रुबाइयां/ गजल Class 12 Hindi सप्रसंग व्याख्या / Vyakhya – आरोह भाग 2 NCERT Solution

NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 रुबाइयां/ गजल सप्रसंग व्याख्या  for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board,  Up Board, RBSE and Some other state Boards. We Provides all Classes पाठ का सार, अभ्यास के प्रश्न उत्तर और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर , MCQ for score Higher in Exams.

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NCERT Solution of Class 12th Hindi Aroh Bhag 2 /  आरोह भाग 2 रुबाइयां/ गजल / Rubaiyan aur Gazal Kavita ( कविता ) Vyakhya / सप्रसंग व्याख्या Solution.

रुबाइयां/ गजल Class 12 Hindi Chapter 8 सप्रसंग व्याख्या


1. आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।

शब्दार्थ – चांद का टुकड़ा – प्यारा बच्चा। लोका देती है – उछाल देती है। गोद भरी – गोद में भरकर।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयां’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मां के आंचल में खिलखिलाते बच्चे तथा मां के वात्सल्य प्रेम का अनूठा चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि मां अपने नन्हे कोमल बच्चे को अपने हृदय से लगाकर अपने आंगन में लिए खड़ी है। नन्हा सा बच्चा मां की नजरों में चांद का टुकड़ा है। जिसे वह अपनी गोद में खिलाती है, झुलाती है, और कुछ कुछ देर बाद हवा में उछाल देती है। जिससे बच्चा प्रसन्नता से भर कर किलकारियां मारता है। खिलखिलाते बच्चे की हंसी वातावरण में गूंज उठती है।

काव्य-सौंदर्य –

  • मां का बच्चे के प्रति वात्सल्य प्रेम है।
  • भाषा सरल है।
  • प्रसाद गुण का प्रयोग हैं।

2. नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुंह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।

शब्दार्थ – छलके-छलके – हिलते-हिलते। निर्मल – साफ। गेसुओं में – बालों में। घुटनियों में – घुटनों में। पिन्हाती – पहनाती।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयां’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मां के आंचल में खिलखिलाते बच्चे तथा मां के वात्सल्य प्रेम का अनूठा चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि मां बच्चे को साफ स्वच्छ पानी से नहलाती है, उसके उलझे बालों में कंघी करती है और उसे अपने घुटनों पर थामकर कपड़े पहनाती है। बच्चे के मन में मां के प्रति लाड़ उमड़ आता है। वह एकटक मां के चेहरे की ओर निहारता है। मां उसे तैयार करती रहती है और उसकी और अपनी नजरें जमाए रहती है। बच्चे को नहलाना, झुलाना, तैयार करना, कंघी करना और बच्चे के द्वारा मां के चेहरे की ओर एकटक देखना अति सुंदर और वात्सल्य रस से ओतप्रोत हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • भावपूर्ण शैली का प्रयोग है।
  • भीम योजना आकर्षित है।
  • अभिधा शब्द शक्ति है।

3. दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पें इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

शब्दार्थ – पुते – साफ-सुथरे। घरौंदे में – मिट्टी के घर में। इक – एक।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयां’ से अवतरित है।

व्याख्या – कवि कहता है कि दिवाली के अवसर पर सब घर साफ-सुथरे, सजे-धजे और अत्यंत सुंदर लगते हैं। घर के आस-पास लगी साज सजावट से चेहरे पर हल्की सी चमक आ जाती है। चीन के जगमगाते खिलौने लाए जाते हैं। इन खिलौनों को देखकर नन्हा बच्चा प्रसन्न हो उठता है। मां साय काल के समय नन्हे बच्चे के द्वारा बनाए गए मिट्टी के घर में दिए चलाती है। बच्चे का घर भी दीपक की तरह जगमगाता है।

काव्य-सौंदर्य –

  • मिश्रित भाषा का प्रयोग है।
  • प्रसाद गुण का प्रयोग है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।

4. आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है
बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है

शब्दार्थ – ठुनक – घूमना फिरना। जिदयाया – ज़िद लगाना।  हुई – है ही। दर्पण – वह शीशा जिसमें चेहरा दिखता हो। आईने में – शीशे में।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयां’ से अवतरित है।

व्याख्या – कवि का अभिप्राय है कि जब नन्हा बच्चा बड़ा हो जाता है तब वह आंगन में बड़ी उछल कूद के साथ इधर-उधर घूमता है। आंगन में घूमते हुए वह चंद्रमा की ओर देखता है तो उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। इसी कारण उसका मन चंद्रमा को लेने के लिए ललचा जाता है। बच्चा चंद्रमा रूपी खिलौने को पाना चाहता है। जब मां बच्चे की ललचाए आंखों की ओर देखती है तो बच्चा चंद्रमा को पाने के लिए जिद करने लगता है। उसी वक्त माँ चंद्रमा को दर्पण में उतार देती है जिससे बच्चा खुश हो जाता है। मां बच्चे को शीशे में चंद्रमा दिखाकर बहलती है।

