सहर्ष स्वीकारा है Class 12 Hindi Question Answer – आरोह भाग 2 NCERT Solution

NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 सहर्ष स्वीकारा है Question Answer  for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board,  Up Board, RBSE and Some other state Boards. We Provides all Classes पाठ का सार, अभ्यास के प्रश्न उत्तर और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर , MCQ for score Higher in Exams.

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NCERT Solution of Class 12th Hindi Aroh Bhag 2 /  आरोह भाग 2 सहर्ष स्वीकारा है / Sehrsh Swikara Hai Kavita ( कविता ) Question Answer Solution.

सहर्ष स्वीकारा है Class 12 Hindi Chapter 5 Question Answer


प्रश्न 1. टिप्पणी कीजिए,

गरबीली ग़रीबी , भीतर की सरिता
बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल ।

उत्तर – 

  • गरबीली ग़रीबी : – गरबीली गरीबी से तात्पर्य है कि मनुष्य गरीबी में जीवन यापन करते हुए हताश और निराश हो जाता है। किंतु कवि को अपनी गरीबी पर भी गर्व है वह निराश न होकर प्रसन्नता के साथ इन सब को स्वीकार करता है।
  • भीतर की सरिता :- भीतर की सरिता से अभिप्राय आंतरिक भाव से हैं जिस प्रकार झरना वह नदी का पानी साफ सुथरा होता है, मीठा होता है। जब नदी का पानी किसी अन्य नदी में मिलकर पावन हो जाता है वैसे ही कवि के भाव हृदय में जाकर पवित्र हो जाते हैं।
  • बहलाती सहलाती आत्मीयता :- बहलाती सहलाती आत्मीयता से तात्पर्य है – अपनापन, समाज में हमारे रिश्ते नाते होते हैं जो हमारे सुख – दुख में हमारा साथ देते हैं। वह अपनी सहानुभूति प्रकट करते हैं हिंदू कभी अपने जीवन में इतना दुखी है कि उसे यह सब दुखद लगने की बजाए पीड़ादायक प्रतीत होते हैं।
  • ममता के बादल :- ममता के बादल से तात्पर्य है कि जिस प्रकार वर्षा के मौसम में चारों तरफ हरियाली आती है, वैसे ही प्रेम रूपी भाव हैं जो कवि को पीड़ादायक प्रतीत हो रहे हैं।

प्रश्न 2. इस कविता में और भी टिप्पणी योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।

उत्तर – मुस्कुराता चंद्रमा से भाव है कि रात्रि में चंद्रमा अपना प्रकाश चारों तरफ फैल आता है जिस कारण कवि ने मुस्कुराता चंद्रमा कहा है।


प्रश्न 3. व्याख्या कीजिए:

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है ?
जितना भी उंड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है।
दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है ?

उत्तर – कवि प्रभु को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मैं नहीं जानता आपका और मेरा क्या रिश्ता है। अर्थात आपका और मेरा रिश्ता गहरा है। कवि के हृदय में प्रेम रूपी झरना है। जो बार-बार भाग जाता हैं। वह खाली नहीं होता है। मेरा प्रेम झरने के मीठे पानी की तरह अटूट है। कभी कहता है कि जिस प्रकार रात्रि में चंद्रमा का प्रकाश चांदनी बिखेरता है, उसी प्रकार मेरी आत्मा में आपका दृश्य समाया हुआ है।

चांद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूल कर अमावस्या में नहाने की बात इसीलिए की गई है क्योंकि अब कवि से दुख-दर्द सहन नहीं होते हैं और सहानुभूति भी पीड़ादायक लगती हैं।


प्रश्न 4.
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लू मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय उजेला अब
सहा नहीं जाता है

(क) यहां अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है ?

उत्तर – अंधकार के लिए ‘दक्षिणी ध्रुवी’ विशेषण है। अर्थात दक्षिण के समान कठिन समस्याएं जीवन में होती हैं।


(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा ?

उत्तर – अपने जीवन के दुख को अमावस्या कहा है।


(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है ? इस वैपरीत्य व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

उत्तर – मनुष्य के जीवन में जो काम होता है वह इस स्थिति को बुलाने में लाभ देता है।


(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसे कविता संबोधित है। कविता का ‘तम’ ) को परी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या यक्ति अपनाई है ? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।

उत्तर – कवि का भाव है कि अपने काम को मन के साथ करो और अपने दुख दर्द से निवारण प्राप्त कर सकता है।


प्रश्न 5. बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं ? चर्चा कीजिए ।

उत्तर – कभी एक ओर स्वीकार करता है कि वह जीवन के दुख-दर्द प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कर रहा है, किंतु दूसरी तरफ इन सब से डरता है और कहता है कि अब और नहीं सहा जाता है। मैं ऐसा इसीलिए भी कहता है क्योंकि अब उसकी आयु कम बची है और पहले जैसा शरीर भी नहीं है जो वह सब कुछ बर्दाश्त कर ले। इसीलिए इस शीर्षक को अंतविरोधी कहा जा सकता है।


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