सहर्ष स्वीकारा है Class 12 Hindi सप्रसंग व्याख्या / Vyakhya – आरोह भाग 2 NCERT Solution

NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 सहर्ष स्वीकारा है सप्रसंग व्याख्या  for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board,  Up Board, RBSE and Some other state Boards. We Provides all Classes पाठ का सार, अभ्यास के प्रश्न उत्तर और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर , MCQ for score Higher in Exams.

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NCERT Solution of Class 12th Hindi Aroh Bhag 2 /  आरोह भाग 2 सहर्ष स्वीकारा है / Sehrsh Swikara Hai Kavita ( कविता ) Vyakhya / सप्रसंग व्याख्या Solution.

सहर्ष स्वीकारा है Class 12 Hindi Chapter 5 सप्रसंग व्याख्या


1. जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है:
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है !

शब्दार्थ – अपलक – एकटक। गरबीली – गर्व से युक्त। सहर्ष – खुशी खुशी।

प्रसंग –  प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित है। कवि बताते हैं कि जीवन में जो सुख-दुख संघर्ष अवसाद आदि से प्रेरणा प्राप्त की है जिससे वह यह जीवन को जीने में सफल हुए हैं।

व्याख्या – कवि संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! मेरे जीवन में जो उतार-चढ़ाव, सुख-दुख, आशा-निराशा, राग-विराग आदि हैं उनको मैं प्रसन्नता के साथ स्वीकार करता हूं। भाव यह है कि मेरे अपने जीवन में जैसी भी स्थिति रही हो, उसका प्रसन्नत से सामना किया है। इस जीवन में जो कुछ भी मेरे पास है वह सब तुम्हें प्यार लगने वाला है। अर्थात कवि का भाव है कि मैंने अपने जीवन में सब कुछ स्वीकारा है जो आपको प्यारा लगे। यह गर्व से युक्त गरीबी अर्थात गरीबी को भी स्वीकार किया है। मैंने दिखावटीपन को नहीं अपनाया या गढ़ा हुआ कुछ भी नहीं है। कवि कहते हैं कि है प्रभु! जो कुछ भी संसार में है वह दिखाई देता हो या ना हो, सब आपकी ही देन है प्रभु।

काव्य-सौंदर्य –

  • रहस्यवादी भावना का चित्रण हुआ है।
  • भाषा सरल व सहज है।
  • बिंब योजना अत्यंत करना है।

2. जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है !

शब्दार्थ – उड़ेलता हूं – बिखेरता हूं। सोता – स्त्रोत।

प्रसंग –  प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने परमात्मा और मानव के संबंध को चित्रित किया है।

व्याख्या –  कवि प्रभु को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मैं नहीं जानता, आपका और मेरा क्या रिश्ता है। अर्थात आपका और मेरा रिश्ता गहरा है। कवि के हृदय में प्रेम रूपी झरना है जो बार-बार भर जाता है। वह खाली नहीं होता है। यह प्रेम रूपी झरना मीठे पानी का स्त्रोत है। मेरा जो प्रेम है वह आपके लिए अटूट है। कवि कहता है कि जिस प्रकार रात में चंद्रमा का प्रकाश चांदनी बिखेरता है उसी प्रकार हे प्रभु! मेरी आत्मा पर आपका ही दृश्य समाया हुआ है।

काव्य-सौंदर्य –

  • कवि ने मनुष्य और असीम सत्ता के अटूट संबंध को दर्शाया है।
  • शांत रस है।
  • खड़ी बोली भाषा का प्रयोग है।

3. सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलम मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता
भीतर पिराती है
कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाशत नहीं होती है !!

शब्दार्थ – परिवेष्टित – घिरा हुआ। भविष्यता – होनी।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कभी ने मनुष्य को यह संदेश दिया है कि अपने जीवन में हमें हर परिस्थिति का डटकर सामना करना चाहिए।

व्याख्या –  कवि असीम सत्ता को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे दंड दो। मैंने आपको भूलने का प्रयास किया है। जिस प्रकार धरती के दक्षिणी ध्रुव पर अमावस्या के समान गहरा अंधकार छाया रहता है वैसा ही अंधकार अपने शरीर और मुख पर मैं झेलू। क्योंकि अब मुझसे यह सुंदर प्रकाश सहन नहीं होता है। जिन प्रेम रूपी बादलों को देखकर मैं पहले आनंदित हो जाता था, अब वही प्रेम रूपी बादल मुझे पीड़ादायक प्रतीत होते हैं। वह कहता है कि अब मुझसे और दर्द बर्दाश्त नहीं होता है। अब मुझे वह लोग भी अच्छे नहीं लगते हैं जो मुझे सांत्वना देने आते हैं अर्थात मेरा हृदय निरंतर दुखों के कारण परेशान रहता है।

काव्य-सौंदर्य –

  • भाषा सरल व सहज हैं।
  • मुक्तक छंद का प्रयोग है।
  • बिंब विधान अत्यंत सुंदर एवं सटीक है।

4. सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अंधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण का घेरा है, कार्यों का वैभव है अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है।

शब्दार्थ – विवरो में – छिद्रों में। गुहाओ – गुफाओं।

प्रसंग –  प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कभी नहीं अपना सब कुछ असीम सत्ता को समर्पित किया है।

व्याख्या – कभी असीम सत्ता को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु आप मुझे दंड दें जिससे मैं पाताल की अंधेरे से भरी हुई गुफाओं में गुम हो जाऊं। मै इन गुफाओं में पूर्ण रूप से गुम हो जाना चाहता हूं ताकि कोई भी मुझ तक ना पहुंच सके। क्योंकि वहां भी आपका ही सहारा होगा। आप सृष्टि के प्रत्येक कण कण में समाए हुए हैं ‌‌मेरे जीवन में सुख – दुख, उतार – चढ़ाव, अमीरी – गरीबी आदि जो कुछ भी है, आपकी देन है। मैं इन सभी को प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर लूंगा।

काव्य-सौंदर्य –

  • खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
  • तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्दावली है।
  • कवि ने जीवन में जो कुछ भी सुख या दुख प्राप्त किए हैं, कवि ने उनको खुशी-खुशी स्वीकार किया है।

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