काव्य-सौंदर्य –

  • तुकांत छंद है।
  • प्रसाद गुण है।
  • बच्चे की स्वाभाविक प्रवृत्ति की ओर अभिव्यंजना हुई है।

5. रक्षा-बंधन की सुबह रस की पुतीली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी।

शब्दार्थ – लच्छे – राखी। गगन – आकाश। घटा – बादल। रस की पुतीली – मीठा बंधन।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयां’ से अवतरित है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि रक्षाबंधन का पावन पर्व सावन के महीने में आता है। यह त्यौहार भाई और बहन के रिश्ते में एक मीठा बंधन है। सावन के महीने में वातावरण आनंद की अनुभूति देता है। राखी के लच्छे बिजली की तरह चमक रहे हैं। रक्षाबंधन के अवसर पर बहन भाई को राखी बांधती है। आसमान में हल्की-हल्की काली घटाएं छाई है। वर्षा आने लगती है। यह पर्व भाइयों और बहनों के लिए होता है। राखियां बहन ने अपने भाइयों की कलाइयों में लंबी उम्र की दुआएं हेतु बांधती है।

काव्य-सौंदर्य –

  • रक्षाबंधन में भाई बहन के प्रेम का वर्णन है।
  • प्रसाद गुण है।
  • रुबाई छंद का प्रयोग है।

कविता 10 गज़ल (फिराक गोरखपुरी ) सप्रसंग व्याख्या


1. नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोलें हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोलें हैं।

शब्दार्थ – नौरस – वसंत ऋतु। गुंचे – फूल की कलियां। नाजुक – कोमल। गिरहें – बंधन। गुलशन – बगीचा।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है। इसमें कवि ने वसंत ऋतु और उसके आसपास के वातावरण का मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि का भाव है कि वसंत ऋतु आने पर फूल की कलियों में फूल आना शुरू हो जाते हैं और वह धीरे-धीरे अपनी खुशबू को सारे बगीचे में फैला देते हैं। बाग बगीचा अत्यंत सुंदर लगने लगता है।

काव्य-सौंदर्य –

  • वसंत ऋतु के आगमन पर बगीचे की शोभा की अभिव्यंजना हुई है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।

2. तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा-जर्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो ! शब में सन्नाटे कुछ बोलें हैं।

शब्दार्थ – जर्रा जर्रा – कण कण। शब – रात।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – 

कवि लोगों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि है प्यारों! तुम सब सुनो। रात्रि के समय जो शांति होती है उसमें जो रहस्य है वह हमसे कहता है कि कुछ परोपकार एवं निस्वार्थ होकर सेवा करो। तारे अपनी आंखें चिपकाते हैं जब रात हो जाती है तो संसार का कण-कण शांत होकर सो जाता है। रात्रि के गहन अंधकार में चारों ओर सूनापन छ जाता है। वह हमें कुछ ना कुछ अवश्य बोलता है।

काव्य-सौंदर्य –

  • गजल का प्रयोग है।
  • प्रसाद गुण हैं।

3. हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो लें हैं।

शब्दार्थ – इक – एक। लेवे हैं – लेती है।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – इस पंक्ति के माध्यम से शायर कहना चाहता है कि इस दुनिया में आज अकर्मण्य लोग केवल किस्मत के सहारे रहकर जीवन यापन करते हैं। वे अपने कर्महीनता को दोष ना देकर किस्मत को दोष देते रहते हैं। ऐसे लोग कर्म निष्ठा एवं परिश्रम से कार्य करने की अपेक्षा केवल भाग्य पर निर्भर रहते हैं। कोई कर्म नहीं करते सब कुछ किस्मत पर सौंप देते हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने किस्मत के सहारे बैठे व्यक्तियों पर कटाक्ष किया है।
  • बिंब योजना सार्थक एवं सटीक है।

4. जो मुझको बदनाम करें है काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोलें हैं या अपना परदा खोलें हैं।

शब्दार्थ – काश – इच्छा को व्यक्त करना।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि समाज में कुछ लोग कवि को बदनाम करना चाहते हैं। कवि बदनाम करने वाले लोगों को यह आग्रह करना चाहता है कि काश वह लोग इतना सोच सके कि वह मेरा भेद खोल रहे हैं या अपना भेद खोल रहे हैं। कवि का अभिप्राय है कि समाज में दूसरों को वही बदनाम करते हैं जो स्वयं पहले से बदनाम होते हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने बदनाम लोगों की प्रवृत्ति की ओर इशारा किया है।
  • शैली भावपूर्ण है।

