माघ शुक्ल पूर्णिमा को उत्तर प्रदेश की काशी नामक नगरी में हुआ था। वह बचपन से ही धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे वह रामानंद के शिष्य थे। उन्होंने उत्तरी भारत में जनसाधारण की भाषा में अपने प्रवचन दिए। उनकी रचनाओं को ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है। उन्होंने ‘एकेश्वरवाद’ पर बल दिया है। उनके अनुसार ईश्वर सर्वव्यापक व निर्गुण है। उन्होंने जाति प्रथा छुआछूत व धार्मिक आडंबरों के विरुद्ध आवाज उठाई। उनकी भक्ति सरलता व शुद्धता पर बल देती है। कबीर जी भक्ति में सच्चे गुरु के महत्व पर बल देते हैं। उनके अनुसार सच्चा गुरु ही आत्मा का परमात्मा से मिलन का रास्ता दिखा सकता है। वह आडंबरों के कटु आलोचक थे। उन्होंने तिलक लगाना, व्रत रखना, तीर्थ यात्रा करना आदि धार्मिक आडंबरों की जमकर निंदा की। उन्होंने मूर्ति पूजा का भी विरोध किया।


प्रश्न 5.  नयनार कौन थे?

उत्तर – दक्षिण भारत के शैव संत व अनुयायी जो शिव के पुजारी थे, नयनार कहलाते थे। इनकी संख्या 63 थी। संत अप्पार, संत सबन्दर व सुन्दर मूर्ति इनमें प्रमुख थे। ये शिव की भक्ति का प्रचार घूम-घूम कर करते थे। कालांतर में यह सम्प्रदाय अनेक भागों में विभक्त हो गया। कपालिक, वीरशैव, इनमें प्रमुख थे।


प्रश्न 6. अलवार कौन थे?

उत्तर – अलवार दक्षिण भारत के वैष्णव संत थे। इनकी संख्या 12 थी। तिरुमंगाई, पैरिया अलवार और नाम्मालवार प्रसिद्ध आलवार संत थे। ये विष्णु भक्ति का प्रचार घूम-घूम कर करते थे। कालान्तर में उत्तर भारत यह सम्प्रदाय भिन्न रूप से प्रसिद्ध हुआ। उत्तर भारत में विष्णु के दो रूपों का विभिन्न संतों ने प्रचार किया। कुछ ने रामभक्ति तथा कुछ संतों ने कृष्ण भक्ति का प्रचार किया।


प्रश्न 7.  भक्ति काल में संतों की प्रमुख शिक्षाएं क्या-क्या थी? वर्णन कीजिए।

उत्तर – मुक्ति पाने का एक सरल व सुगम मार्ग भक्ति था। भक्ति आंदोलन के विभिन्न संतों ने समाज में आई बुराइयों का विरोध किया।  भक्त संतों की प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित थी :

  1. सर्व-व्यापक ईश्वर : भक्त संतों का ईश्वर सर्व-शक्तिमान व सर्व व्यापक था। वह सृष्टि के कण-कण में निवास करता था। संतों के अनुसार मनुष्य को अपना सब कुछ अपने इष्ट को अर्पित कर देना चाहिए।
  2. प्रभु भक्ति : भक्त संतों ने प्रभु की भक्ति पर बल दिया। उनका मानना था कि सच्चे मन से प्रभु भक्ति करने पर ईश्वर प्रसन्न होता है। ईश्वर भक्ति ही मनुष्य को मुक्ति दिला सकती है।
  3. गुरु को महत्व : सभी भक्त संतों ने मुक्ति पाने के लिए गुरु के महत्व पर बल दिया है। भक्ति में गुरु का स्थान सबसे ऊँचा व पवित्र होता है। गुरु ही शिष्य को मुक्ति का सही मार्ग दिखाता है। कबीर ने गुरु को साक्षात् ब्रह्म का ही रूप माना है।
  4. भेदभाव का विरोध : मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के संत सच्चे समाज सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों की कटु आलोचना की। सभी संतों ने जाति प्रथा का विरोध किया। मुक्ति का अवसर बिना सामाजिक भेदभाव के सभी को प्रदान करने पर बल दिया।
  5. आडंबरों का विरोध : भक्तिकाल के कई संतों ने मूर्ति-पूजा का विरोध किया। इनमें संत कबीर, नामदेव व गुरु नानक देव प्रमुख थे। वे मूर्ति-पूजा को आडंबर मानते थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने तंत्र-मंत्र, जादू-टोनों व उपवास रखने व बलि देने का भी विरोध किया।
  6. सरल जीवन : उन्होंने सच्चे मन से मात्र प्रभु भक्ति पर बल दिया तथा सादा जीवन व्यतीत करने पर बल दिया। गुरु नानक देव संसार का त्याग करने के विरोधी थे।
  7. श्रम को महत्व : संत कबीर व रविदास ने सादगीपूर्ण भक्ति का प्रचार करते हुए भी अपने-अपने व्यवसाय को नहीं छोड़ा तथा श्रम के महत्व का संदेश दिया। कबीर ने जीवनभर कपड़ा बुना तथा रविदास ने जीवनभर अपना पुश्तैनी कार्य किया। करतार में रहते हुए गुरु नानक देव भी कृषि कार्य करते थे।
  8. समानता : संतों ने समानता पर बल दिया। संत हिंदू-मुस्लिम एकता के तो समर्थक थे ही, साथ ही वे सामाजिक समानता पर भी बल देते थे।

प्रश्न 8. भक्ति आंदोलन का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर – भक्ति आंदोलन बहुआयामी था। समाज के प्रत्येक वर्ग पर इसका प्रभाव पड़ा। इसीलिए इसे सामाजिक सुधार आंदोलन भी कहा जाता है।

  1. कुरीतियों पर प्रहार : भक्ति आंदोलन से यहाँ के सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक क्षेत्रों में इसका प्रभाव दिखाई पड़ा। इस आंदोलन में धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार करके धर्म को नई दिशा प्रदान की। आंदोलन ने भक्ति द्वारा मुक्ति का मार्ग सभी सामाजिक वर्गों के लिए उपलब्ध करा कर सामाजिक समरसता को बढ़ाया।
  2. धर्म को नई दिशा : भक्ति आंदोलन में धर्म को अध्यात्म से पुन: जोड़कर नई दिशा प्रदान की। संतों ने धार्मिक आडम्बरों की आलोचना कर धर्म के रूप से पुनः अवगत कराया। संतों ने सादगी पूर्ण जीवन जीने पर बल दिया।
  3. सभी के लिए मुक्ति का मार्ग खोलना : संतों ने जाति प्रथा का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज के सभी वर्गों के लोग ईश्वर भक्ति से ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। ईश्वर सबके लिए विद्यमान है जो उसकी सच्ची लग्न से भक्ति करेगा वही उसे प्राप्त कर लेगा। जात-पात ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं है।

 

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