5. ये कीमत भी अदा करे हैं हम बटुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो लें हैं।

शब्दार्थ – कीमत – मूल्य। अदा – भुगतान करना। बटुरुस्ती-ए-होशो-हवास – विवेक के साथ दुरुस्त करना। दीवाना – प्रेमी।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – कवि अपनी प्रियतमा को संबोधित करता है। कवि अपने प्रेम की कीमत को अदा करने की बात कहते हैं। वह अपनी प्रेमिका को सौदा करने को कह रहा है। अर्थात तुम्हें खरीदकर अपने पास रखने वाला दीवाना भी बनने को तैयार है।

काव्य-सौंदर्य –

  • उर्दू, फारसी और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग है।
  • गजल छंद है।

6. तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रोलें हैं।

शब्दार्थ – गम – दुख। पासे-अदब है – सम्मान करता हूं। ख्याल – विचार।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – कवि अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मैं पूर्ण रूप से खुद को तुम्हें समर्पित नहीं कर सकता हूं। मुझे तुम्हारे प्यार और दुख की कीमत का एहसास है। मेरा हाल भी बिल्कुल तुम्हारे जैसा ही है लेकिन सामाजिक मर्यादा के कारण अपने दर्द को छिपाकर चुपके चुपके एकांत में रो लेता हूं। अर्थात वह अपने प्रेम को दुनिया वालों को नहीं बताना चाहता है और दुनिया की हंसी का पात्र नहीं बनना चाहता है। कवि अपनी प्रियतमा के गमों का सम्मान करता है।

काव्य-सौंदर्य –

  • विरह भावना का मार्मिक चित्रण है।
  • माधुर्य गुण है।

7. फ़ितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो लें हैं।

शब्दार्थ – फितरत – आदत। तवाजुन – संतुलन। आलमे-हुस्नो-इश्क – अपने आप को।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि मैं अपनी प्रियतमा से कितना भी दूर ही क्यों ना चला जाऊं किंतु उसकी वियोग की पीड़ा मुझे सताती रहती है। उसकी सारी यादें अभी भी ज्यों की त्यों मेरे दिल में समाई हुई है। मै जब भी इनको भूलने का प्रयास करता हूं तो मुझे मेरी प्रियतमा की और अधिक याद आती है। मैं खुद को भूल सकता हूं किंतु अपनी प्रियतमा को नहीं।

काव्य-सौंदर्य –

  • श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का सजीव चित्रण है।
  • माधुर्य गुण है।

8. आबो-ताबे अशआर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक हे या हम मोती रोलें हैं।

शब्दार्थ – आबो-ताबे अशआर – चमक दमक के साथ। बैतों – शेरों।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – कवि अपनी प्रियतमा को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम्हारे पास भी दो आंखें हैं तुम भी दुनिया की सच्चाई से अवगत हो और समझदार हो, सब का आंकलन कर सकती हो। कवि शेरों के चमक की बात कर रहा है। जब उन्होंने असीम दुख झेला, उनका ह्रदय रोया और उनका दुख मोती बनकर आंखों से बहा। तब जाकर कहीं इतनी सुंदर शायरी की उत्पत्ति हुई है।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने प्रिय को सच्चाई से अवगत कराने का प्रयास किया है।
  • माधुर्य गुण है।

9. ऐसे में तू याद आये है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गये गर्द पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोलें हैं।

शब्दार्थ – अंजुमने-मय – शराब की महफिल। रिंदो को – शराबियों को। फरिश्तों – देवता। गर्द – आकाश। बाबे-गुनह – पाप का अध्याय।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या – कवि कहता है कि हे प्रिय! तो इस वियोग में ऐसे याद आती हो जैसे शराबियों को शराब याद आती हैं। तथा आधी रात में आकाश के फरिश्ते संपूर्ण संसार के पाप का अध्याय खोलते हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • माधुर्य गुण है।
  • श्रृंगार रस है।

10. सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन दलों के परदों में तो ‘भीर’ की गजलें बोले हैं।

शब्दार्थ – सदके फिराक – फिराक सदके जाता है। एजाजे-सुखन – बेहतरीन।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई है।

व्याख्या –  फिराक प्रतिष्ठित शायरी की आवाज पर सदके जाता है। इन गजलों में महान शायर ‘मीर’ की गजलें बोलता है। कवि अपनी गजलों को महान शायर मीर के प्रति समर्पित करता है। शायर नीर से ही प्रभावित होकर मैंने यह गजलें लिखी हैं।

काव्य-सौंदर्य –

  • गजल छंद का प्रयोग है।
  • भावपूर्ण शैली है।

 

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